लॉकडाउन: मजदूरों के टिकट पर टकराव, 85 फीसदी खर्च उठा रहा है रेलवे

पिछले 40 दिन से लॉकडाउन में फंसे प्रवासी मजदूरों को उनके घर पहुंचाने के लिए ट्रेनें चलीं तो उसके किराये को लेकर सियासी घमासान भी शुरू हो गया है. कांग्रेस व अन्य विपक्षी दल सवाल उठा रहे हैं कि जब मोदी सरकार विदेश में फंसे भारतीयों को सरकारी खर्चे पर वतन वापस ला सकती है तो गरीब मजदूरों से ट्रेन के टिकट के पैसे क्यों लिए जा रहे हैं?

केंद्र सरकार विपक्ष के इस सवाल पर चुप है लेकिन उससे जुड़े सूत्र दावा कर रहे हैं कि इस यात्रा का 85 फीसदी खर्च रेलवे उठा रहा है और बाकी खर्च के लिए संबंधित राज्य सरकारों से कहा गया है. इस बीच रेलवे का वो लेटर भी सामने आया है जिसमें राज्य सरकारों से कहा गया है कि वो श्रमिक ट्रेनों में सफर करने वाले यात्रियों को टिकट देकर उनसे पैसा लें और ये पैसा रेलवे को दें.

इस विवाद ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के उस फैसले से नया मोड़ ले लिया है जिसमें उन्होंने ऐलान किया है कि कांग्रेस की इकाइयां गरीब मजदूरों की यात्रा का खर्च उठाएंगी. इसके जवाब में बीजेपी ने 85 फीसदी खर्च रेलवे द्वारा उठाने की बात दोहराई है और मांग की है कि कांग्रेस शासित राज्य सरकारें बाकी 15 फीसदी का भुगतान अपने खजाने से करें ताकि मजदूरों से कोई पैसा लेना ही न पड़े.

हालांकि, आरोप-प्रत्यारोप के बीच भी अब तक ये साफ नहीं है कि जिन 15 फीसदी किराये की बात हो रही है वो सामान्य किराये की तुलना में कितना कम है क्योंकि रेलवे ने जो खर्च जोड़ा है उसमें ट्रेन के खर्च से लेकर सोशल डिस्टेंसिंग, खाने-पीने और स्क्रीनिंग की व्यवस्था और ट्रेन के खाली लौटने से होने वाला खर्च भी शामिल होने की बात भी कही जा रही है.

केंद्र के सूत्रों का कहना है कि मध्य प्रदेश सरकार अपने हिस्से का खर्च उठा रही है. वहीं, मध्य प्रदेश सरकार ने कहा है कि अन्य राज्यों में फंसे मध्य प्रदेश के जो भी मजदूर स्पेशल ट्रेन से वापस आएंगे उनसे किराया नहीं वसूला जाएगा. हालांकि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने केंद्र सरकार से कहा है कि प्रवासी मजदूरों के पास वैसे ही पिछले काफी दिन से कमाई का कोई स्त्रोत नहीं है, लिहाजा वो जब अपने घरों को वापस जा रहे हैं तो उनसे किराया न लिया जाए. गौरतलब है कि महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा प्रवासी मजदूर हैं जिनमें से ज्यादातर यूपी और बिहार-झारखंड से हैं.

क्या कहा नीतीश कुमार ने?

अब बिहार सरकार ने इस मसले पर फैसला लिया है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा है कि किसी भी मजदूर को पैसा देने की जरूरत नहीं है. यानी बीजेपी या बीजेपी समर्थित सरकारें किराये पर विवाद के बाद मजदूरों से पैसा न लेने के फैसले ले रही हैं जबकि कांग्रेस व उसकी समर्थित सरकारें केंद्र पर निशाना साध रही हैं. इतनी ही नहीं दूसरे विपक्षी दल भी मोदी सरकार को घेर रहे हैं.

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश सिंह बघेल ने कहा था कि मजदूरों के लिये ट्रेन चलाने के लिए केंद्र सरकार को राज्यों से पैसा नहीं लेना चाहिये. बघेल ने इसे हास्यास्पद बताया था. वहीं समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा था कि बेबस मजदूरों का किराया लेना बेहद शर्मनाक बात है. अखिलेश ने कहा था कि इससे पता चल रहा है कि पूंजीपतियों का अरबों माफ करने वाली भाजपा अमीरों के साथ है और गरीबों के खिलाफ है.

येचुरी ने सरकार को घेरा

अखिलेश के अलावा लेफ्ट नेता सीताराम येचुरी ने भी मोदी सरकार को घेरा है. उन्होंने कहा है कि जो मजदूर पिछले दो महीनों से कुछ कमाई नहीं कर पा रहे हैं, उन्हें ट्रेन टिकट का खर्च उठाने को कहा जा रहा है. जब केंद्र की ओर से कोई मदद ही नहीं मिल रही है तो राज्य सरकारें भी इस खर्च को कैसे उठाएंगी.

इस पूरे विवाद के बीच 2 मई को लिखा गया रेलवे का वो लेटर भी सामने आ गया है जिसमें साफ तौर पर लिखा गया है कि रेलवे राज्य सरकारों को टिकट देगा, जिसके बाद वो टिकट यात्रियों को देंगे और उनसे पैसा लेकर रेलवे को सौंपेंगे. बहरहाल, आरोप-प्रत्यारोप के बीच राहत की खबर ये है कि मध्य प्रदेश और बिहार सरकार ने मजदूरों से किराया न लेने का आदेश जारी कर दिया है.

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