लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद से ही उत्तर प्रदेश में राजनीतिक गहमागहमी लगातार बढ़ रही है. बीजेपी अपने दम पर सरकार बनाने के लिए बहुमत हासिल करने में नाकाम रही और इसमें सबसे बड़ी भूमिका रही उत्तर प्रदेश की.
एक समय उत्तर प्रदेश में अपना वर्चस्व स्थापित करने वाली पार्टी बीजेपी इस लोकसभा चुनाव में दूसरे नंबर पर खिसक गई. समाजवादी पार्टी ने बीजेपी से ज़्यादा सीटें हासिल की. इसी के साथ बीजेपी में समीक्षा और चिंतन का दौर शुरू हुआ और कहीं न कहीं निशाने पर आ गए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ.

लोकसभा चुनाव के नतीजे ने ओबीसी वोट को लेकर बीजेपी की चिंता बढ़ा दी है. ओबीसी और दलित मतदाताओं का एक बड़ा हिस्सा बीजेपी से खिसक गया है.
इन सबके बीच उत्तर प्रदेश के उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य भी काफ़ी सक्रिय हो गए हैं. माना जा रहा है कि बीजेपी के अंदर ओबीसी नेता काफ़ी चिंतित हैं.
लामबंद हो रहे नेता
हाल ही में यूपी के उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य की एक चिट्ठी वायरल हो रही है, जिसमें मौर्य ने कार्मिक विभाग से जानकारी माँगी है कि संविदा और आउटसोर्सिंग के ज़रिए भर्ती किए जा रहे कर्मचारियों में किस तरह आरक्षण दिया जा रहा है.
ये विभाग मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पास है और माना जा रहा है कि मौर्य ने आरक्षण के ज़रिए मुख्यमंत्री पर निशाना साधा है.
हालाँकि केशव प्रसाद मौर्य के सवाल के बाद यूपी के सूचना विभाग ने आँकड़े जारी किए हैं.
इसमें बताया गया है कि 512 आउटसोर्स्ड कर्मचारी विभाग में लिए गए है, जिसमें 75 फ़ीसदी यानी 340 ओबीसी वर्ग के हैं. मौर्य के ऑफ़िस में विरोधी ख़ेमे के नेताओं का जमावड़ा लग रहा है.
मिलने वालों में विधायक, मंत्री, सांसद और पूर्व सांसद हैं. बीजेपी के सहयोगी ओम प्रकाश राजभर और संजय निषाद भी मौर्य से मिले हैं, इसके अलावा दारा सिंह चौहान ने भी मौर्य से मुलाक़ात की है.
इसके जवाब में योगी आदित्यनाथ अपने ख़ेमे के ओबीसी नेताओं से मुलाक़ात कर रहे हैं.
बुधवार को सीएम योगी ने नरेंद्र कश्यप से मुलाक़ात की जो पिछड़ा वर्ग मंत्री हैं. इसके अलावा वे राज्य मंत्री रामकेश निषाद और रानीगंज के विधायक राकेश कुमार वर्मा से भी मिले हैं.
चुनाव के नतीजों के बाद बीजेपी के ओबीसी नेताओं में बेचैनी है. वजह स्पष्ट है कि लोकसभा चुनाव में बीजेपी से ग़ैर यादव ओबीसी छिटक गया है.
योगी विरोधी ओबीसी नेता लामबंद हो रहे हैं और उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य खुलकर बैटिंग कर रहे हैं. उनके निशाने पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हैं, क्योंकि ओबीसी नेता हार के लिए योगी को ज़िम्मेदार ठहरा रहे हैं और अपनी साख बचाने की क़वायद में लगे हैं.
बीजेपी के कुर्मी, मौर्य, राजभर और पासी समाज के नेता परेशान दिखाई दे रहे हैं. बीजेपी से इस चुनाव में ये वर्ग ख़ासा दूर हुआ है जिसका नतीजों पर असर पड़ा है. ये वर्ग साल 2014 से बीजेपी के साथ था और साल 2022 तक एकजुट तरीक़े से बीजेपी के जीत में अहम भूमिका निभाता रहा.
लेकिन अब ये वर्ग दूर हो रहा है. बीजेपी और इन नेताओं के सामने चुनौती है कि कैसे इस वर्ग को वापस लाया जाए.
बीजेपी ने ओबीसी विभाग की बैठक बुलाकर नेताओं से कहा है कि वो अपने समाज को फिर से पार्टी के साथ जोड़ें. लेकिन ये रास्ता इतना आसान नहीं है.
बीजेपी की मुश्किल पर वरिष्ठ पत्रकार अनिल चमड़िया कहते हैं “ओबीसी का मतलब ग्रुप ऑफ़ कास्ट है. बीजेपी ने इनको अपनी राजनीति के हिसाब से जोड़ा था, लेकिन कोई एजेंडा नहीं बनाया बल्कि इनमें से कुछ को प्रतिनिधि बनाया, जबकि प्रतिनिधि और प्रतिनिधित्व में फ़र्क है क्योंकि जो समाज के मुद्दे थे वो हाशिए पर चले गए. इसकी वजह बीजेपी की विचारधारा है जो आड़े आ रही थी. इसलिए बीजेपी ने अलग-अलग जातियों को अपने हिसाब से जोड़ा था ना कि एकमुश्त योजना बनाकर ओबीसी को अपने साथ लेकर आए थे.”
लेकिन दूसरी ओर मुख्यमंत्री से बुधवार को मिलने वाले पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्री और बीजेपी के ओबीसी मोर्चा के अध्यक्ष नरेंद्र कश्यप ने बीबीसी से कहा, “ओबीसी बीजेपी के पक्ष में लामबंद हो रहा है. इसके लिए ज़मीनी काम शुरू हो गया है.”
उन्होंने कहा, “29 जुलाई को बीजेपी के ओबीसी विभाग की बैठक बुलाई गई है, जिसमें मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और दोनों उप मुख्यमंत्री हिस्सा लेंगे. संगठन की पूरी क़वायद है कि साल 2024 के चुनाव में जो कमी रह गई है, उसको पूरा किया जाए. ये सतत प्रक्रिया है जो साल 2027 के चुनाव तक चलेगी. इसके लिए हम अपने लोगों के बीच जाकर संवाद स्थापित करेंगे.”
कश्यप ने मौर्य की आरक्षण वाली चिट्ठी का जवाब देते हुए कहा, “अभी संविदा और आउटसोर्सिंग पर आरक्षण लागू नहीं है. ऐसे में सिर्फ़ सरकारी नौकरी में ही ये लागू हो सकता है, हालांकि अगर ऐसा होता है तो पिछड़ी जातियों के लिए अच्छा रहेगा.”