राजीव धवन बोले- बहुसंख्यक हिंदू हिंसक नहीं, हिंसा के लिए संघ परिवार जिम्मेदार

सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या मामले में मुस्लिम पक्ष की ओर से जोरदार दलीलें पेश करने वाले वरिष्ठ वकील राजीव धवन का कहना है कि देश की बहुसंख्यक हिंदू आबादी हिंसक नहीं है, लेकिन संघ परिवार ऐसा करता रहा है. रिव्यू पर धवन ने कहा कि यह अधिकार है और यह इस बात की ओर इंगित करता है कि फैसले में कहां-कहां चूक हो गई.

अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट की ओर से फैसला आने के बाद इंडिया टुडे को पहली बार दिए अपने इंटरव्यू में राजीव धवन ने अपने उस बयान पर हुए विवाद के बाद सफाई दी कि वह पूरे हिंदू समुदाय की बात नहीं कर रहे थे, संघ परिवार ऐसा करता रहा है. धवन ने पिछले दिनों अपने एक टीवी इंटरव्यू में कहा था देश में माहौल खराब करने के लिए मुस्लिम कभी भी जिम्मेदार नहीं रहे हैं. हिंदू ऐसा करते हैं.

उन्होंने कहा, ‘मैं हिंदू समुदाय की बात नहीं कर रहा हूं. मेरा विश्वास है कि इस समुदाय में बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं जो इस तरह की हिंसा पर विश्वास नहीं करता है.’

‘मैं मुस्लिमों और हिंदुओं के लिए पेश हुआ’

राजीव धवन ने कहा, ‘मैं सिर्फ मुसलमानों के लिए ही पेश नहीं हुआ. मैं बड़ी संख्या में उन हिंदुओं के लिए भी वकालत की जो लिबरल सेक्युलिरिज्म में विश्वास करते हैं. यह पूरा कोर्ट केस था. यह मामला मुस्लिम बनाम हिंदू को लेकर नहीं था. यह दांव पर लगे संवैधानिक ताने-बाने की रक्षा करने से जुड़ा मामला था.’

‘हिंदू शांति भंग करते हैं’ पर क्या दी सफाई

राजीव धवन ने कहा, ‘मैं नहीं जानता कि किसने मेरा इंटरव्यू लिया था. और कल का इंटरव्यू झूठे तथ्यों पर आधारित पर लिया गया. जब मैंने कहा कि हिंदू, तो इसका मतलब वो हिंदू जो बाबरी मस्जिद से जुड़े मामलों में हिंसा के लिए जिम्मेदार हैं. कोर्ट में मैंने हिंसक हिंदुओं को हिंदू तालिबान कहा है. मैं अपने बयान पर अभी भी कायम हूं.

उन्होंने आगे कहा, ‘पिछली सदी पर विचार करें, कितनी हिंसा हुई थी. 1934 में मुसलमानों ने मस्जिद की रक्षा करने की कोशिश की और इसे तोड़ दिया गया. 1949 में इसका अतिक्रमण हुआ. 1950 और 1992 के बीच, हिंदुओं की ओर से हर आदेश का पालन नहीं किया गया. और फिर बाबरी मस्जिद का विध्वंस कर दिया गया. और मैं बार-बार यह कहूंगा कि बाबरी मस्जिद से जुड़ी हिंसा हिंदू हिंसा थी और इसकी तैयारी हिंदू तालिबान के द्वारा की गई थी, लेकिन मैं उस हिंसा को संघ परिवार और उन सभी सदस्यों तक सीमित करता हूं जिन्होंने इस हिंसा की तैयारी की थी.

मंदिर वहीं बनेगा और घोषणा पत्र

उन्होंने कहा, ‘मैं हिंदू समुदाय के बारे में बात नहीं कर रहा. मैं इस समुदाय से जुड़े बड़ी संख्या पर विश्वास करता हूं कि वो इस तरह की हिंसा में विश्वास नहीं करता.’

राजीव धवन ने कहा, ‘जब केस की सुनवाई चल रही थी तो किसी भी सरकार या किसी को भी इसके बारे में बोलना नहीं था. जब वह कहते हैं कि ‘मंदिर वहीं बनेगा’ तो यह कोर्ट की अवमानना है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘बीजेपी का घोषणापत्र एक पवित्र किताब नहीं है. घोषणापत्र केवल राम मंदिर के बारे में बात करता है. इसे कोर्ट की अवमानना मानना चाहिए. आडवाणी अब तारीफ चाहते हैं, लेकिन किसी को उन्हें बताना चाहिए कि विनाश सही रास्ता नहीं है. उनकी रथ यात्रा हिंदुओं को एकजुट करने के लिए नहीं बल्कि मुसलमानों को डराने के लिए थी.’

रिव्यू पिटीशन अधिकार

राजीव धवन ने कहा कि रिव्यू सुन्नी वक्फ बोर्ड की पसंद है. मैं रिव्यू को लेकर एक सलाह देना चाहूंगा कि फैसले के बिना शांति नहीं हो सकती. और मुस्लिम पक्षों की ओर से अभी भी यह नहीं बताया गया कि उन्हें इस फैसले में क्या-क्या आपत्तियां हैं. यह फैसला कामयाब होगा या नहीं, लेकिन रिव्यू एक अधिकार है और इस बताएगा कि फैसले में मौलिक रूप से क्या गलत है.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर राजीव धवन ने कहा कि फैसले के बाद शांति व्यवस्था बनाए रखना सुप्रीम कोर्ट का काम नहीं है. संविधान के अनुच्छेद 142 पूर्ण न्याय की बात करता है. इसलिए सुप्रीम कोर्ट की जिम्मेदारी यह सुनिश्चित करने की थी कि पूरा न्याय किया जाए, जो कि यहां नहीं हुआ.

राजीव धवन ने कहा, ‘मैं नहीं समझता कि मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई को सुरक्षा बनाए रखने वाली एजेंसियों के साथ बंद दरवाजे के पीछे बात करनी चाहिए थी. यह कोर्ट के पर्दे के पीछे नहीं किया जा सकता. यह एक सरल सा सवाल था कि उन्हें एक फैसला सुनाना था और इसका किसी भी कीमत पर पालन करवाना था. सीजेआई और जस्टिस अशोक भूषण का राजनेताओं और पुलिस के साथ कोई संबंध नहीं है, यह उनका अधिकार क्षेत्र भी नहीं है. हालांकि यह सब कुछ अयोध्या फैसले के समय हुआ. यह पूरी तरह से गलत था. फैसले खुले कोर्ट में होने चाहिए, बंद दरवाजे के पीछे इसे लागू नहीं करवाया जाना चाहिए.’







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