सुनते ही दिमाग में एक लाल कपडे पहने, बड़ी-बड़ी सफ़ेद दाढ़ी रखे, बूढ़े से, खुशमिजाज़ आदमी की इमेज बन जाती है. जिसके कंधे पर एक झोला है और बैकग्राउंड में जिंगल बेल-जिंगल बेल का म्यूजिक भी चल रहा है. यह वही सांता क्लॉस है जो बचपन में हमारे तकिये के नीचे या हमारे बैग में चुपके से गिफ्ट्स रख जाता था. लेकिन ऐसे में कई लोगों के मन में एक सवाल आता है कि सांता लाल कपड़े क्यों पहनता है? जैसा कि हमारा काम ही आपकी और अपनी उत्सुकता को दूर करना तो आइए इस सवाल का जवाब भी जानने की कोशिश करते हैं.
इसके पीछे कोका-कोला की मार्केटिंग स्ट्रेटेजी का बड़ा हाथ बताया जाता है. 1930 में कोका-कोला की मार्केटिंग संभालने वाली एजेंसी डी आर्की विज्ञापन एजेंसी (D’Arcy Advertising Agency) ने अपने विज्ञापन के लिए एक आम आदमी को सांता के लाल कपडे पहने हुए दिखाया था. बताते हैं कि उस वक़्त कंपनी का हिस्सा रहे आर्ची ली को कुछ और ज्यादा प्रभावशाली और जेन्युइन चाहिए था. इसके लिए एक आर्टिस्ट हैडन सनब्लोम को ये ज़िम्मेदारी सौंपी गई थी.
1823 में क्लेमेंट मार्क मूर ने ‘ए विजिट फ्रॉम सेंट निकोलस’ शीर्षक से एक कविता लिखी थी. जब सनब्लोम को काम सौंपा गया तो उन्होंने इस कविता के आधार पर ही लाल कपड़े वाले सांता की कल्पना की. हालांकि, सनब्लोम से काफी 1862 में पॉलिटिकल कार्टूनिस्ट थॉमस नास्ट ने सांता की एक छवि तैयार की थी. लेकिन, वो सनब्लोम के सांता के बराबर चमकदार नहीं थी. इसी वजह से सनब्लोम का सांता लोगों के दिमाग पर तेज़ी से चढ़ गया.
इसमें कोई संदेह नहीं कि आज हम सांता की तस्वीरें और कपडे जिस स्वरुप में देखते हैं, उसमें कोका-कोला की मार्केटिंग का बहुत बड़ा हाथ है. लेकिन सांता के लाल रंग का कारण सिर्फ कोका-कोला नहीं है. इस लाल रंग की कहानी में कई सारे किरदारों का योगदान है.
ग्रीक बिशप संत निकोलस से लिंक
इसकी शुरुआत होती है चौथी शताब्दी के एक ग्रीक बिशप संत निकोलस से, जो लाल कपड़े पहनकर गरीबों को, खासकर बच्चों को गिफ्ट्स दिया करते थे.
क्लेमेंट मार्क मूर की लिखी कविता में सेंट निकोलस के बारे में अच्छे से बताया गया है. और वो जानकारी काफी हद तक हमारी और आपकी सांता क्लॉस की कल्पना से मिलती-जुलती है.
आगे चलकर संत निकोलस जैसा ही एक और डच चेहरा सामना आया. इन्हें सिंटरक्लास के नाम से जाना गया. सिंटरक्लास लाल कपडे और बड़ी-बड़ी सफ़ेद दाढ़ी के साथ एक सफ़ेद घोड़े पर बैठे होते हैं.
किताब ‘दी सीक्रेट लैंग्वेज ऑफ कलर’ की लेखक एरिले एक्स्टुट कहती हैं कि लाल रंग का कोई निश्चित इतिहास नहीं है. एक्स्टुट के मुताबिक क्रिसमस और लाल रंग के बीच का लिंक पता करने में शायद सदियां लग सकती हैं.