क्यों बीएस येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद से हटाना बीजेपी के लिए आसान नहीं

दक्षिण भारत में बीजेपी का एकलौता मजबूत दुर्ग कर्नाटक है, जहां सियासी उठापटक जारी है. मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा की कुर्सी पर संकट के बादल छाए हुए हैं. बेंगलुरु में देर रात करीब पांच मंत्रियों ने मंत्री सुधाकर के घर पर बैठक की, जिसमें येदियुरप्पा की विदाई बाद की रणनीति पर चर्चा की गई. हालांकि, येदियुरप्पा किसी भी सूरत में अपनी कुर्सी छोड़ने के तैयार नहीं हैं और ऐसे में उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटाना बीजेपी के लिए आसान भी नहीं है. ऐसे में सवाल उठता है कि कर्नाटक में बीजेपी एक बार येदियुरप्पा को हटाकर सियासी हश्र देख चुकी है और अब फिर से वैसा ही जोखिम भरा कदम उठाएगी?

दरअसल, 77 साल के बीएस येदियुरप्पा उम्र की ऐसी दहलीज पर खड़े हैं, जहां बीजेपी उनके राजनीतिक विकल्प के लिए रास्ता बनाना चाहती है. इसके पीछ उम्र के साथ कई विधायक और मंत्रियों की नाराजगी को भी वजह बताया जा रहा है. यही वजह है कि बीजेपी येदियुरप्पा को कर्नाटक के मुख्यमंत्री का पद छोड़कर किसी बड़े राज्य का राज्यपाल बनने के लिए राजी करने की लगातार कोशिश कर रही है, लेकिन इसमें सफलता नहीं मिल रही है.

येदियुरप्पा की बीजेपी पर पकड़


कर्नाटक में बीजेपी के बीएस येदियुरप्पा चेहरा माने जाते हैं. उन्होंने अकेले दम पर कर्नाटक में पार्टी के आधार को मजबूत करने का काम किया है. 1983 में बीजेपी से पहली बार वो विधायक बने और 80 के दशक में बीजेपी की कमान संभाली तो पार्टी को संगठनात्मक तौर पर प्रदेश के हर जिले में मजबूत करने का काम किया. किसानों के मुद्दों को लेकर सड़क से विधानसभा तक लड़ाई लड़ी. इस तरह से पार्टी पर उनकी जबरदस्त पकड़ मानी जाती है.

जेडीएस के साथ मिलकर 2006 में सरकार बनाई थी. 2007 में येदियुरप्पा सीएम बने थे, लेकिन बहुमत साबित नहीं कर पाने के चलते इस्तीफा देना पड़ा था. इसके बाद येदियुरप्पा के नेतृत्व में बीजेपी 2008 में कर्नाटक में कमल खिलाने में कामयाब रही और स्पष्ट बहुमत के साथ सरकार बनाया. बीजेपी दक्षिण भारत में पहली बार सरकार बनाने में सफल रही थी, जो येदियुरप्पा के बदौलत संभव वो सका था. हालांकि, भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते अगस्त 2011 में येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा. इसके बाद हालात ऐसे बने कि येदियुरप्पा ने नाराज होकर बीजेपी छोड़ दी और अपनी अलग पार्टी बना ली.

येदियुरप्पा के बगैर बीजेपी


बीएस येदियुरप्पा ने कर्नाटक प्रजा पार्टी के नाम से अपनी पार्टी बनी ली. 2013 में हुए चुनाव में येदियुरप्पा की वजह से बीजेपी को काफी नुकसान हुआ और सत्ता से उसे हाथ धोना पड़ गया था. बीजेपी के पास राज्य में ऐसा कोई चेहरा नहीं था, जो पार्टी की नैया को पार लगा सके. येदियुरप्पा ने मैदान में उतरकर बीजेपी के सारे समीकरण ध्वस्त कर दिए थे.  2013 के चुनाव में कांग्रेस को बहुमत मिला और सिद्धारमैया कर्नाटक के मुख्यमंत्री बने. बीजेपी को इस बात का जल्द ही एहसास हुआ और फिर येदियुरप्पा की ससम्मान पार्टी में वापसी हुई. ऐसे में येदियुरप्पा ने अपनी पार्टी का बीजेपी में विलय कर दिया और पार्टी ने उन्हें कर्नाटक में बीजेपी की कमान सौंप दी.

कर्नाटक में बीजेपी की वापसी


येदियुरप्पा ने बीजेपी की कमान संभालने के बाद पार्टी को कर्नाटक में दोबारा से मजबूत किया. इसका नतीजा 2014 के लोकसभा चुनाव में दिखा जब राज्य की 28 में से 17 सीटें बीजेपी को मिली. इसके बाद 2018 विधानसभा चुनाव में बीजेपी 104 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनी और महज 9 सीटें कम हो जाने के चलते सत्ता से दूर हो गई थी. कांग्रेस-जेडीएस की गठबंधन सरकार बनी, लेकिन कांग्रेस और जेडीएस के कुछ विधायकों के इस्तीफे की वजह से सरकार अल्पमत में आई और गिर गई. इसके बाद येदियुरप्पा बहुमत के साथ मुख्यमंत्री बने. कांग्रेस और जेडीयू के 17 विधायकों को येदियुरप्पा ने अपने दम पर पार्टी में लाने का काम किया था. ऐसे में उन पर बीजेपी के दूसरे नेताओं से ज्यादा येदियुरप्पा की पकड़ है.

लिंगायत के छिटकने का डर 


कर्नाटक की सियासत में लिंगायत समुदाय किंगमेकर और प्रभावशाली मानी जाती है. कर्नाटक में करीब 17 फीसदी लिंगायत समुदाय का वोट है. बीएस येदियुरप्पा इसी समाज से आते हैं, जिनकी वजह लिंगायत बीजेपी के साथ मजबूती से जुड़े हुए हैं. लिंगायत समुदाय के सभी प्रमुख मठ और उनके धार्मिक-आध्यात्मिक गुरु भी येदियुरप्पा का खुलकर समर्थन करते हैं. बीजेपी से उनके अलग होने के बाद लिंगायत वोटों में काफी नाराजगी बढ़ी थी. ऐसे में बीजेपी के लिए चिंता का सबब है कि अगर येदियुरप्पा को हटाकर किसी दूसरे नेता को कुर्सी सौंपती है तो लिंगायत कहीं नाराज होकर दूर न हो जाएं. यही वजह है कि बीजेपी बड़ी सावधानी के साथ कदम बढ़ा रही है. 

कर्नाटक बीजेपी में बगावत का खतरा


बीजेपी अगर बीएस येदियुरप्पा से मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा लेती है तो कर्नाटक बीजेपी में बगावत की चिंगारी सुलग सकती है. 2011 में येदियुरप्पा ने पार्टी छोड़ी थी को काफी नेताओं ने भी बीजेपी को अलविदा कह दिया था. ऐसे में अब बीजेपी के लिए दोबारा से जोखिम भरा कदम उठाना आसान नहीं होगा. इसके अलावा कांग्रेस और जेडीएस से आए हुए नेताओं पर बीजेपी के दूसरे नेताओं से ज्यादा येदियुरप्पा की पकड़ है. ऐसे में उनकी घर वापसी की एक बड़ी टेंशन है, क्योंकि कांग्रेस और जेडीएस के मिलाकर बीजेपी के आंकड़े के करीब है. ऐसे में पार्टी के लिए यह भी एक चिंता का सबब है. 

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