जेपी आंदोलन की उपज थे सुशील मोदी : बिहार की राजनीति के एक अध्याय का अंत

बिहार की राजनीति में क़रीब पांच दशक से अलग-अलग भूमिका निभाने वाले सुशील कुमार मोदी नहीं रहे.

बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री रहे सुशील कुमार मोदी ने सोमवार को अंतिम सांसें लीं. वो कैंसर से जूझ रहे थे और दिल्ली के एम्स अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था.

लोकसभा चुनाव के एलान के बाद सुशील मोदी ने अपनी बीमारी की जानकारी सार्वजनिक की थी.

उन्होंने एक्स पर लिखा था, ”मैं पिछले छह महीने से कैंसर से जंग लड़ रहा हूं. अब मुझे लगता है कि लोगों को इस बारे में बता देना चाहिए. मैं लोकसभा चुनाव में ज़्यादा कुछ नहीं कर पाऊंगा.”

सुशील मोदी जेपी आंदोलन की उपज माने जाते थे. उनकी छात्र राजनीति की शुरुआत साल 1971 में हुई. उस वक़्त वो पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ की 5 सदस्यीय कैबिनेट के सदस्य निर्वाचित हुए. 1973 में वो महामंत्री चुने गए.

उस वक़्त पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव और संयुक्त सचिव रविशंकर प्रसाद चुने गए थे.

भारतीय जनता पार्टी के सिद्धांतकार और संघ विचारक रहे केएन गोविंदाचार्य को सुशील कुमार मोदी का मेंटर माना जाता है.

उन्होंने बीबीसी से बातचीत में एक बार कहा था, ”मैंने सुशील मोदी को 1967 से देखा है. उस वक़्त भी आप उनके व्यक्तित्व को अलग से नौजवानों की भीड़ में चिह्नित कर सकते थे. सादगी, मितव्ययिता, किसी काम को बहुत केन्द्रित और अनुशासित होकर करना उनकी ख़ासियत थी.”

जेपी आंदोलन के प्रभाव में आने के बाद उन्होंने पोस्ट ग्रैजुएशन में पटना विश्वविद्यालय में दाख़िला लेकर पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी. आपातकाल में वे 19 महीने जेल में रहे. 1977 से 1986 तक वो अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में महत्वपूर्ण पदों पर रहे.

  • 1990 में सुशील कुमार मोदी ने पटना केन्द्रीय विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा और विधानसभा पहुंचे.
  • 1995 और 2000 का भी चुनाव वो इसी सीट से जीते.
  • साल 2004 में उन्होंने भागलपुर लोकसभा क्षेत्र से चुनाव जीता था.
  • साल 2005 में उन्होंने संसद सदस्यता से इस्तीफ़ा दिया और विधान परिषद के लिए निर्वाचित होकर उपमुख्यमंत्री बने.
  • साल 2005 से 2013 और फिर 2017 से 2020 के दौरान वो बतौर उपमुख्यमंत्री अपनी भूमिका निभाते रहे. इस दौरान वो पार्टी में भी अलग-अलग दायित्व संभालते रहे.
  • दिसंबर, 2020 में उन्हें पार्टी ने राज्यसभा भेजा.

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