एक बार मोदी को हराना जरूरी है ! सबने देखा पर समझा किस किस ने ?

श्रीमद्भागवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा है कि

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन ।

मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि ॥

इसका भावार्थ है : तेरा कर्म करने में ही अधिकार है, उसके फलों में कभी नहीं। इसलिए तू कर्मों के फल हेतु मत हो तथा तेरी कर्म न करने में भी आसक्ति न हो।

हम सभी ने हमेशा से सुना कि कर्म करो फल की चिंता न करो … और बहुत गौर से समझने वाली बात यह है कि हमें केवल “चिंता” न करने को कहा गया है.. ‘कर्म’ या कहें कि ‘सद्कर्म’ करने से नही रोका गया है।

आज यह यह बात इसलिए कर रहें हैं कि आपको समझा सकें कि कैसे हमारे रोजमर्रा के जीवन मे स्वयं के साथ या हमारे आसपास कोई और व्यक्ति किस तरह से मूल बात को न समझकर से उसे अति चरम पर ले जाकर अच्छे खासे ज्ञान का कबाड़ा कर रहा है।

पहला उदाहरण : एक ने मां अपनी संतान के बढ़ते वज़न से परेशान होकर उसे संतुलित भोजन सही मात्रा में करने की हिदायत क्या दे दी.. बच्चे ने खाना ही छोड़ दिया।

दूसरा उदाहरण : अपने जवान बेटे को अधेड़ दंपत्ति ने रात घर देर से आने पर फटकार लगा दी.. कड़ी फटकार उसके मित्रों के सामने.. लड़के ने घर से बाहर कदम रखना ही बन्द कर दिया। वह तब तक घर से नही निकला जब तक अच्छे खासे माँ बाप बेबस होकर बीमार नही पड़ गए।

ऐसे हजारों उदाहरण हमारी जिंदगी में आम हैं जिन्हें हम लगातार देख रहे हैं, ऐसा बिल्कुल नही है कि यह वर्तमान की कोई ‘मॉर्डन जिद’ है। बात तो केवल यह है कि यह किसी विचार.. किसी ‘ज्ञान’ को एकतरफा गलत तौर पर ग्रहण कर लेना है अथवा एकतरफा उसके विरोध में खड़े हो जाना है।

आज हम विस्तार से इस पर उल्लेख कर रहें हैं शोशल मीडिया पर एक वायरल वीडियो को लेकर.. वीडियो जिसमें जिसमें अपनी स्कूल और शिक्षा प्रणाली से पूरी तरह परेशान एक छोटी बच्ची अपनी बात कह रही है। जो पूरे दिन भर के उसके एक एक पल का हिसाब बता रही है। बच्ची बता रही है कि वह बिल्कुल भी खुश नही है। यह वीडियो इस बिंदु से और अधिक वायरल होता है जब अच्छी खासी बात करती हुई बच्ची के मुंह में पास खड़े व्यक्ति द्वारा शब्द डाले जाते हैं कि .. “एक बार मोदी को हराना जरूरी है”.

हमारे लिए यह महज एक बच्ची का कोई मनोरंजक वीडियो नही है जिसे सिखाकर समझाकर किसी ने योजनाबद्ध तरीके से गढ़ दिया हो। हम इसे पूरी संजीदगी से समझने के प्रयास में जुट जातें हैं।

इस पर हमने कुछ लोगों की प्रतिक्रिया जाननी चाही तब इस विषय पर लिखना कहना और ज्यादा आवश्यक लगने लगा ..

