बीजेपी का बंगाल के विधानसभा चुनाव में बगैर चेहरे के उतरना मजबूरी या रणनीति?

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में अभी एक साल का समय है, लेकिन सियासी बिसात बिछाई जाने लगी है. बीजेपी विधानसभा चुनाव के लिए किसी को मुख्यमंत्री के चेहरे के तौर पर पेश नहीं करेगी बल्कि ममता बनर्जी का सामना करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विकास योजनाओं और कार्यों के भरोसे मैदान में उतरेगी. बंगाल में बगैर चेहरे के उतरना बीजेपी की मजबूरी भी है और इसे उसकी रणनीति का हिस्सा भी माना जा रहा है. 

बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव और बंगाल के प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय ने रविवार को कहा कि सत्ता में आने के बाद उनकी पार्टी अपने मुख्यमंत्री का चुनाव करेगी. उन्होंने कहा कि अभी के लिए यह तय किया गया है कि हम किसी को भी अपने मुख्यमंत्री चेहरे के तौर पर पेश नहीं करेंगे. हम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में चुनाव की जंग में उतरेंगे. बीजेपी ने 294 सदस्यीय विधानसभा में 220-230 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है. हम अपना लक्ष्य हासिल करेंगे, जैसा हमने लोकसभा चुनावों में किया था. मुख्यमंत्री के चेहरे के तौर पर किसी को पेश करना कोई मुद्दा नहीं है. 

बीजेपी ने 2016 का विधानसभा चुनाव भी मुख्यमंत्री उम्मीदवार के तौर पर बिना कोई चेहरा सामने रखे ही लड़ा था. बीते चार सालों में भाजपा काफी मजबूत हुई है और बंगाल में सत्ताधारी टीएमसी के लिए प्रमुख चुनौती के तौर पर उभरी है. बीजेपी ने बंगाल के परंपरागत विरोधी दलों माकपा और कांग्रेस को तीसरे और चौथे स्थानों पर पहुंचा दिया है. पिछले साल लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने बंगाल में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए सूबे की 42 में से 18 संसदीय सीटें जीतकर राजनीतिक पंडितों को भी चौंका दिया था. उसे राज्य में 41 फीसद मत मिले थे. 

ममता के कद का नेता नहीं 


ऐसे में बीजेपी को चुनावों से पहले मुख्यमंत्री पद के दावेदार का चेहरा तय करना पार्टी के लिए दोधारी तलवार साबित हो सकता है. बीजेपी की सबसे बड़ी परेशानी यही है कि बंगाल में भले ही उसके 18 सासंद हों, लेकिन ममता बनर्जी के कद का कोई नेता नहीं है, जिसे आगे कर वो चुनावी मैदान में उतर सके. ममता बनर्जी पिछले 10 साल से बंगाल में सीएम हैं और जमीनी व संघर्षशील नेता के तौर पर उनकी पहचान है. ममता खुलकर बंगाली अस्मिता का कार्ड खेल रही हैं. 
 

बीजेपी में कई दावेदार 


मेघालय के पूर्व राज्यपाल तथागत रॉय सक्रिय राजनीति में लौट आए हैं. उन्होंने बीजेपी की ओर से पश्चिम बंगाल के सीएम पद की दावेदारी भी पेश की है. तथागत रॉय ने कहा, ‘यदि मेरी पार्टी फैसला लेती है कि मैं मुख्यमंत्री पद के लिए योग्य उम्मीदवार हूं, तो मैं इसे स्वीकार करूंगा. तथागत रॉय ने कहा कि उन्होंने अपना विचार केंद्रीय नेतृत्व को बता दिया है. इसके अलावा बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष भी खुद को सीएम के तौर पर पेश कर रहे हैं जबकि केंद्रीय मंत्री बाबुल सुप्रियो भी अपने आप को प्रमुख दावेदार मानकर चल रहे हैं. इतना ही नहीं टीएमसी से आए मुकुल रॉय भी ऐसे ही उम्मीद लगाए हैं.
 

बंगाल बीजेपी में गुटबाजी?


बीजेपी में तथागत रॉय और दिलीप घोष के बीच छत्तीस का आंकड़ा रहा है. तथागत रॉय अतीत में पश्चिम बंगाल बीजेपी अध्यक्ष का पद संभाल चुके हैं. इसके अलावा मुकुल रॉय की भी दिलीप घोष से बहुत ज्यादा नहीं पटती है और न ही बाबुल सुप्रियो से. इसके अलावा टीएमसी से आए नेता और बीजेपी के पुराने दिग्गजों के बीच रिश्ते बहुत बेहतर नहीं है. इसीलिए बीजेपी ने चुनाव जीतने के लिए रणनीति बनायी है कि बिना किसी के चेहरे के मैदान में उतरा जाए और टीएमसी के खिलाफ सत्ताविरोधी माहौल खड़ा किए जाए. 

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