चीन और सऊदी अरब भी अब पाकिस्तान को आतंकवाद के मुद्दे पर घेरने में भारत के साथ आ गए हैं. जून महीने में फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) की बैठक से पहले चीन और सऊदी ने पाकिस्तान को आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई करने और फंडिंग रोकने को लेकर कड़ा संदेश दिया है.
दोनों देशों ने पाकिस्तान को आतंकवाद पर अपनी प्रतिबद्धताएं एफएटीएफ की समयसीमा के भीतर पूरी करने के लिए कहा है जिसमें सभी आतंकी संगठनों के सरगनाओं के खिलाफ कार्रवाई भी शामिल है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट ने कूटनीतिक सूत्रों के हवाले से लिखा है कि पाकिस्तान को एफएटीएफ द्वारा ब्लैकलिस्ट होने से बचाने में अंत तक तुर्की मजबूती से खड़ा रहा. जबकि चीन के रुख में यह बड़ा यू टर्न कहा जा सकता है क्योंकि उसने फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स में हमेशा से पाकिस्तान का समर्थन किया है.
रिपोर्ट के मुताबिक, ये बात तय है कि पाकिस्तान फिलहाल एफएटीएफ की ग्रे लिस्ट में ही रहेगा और अगर वह जून महीने से पहले आतंकवाद के खिलाफ सख्त कार्रवाई नहीं करता है तो उसे इसके गंभीर नतीजे भुगतने होंगे. एफएटीएफ गुरुवार को पाकिस्तान के ब्लैकलिस्ट होने के मामले पर आधिकारिक तौर पर घोषणा करेगा.
पिछले साल महाबलिपुरम की अनौपचारिक समिट के दौरान विदेश मंत्रालय ने कहा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग इस बात को लेकर चिंतित हैं कि आतंकवाद दोनों देशों के लिए एक खतरा बना हुआ है.
पीएम मोदी और शी जिनपिंग ने बयान में कहा था, एक विशाल और विविधता वाले देश के नाते हम यह सुनिश्चित करेंगे कि आतंकियों के प्रशिक्षण और उनकी फंडिंग के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय समुदाय की कड़ी कार्रवाई हो.
कूटनीतिक सूत्र के मुताबिक, पाकिस्तान अपनी जनता और पूरी दुनिया को गुमराह करने की कोशिश में हमेशा से एफएटीएफ की कार्रवाई को लेकर गलत तथ्य और चुनिंदा बातें लीक कराता रहता है. सच तो ये है कि तमाम कोशिशों के बावजूद पाकिस्तान एफएटीएफ की ग्रे लिस्ट में बना हुआ है. पाकिस्तान के सामने अब ये संकट है कि अगर वह एफएफटीएफ के मानकों के अनुरूप कार्रवाई नहीं करता है तो भविष्य में ब्लैकलिस्ट हो सकता है.
रिपोर्ट के मुताबिक, पाकिस्तान को तुर्की को छोड़कर लगभग सभी एफएटीएफ सदस्य देशों ने सख्त संदेश दिया है कि वह जून 2020 तक 13 सूत्रीय ऐक्शन प्लान को पूरा कर ले. इस 13 सूत्रीय ऐक्शन प्लान में सभी आतंकी संगठनों के शीर्ष नेताओं के खिलाफ कार्रवाई करना भी शामिल है.
इसके अलावा, पाकिस्तान लंबे वक्त से एफएटीएफ की प्रक्रिया का राजनीतिकरण करने की कोशिश करता रहा है जो तुर्की और मलेशिया के हालिया बयानों से भी जाहिर होता है. जब तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यर एर्दोगन इस महीने पाकिस्तान के दौरे पर पहुंचे तो उन्होंने पाकिस्तान को एफएटीएफ में समर्थन देने का ऐलान किया था.
एफटीएफ की जून महीने में होने वाली बैठक से पहले पाकिस्तान के मामले की समीक्षा कर रहे एक समूह ने सुझाव दिया है कि इस्लामाबाद को आतंक को फंडिंग रोकने में असफलता को लेकर ग्रे लिस्ट में ही रखा जाना चाहिए.
पाकिस्तान को FATF के सदस्य देशों तुर्की, चीन और मलेशिया से समर्थन मिलता रहा है. FATF चार्टर के तहत, ब्लैकलिस्टिंग से बचने के लिए कम से कम तीन सदस्य देशों का समर्थन मिलना जरूरी है.
दुनिया भर में मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकी संगठनों के वित्तपोषण पर निगरानी करने वाली संस्था FATF के रडार में इस्लामाबाद जून 2018 से ही है. एशिया-पैसेफिक ग्रुप (एपीजी) ने पाकिस्तान की वित्तीय व्यवस्था का मूल्यांकन करने के बाद आतंकी संगठनों की फंडिंग और मनी लॉन्ड्रिंग को लेकर खतरे को उजागर किया था. एशिया-पैसेफिक की रिपोर्ट के बाद FATF ने पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट में डाल दिया था.
वर्तमान में एशिया-पैसिफिक ग्रुप (एपीजी) और एफएटीएफ दोनों संगठनों में शामिल भारत, यूएस और यूके के साथ मिलकर इस्लामाबाद को एफएटीएफ से ब्लैकलिस्ट कराने के लिए कोशिशें कर रहा है क्योंकि अब तक पाकिस्तान वित्तीय अपराधों को रोकने और आतंकी संगठनों की फंडिंग रोकने में असफल रहा है. ऐसे में चीन और सऊदी अरब भी भारत को समर्थन दे देते हैं तो पाकिस्तान को आतंकवाद का खात्मा करने के लिए मजबूर होना ही पड़ेगा.