भारत की सर्वोच्च अदालत ने सोमवार को जजों की नियुक्ति के मुद्दे पर केंद्रीय क़ानून मंत्री किरण रिजिजु के रुख की कड़ी आलोचना की है.
अंग्रेजी अख़बार द टाइम्स ऑफ़ इंडिया में प्रकाशित ख़बर के मुताबिक़, सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सरकार कॉलेजियम सिस्टम की ओर से भेजे गए नामों पर फ़ैसला नहीं लेकर नियुक्ति प्रक्रिया को प्रभावित कर रही है.
सर्वोच्च अदालत ने ये टिप्पणी किरण रिजिजु के उस बयान पर दी है जिसमें उन्होंने कॉलेजियम सिस्टम की आलोचना की थी.
सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष विकास सिंह इस बयान को कोर्ट के संज्ञान में लेकर आए.
इसके बाद सर्वोच्च अदालत ने अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमानी और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के सामने अपना रुख स्पष्ट किया है.
जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस अभय एस ओका की पीठ ने कहा, “जब एक इतने ऊंचे पद पर बैठा व्यक्ति कहता है कि ये काम हमें ख़ुद कर लेना चाहिए तो हम ये काम ख़ुद कर लेंगे. हमें इसमें कोई समस्या नहीं है. ये बयान एक बेहद ऊंचे पद पर बैठे व्यक्ति की ओर से आया है. हम सिर्फ़ ये कह सकते हैं कि ऐसा नहीं होना चाहिए.”
किरण रिजिजु ने एक निजी टीवी चैनल के कार्यक्रम में कहा था, “मैं कॉलेजियम सिस्टम की आलोचना नहीं करना चाहता. मैं सिर्फ इतना कहना चाहता हूं कि इसमें कुछ कमियां हैं और जवाबदेही नहीं है. इसमें पारदर्शिता की भी कमी है. अगर सरकार ने फाइलों को रोककर रखा हुआ तो फाइलें न भेजी जाएं.”
इस पर कोर्ट ने कहा है कि ‘जब एक बार नामों को आगे बढ़ा दिया गया है तो कानून के हिसाब से प्रक्रिया यहीं ख़त्म होती है. आप उन्हें रोककर नहीं रख सकते. ये स्वीकार्य नहीं है. कई नामों पर फ़ैसला डेढ़ साल से भी ज़्यादा समय से लंबित है. आप ये कैसे कह सकते हैं कि आप नामों पर फ़ैसला नहीं ले सकते? हम आपको ये बता रहे हैं कि नामों को इस तरह लंबित रखकर आप उन हदों को पार कर रहे हैं जिनसे वापसी संभव नहीं है.”