चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया दीपक मिश्रा के खिलाफ लाया गया महाभियोग प्रस्ताव का नोटिस सोमवार को उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति एम. वेंकैया नायडू ने खारिज कर दिया। इसमें कहा गया है कि नोटिस में चीफ जस्टिस पर लगाए गए आरोपों को मीडिया के सामने उजागर किया गया, जो संसदीय गरिमा के खिलाफ है। साथ ही कहा गया है कि उन्होंने तमाम कानूनविदों से चर्चा के बाद पाया कि यह प्रस्ताव तर्कसंगत नहीं है। बता दें कि इस नोटिस पर विपक्ष के 64 सांसदों ने हस्ताक्षर किए थे और उन्हें हटाने के लिए 5 वजहों को आधार बनाया था।
उपराष्ट्रपति ने नोटिस खारिज करने की ये वजह गिनाईं
1) ऐसा प्रस्ताव लाने के लिए एक पूरी संसदीय परंपरा है। राज्यसभा के सदस्यों की हैंडबुक के पैराग्राफ 2.2 में इसका जिक्र है। यह पैराग्राफ ऐसे नोटिस को सार्वजनिक करने से रोकता है। मुझे यह नोटिस सौंपने के तुरंत बाद 20 अप्रैल को सदस्यों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस बुला ली और आरोपों को सार्वजनिक किया। यह संसदीय गरिमा के खिलाफ है। ये अनुचित है और सीजेआई के पद की अहमियत कम करने वाला कदम है। मीडिया में बयानबाजी से माहौल खराब होता है।
2) नोटिस उचित तरीके से नहीं दिया गया है। किसी के महज विचारों के आधार पर हम गवर्नेंस के किसी स्तंभ को कमजोर नहीं होने दे सकते। चीफ जस्टिस की अक्षमता या उनके द्वारा पद के दुरुपयोग के आरोप को साबित करने के लिए विश्वसनीय और सत्यापित करने योग्य जानकारी होनी चाहिए।
3) सांसदों ने जो भी आरोप लगाए हैं उनमें कोई ठोस सबूत और बयान नहीं दिए गए। नोटिस में जो आरोप लगाए हैं, वो बुनियादी तौर पर न्यायपालिका की आंतरिक प्रक्रियाओं से जुड़े हैं। ऐसे में इन पर आगे जांच की जरूरत नहीं है।
4) सभी पांच आरोपों पर गौर करने के बाद ये पाया गया कि ये सुप्रीम कोर्ट का अंदरूनी मसला है। ऐसे में महाभियोग के लिए ये आरोप स्वीकार नहीं किए जा सकते।
5) सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों ने अपने आदेश में ये साफ कहा है की चीफ जस्टिस ही मास्टर ऑफ रोस्टर हैं और वे ही तय कर सकते हैं कि मामला किसके पास भेजा जा सकता है।
सभापति ने चीफ जस्टिस को छोड़कर हर वर्ग से की बात
– सभापति एम वेंकैया नायडू ने अपने 10 पेज के फैसले में बताया कि विपक्षी दलों के नोटिस को अस्वीकार करने से पहले उन्होंने कानूनविदों, संविधान विशेषज्ञों, लोकसभा और राज्यसभा के पूर्व महासचिवों, पूर्व विधिक अधिकारियों, विधि आयोग के सदस्यों और न्यायविदों से सलाह-मशविरा किया।
– उन्होंने पूर्व अटॉर्नी जनरलों, संविधान विशेषज्ञों और प्रमुख अखबारों के संपादकों के विचारों को भी पढ़ा।
– नायडू ने अपने फैसले में साफ किया कि चूंकि इस मामले में नोटिस चीफ जस्टिस के खिलाफ ही है, इसलिए उनसे कोई चर्चा नहीं की गई।
विपक्ष ने चीफ जस्टिस पर ये 5 आरोप लगाए थे
– कांग्रेस ने राज्यसभा के सभापति को सौंपे सांसदों के नोटिस का हवाला देते हुए वो पांच आरोप बताए, जिनके आधार पर चीफ जस्टिस के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव का नोटिस लाया गया।
