प्याज के बढ़ते दामों का संकट आम लोगों के लिए हैं, सरकार के लिए नहीं

आखिर क्या कारण है कि महीने-दो महीने भी नहीं गुजरते और प्याज के दाम आसमान छू जाते हैं? मोटे तौर पर तो इसे प्याज की फसल से जोड़ कर देखा जाता है।

प्याज के दाम एक बार फिर सौ रुपए किलो से ऊपर निकल गए हैं। सिर्फ राजधानी दिल्ली ही नहीं, कई शहरों में इन दिनों प्याज लोगों के आंसू निकाल रहा है। सवा-डेढ़ महीने पहले भी प्याज अस्सी-नब्बे रुपए किलो तक बिका था। तब दाम काबू करने के लिए राज्यों और केंद्र सरकार तक ने कई कदम उठाने के वादे-दावे किए गए थे। कुछ दिन तो राहत मिली, लेकिन फिर से प्याज के दाम सौ रुपए से भी ऊपर चले गए। इसका मतलब है कि इस कारोबार पर सरकार की कोई लगाम नहीं है और व्यापारी अपने हिसाब से चल रहे हैं। यह कोई एकाध साल की बात भी नहीं है, बल्कि साल में एक-दो बार ऐसा झटका गरीब की जेब पर लग ही जाता है। दिल्ली की मंडियों में पिछले एक हफ्ते के दौरान प्याज के दामों में पैंतालीस फीसद से ज्यादा की बढ़ोतरी हुई है और थोक भाव अस्सी रुपए तक जा पहुंचा। इसका असर यह हुआ कि मंडियों से बाजार तक पहुंचने में खुदरा भाव सौ रुपए किलो तक पहुंच गया। यह चिंता और परेशानी की बात ज्यादा इसलिए है कि प्याज रोजमर्रा के इस्तेमाल की चीज है। लेकिन सरकारें बेफिक्र हैं, उन्हें प्याज के दाम बढ़ने से कोई मतलब नहीं है। हालत यह है कि इस साल प्याज के दाम पिछले चार साल में सबसे ज्यादा चढ़े हैं।

आखिर क्या कारण है कि महीने-दो महीने भी नहीं गुजरते और प्याज के दाम आसमान छू जाते हैं? मोटे तौर पर तो इसे प्याज की फसल से जोड़ कर देखा जाता है। अभी तात्कालिक कारण यह बताया जा रहा है कि बेमौसम की बारिश से प्याज की फसल पर बुरा असर पड़ा है, इसलिए जिन राज्यों से समय पर मंडियों में प्याज पहुंचना था, वह पहुंच नहीं पाया और अचानक से कमी हो गई और दाम चढ़ गए। राजस्थान, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक से दिल्ली सहित कई शहरों में प्याज की भारी मात्रा में आपूर्ति होती है। लेकिन इन दिनों दिल्ली सहित कई शहरों की मंडियों में प्याज की आवक चालीस-पचास फीसद तक घट गई है। दीपावली के महीने भर पहले भी प्याज ने इसी तरह रुलाया था। एशिया की सबसे बड़ी प्याज मंडी लासलगांव (महाराष्ट्र) में तब भी प्याज के दाम साठ रुपए किलो बिक रहा था और आज भी यही है। लेकिन अब तो खुदरा भावों ने डेढ़ महीने पहले का रिकार्ड तोड़ डाला है।

प्याज के बढ़ते दामों का संकट आम लोगों के लिए हैं, सरकार के लिए नहीं। व्यापारी इसे कुछ ही समय का संकट बता रहे हैं। जबकि हकीकत यह है कि जब प्याज की फसल खराब होती है तो इसका सबसे ज्यादा फायदा जमाखोर उठाते हैं, वे अपना स्टाक मनमानी कीमत पर निकालते हैं और सीधे खुदरा बाजार में बेचते हैं। लेकिन सरकार जमाखोरों पर अंकुश कभी नहीं लगा पाती। एकाध-दो व्यापारियों पर छापे मार कर कार्रवाई की औपचारिकता कर दी जाती है। यह सिलसिला हर साल का है। दिल्ली में हालांकि सरकार ने सरकारी बिक्री केंद्रों पर सस्ता प्याज मिलने के दावे किए हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि इन केंद्रों पर प्याज है नहीं। लोग खाली हाथ लौट रहे हैं। सवाल यह है कि जब मालूम है कि प्याज का संकट कभी भी खड़ा हो सकता है तो इस समस्या स् निपटने के उपाय पहले से क्यों नहीं किए जाते? क्यों राज्य सरकारों और उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के बीच तालमेल नहीं है? तब प्याज का जमा स्टॉक कहां चला जाता है? अगर ऐसे संकट से निपटने के लिए पहले से तैयारी हो तो लोगों के आंसू तो नहीं निकलें!

Leave a Reply