आचार्य रजनीश ओशो
एक ऐसे गुरु जो स्वयं यह कहते रहे कि
“गुरु तो तट है अगर तुमने जीवन लहर से निकलकर तट को भी पकड़े रखा तो आगे कैसे बढ़ सकोगे ?”
ओशो को जानने वाला यह समझता है कि आज वो सामने होते तो क्या कह रहे होते, वो जानता है हर वक़्त उसके मुख से ओशो के ही सिद्धांत प्रखर हो रहें हैं, ऐसी बात जो बेबाक हैं, निडर हैं, सबके लिए न्यायपूर्ण हैं।
ओशो को जिसने सुना है, जिसने जाना है वो समझता है कि ओशो ज्ञान के एक विशाल सागर हैं जिसमें जीवन रहस्य को जान लेने और समझ लेने कि कई और सम्भावनाएं हैं । किसी व्यक्ति के समक्ष की परिस्तिथियां जैसे उसका पारिवारिक, आर्थिक समाजिक़, भौगोलिक वातावरण और विशेष रूप से शिक्षा एवं उस व्यक्ति का अंतर्ज्ञान से ही उसके व्यक्तित्व का निर्माण होता है ।