एक सज्जन ने कहा :- “अक्सर स्कूल में.. अच्छे विद्यालयों में.. पढ़ाई का दबाव तो होता ही है, जितना अधिक दबाव छात्र उतनी ही उन्नति करते हैं।

एक अन्य :

“हमने भी ऐसे ही पूरा बचपन जिया है और तब जो मेहनत हमने की उसका फल आज हम भोग रहे हैं, वीडियो में बच्ची कुछ अधिक नकारात्मक है, घरवालों ने उस पर कम ध्यान दिया है।”

ऐसा कहने वाले महानुभाव स्वयं एक पिता भी हैं। और भी हैं जो इससे इतर राय रखते हैं उनकी बात ही हम आपको पहुँचाने का प्रयत्न कर रहें हैं।

जैसा कि हमारे ब्लॉग के आरम्भ में उल्लेख किया गया कि अच्छे विचार को एकतरफा बनाकर उसे चरम तक ले जाने से बचा जाना अतिआवश्यक है। क्योंकि…

हम ऐसे देश मे रह रहे हैं जहाँ शिक्षा संबंधित सुविधाओं का विस्तार कभी भी वर्तमान या बढ़ती हुई जनसंख्या के अनुपात में सही नही रह सका है। हमने जिस तरह की शिक्षण प्रणालियों को विकसित किया है वह न तो दोषमुक्त हैं और न ही आज वैश्विक प्रतियोगिताओं में कही स्थान बना पाती हैं। सत्य तो यह है कि हमारे विश्वविद्यालय दुनिया की सबसे अच्छे पहले “सौ” में भी अपना स्थान बनाने में सफल नही हैं। और सबसे महत्वपूर्ण यह तथ्य है कि भारत को आज न केवल शिक्षा पर खर्च किये जाने वाले बजट को बढाने की आवश्यकता है बल्कि शिक्षण प्रणाली में मूलभूत सुधार को अपनी प्राथमिकता देना बहुत जरूरी है।

समझिए अगर अच्छे संस्थानों में पढ़ाई के अवसर ही कम हैं, पढ़ाई के बाद नौकरीयां कम है, रोजगार की जद्दोजहद अपने चरम पर है अधिकांश संस्थान धन कमाने की मशीन मात्र बनकर गुणवत्ता की शिक्षा प्रदान करने में नाकाम सिद्ध हो रहें हैं तब …इस सब पर ध्यान देने के बाद पुनः विचार करें तो आप समझेंगे की पूरी तरह एक पहिया कैसे घूमकर बचपन को प्रभावित कर रहा है।

हाल ही में मध्यप्रदेश की कमलनाथ सरकार ने अपनी एक बैठक में घोषणा की नई शिक्षा नीति की महती आवश्यकता है क्योंकि शिक्षण के वर्तमान वैश्विक वातावरण में हम काफी पीछे हैं और हमारी शिक्षण पद्धति आज पिछड़ी साबित हो रही है। प्रयोग के तौर पर मध्यप्रदेश में एक हजार विद्यालयों का चयन किया जा रहा है। इस सकारात्मक दृष्टिकोण को विस्तार की आवश्यकता है।

बच्चों का बचपन तनाव और दबाव का शिकार हो रहा है क्योंकि इस सब सच्चाइयों के बाद भी उनके माता पिता समाज की भीड़ का हिस्सा बन चुके हैं जो समझते हैं कि यही उनके साथ हुआ है और आज सभी के बच्चों के साथ हो रहा है।

यह सभी को समझना होगा कि यदि उन्हें ‘ज्ञान’ दिया गया है कि

“बच्चों में छुपी हुई प्रतिभा होती है.. कोई संगीत में रुचि रखता है कोई चित्रकला या पेंटिंग में या किसी खेल विशेष ख़ास दिलचस्पी होती है जो उसका भविष्य बना सकती है” – तब माता पिता इन किसी भी रुचियों में निखार के लिये अच्छी सुविधा और वातावरण बच्चों को प्रदान कर सकते हैं लेकिन इसका अर्थ यह बिल्कुल नही है कि वे उन पर इसका भी असंतुलित बोझ लादकर निश्चिंतता से अपने कामों में व्यस्त हो जाएं।”

बच्चे अलग अलग फूल की तरह हैं सबकी खुशबू अलग अलग है। कोई अभिभावक सोच समझकर इस बात से इंकार नही कर सकता है कि प्रतियोगिता और संघर्ष लगातार बढ़ रहें हैं।
अपना और अपनों का ख्याल रखिये।

Leave a Reply