1) पहले आरोप के बारे में सिब्बल ने कहा, ‘”हमने प्रसाद एजुकेशन ट्रस्ट मामले में उड़ीसा हाईकोर्ट के एक रिटायर्ड जज और एक दलाल के बीच बातचीत के टेप भी राज्यसभा के सभापति को सौंपे हैं। ये टेप सीबीआई को मिले थे। इस मामले में चीफ जस्टिस की भूमिका की जांच की जरूरत है।’’
2) ‘”एक मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक जज के खिलाफ सीबीआई के पास सबूत थे, लेकिन चीफ जस्टिस ने सीबीआई को केस दर्ज करने की मंजूरी नहीं दी।’’
3) ‘”जस्टिस चेलमेश्वर जब 9 नवंबर 2017 को एक याचिका की सुनवाई करने को राजी हुए, तब अचानक उनके पास सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री से बैक डेट का एक नोट भेजा गया और कहा गया कि आप इस याचिका पर सुनवाई नहीं करें।’’
4) ‘”जब चीफ जस्टिस वकालत कर रहे थे तब उन्होंने झूठा हलफनामा दायर कर जमीन हासिल की थी। एडीएम ने हलफनामे को झूठा करार दिया था। 1985 में जमीन आवंटन रद्द हुआ, लेकिन 2012 में उन्होंने जमीन तब सरेंडर की जब वे सुप्रीम कोर्ट में जज बनाए गए।’’
5) ‘”चीफ जस्टिस ने संवेदनशील मुकदमों को मनमाने तरीके से कुछ विशेष बेंचों में भेजा। ऐसा कर उन्होंने अपने पद का दुरुपयोग किया।’’
कांग्रेस ने कहा- वजह जानने के बाद आगे फैसला लेंगे
– कांग्रेस नेता पीएल पुनिया ने सोमवार को कहा कि उपराष्ट्रपति ने महाभियोग का नोटिस किस आधार पर नामंजूर किया इसका पता नहीं है। हम वजह नहीं जानते हैं। कांग्रेस और दूसरी पार्टियां कानूनविदों से चर्चा करेंगी और अगला कदम उठाएंगी।
– भाजपा नेता और राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा कि उन्होंने (वेंकैया नायडू) बहुत सही तरीके से फैसला लिया है। इस पर निर्णय लेने में दो दिन की जरूरत नहीं थी। इसे शुरुआत से ही अमान्य माना जाना चाहिए था। ऐसा कर कांग्रेस ने खुदकुशी की है।
जस्टिस सोढ़ी ने कहा- फैसला पक्षपातपूर्ण नहीं है
– महाभियोग प्रस्ताव का नोटिस रद्द किए जाने के फैसले पर जस्टिस (रिटायर्ड) आरएस सोढ़ी ने कहा, “आप जानते हैं कि आपके पास कोई आधार नहीं है, आप जानते हैं कि आप उन्हें आरोपित नहीं कर सकते। इसके बावजूद आपने यह दुर्भाग्यपूर्ण कदम उठाया। इसे पक्षपातपूर्ण फैसला नहीं माना जा सकता।”
हैदराबाद दौरा अधूरा छोड़कर लौटे थे नायडू
– वेंकैया नायडू रविवार को अपनी हैदराबाद यात्रा बीच में छोड़कर दिल्ली लौट आए थे।
– दिल्ली पहुंचते ही उन्होंने महाभियोग पर अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल, लोकसभा के पूर्व महासचिव सुभाष कश्यप, पूर्व विधि सचिव पीके मल्होत्रा और पूर्व विधायी सचिव संजय सिंह से कानूनी और संवैधानिक मुद्दों पर चर्चा की। उन्होंने राज्यसभा सचिवालय के अधिकारियों और सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस बी. सुदर्शन रेड्डी से भी बात की।
नोटिस पर 71 सदस्यों के दस्तखत थे
– कांग्रेस समेत सात दलों ने 20 अप्रैल को राज्यसभा सभापति को चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने का नोटिस दिया था। इस पर 71 सदस्यों के हस्ताक्षर थे। जिनमें से सात सेवानिवृत्त हो चुके हैं।