बीजेपी क्यों चाहती है कि लंबा चले राजस्थान में कांग्रेस की सियासी जंग

राजस्थान में चल रहे सियासी उठापटक पर बीजेपी का कहना है कि ये कांग्रेस की अंदरूनी लड़ाई है. इसका बीजेपी से कोई लेना देना नहीं है. दूसरी तरफ बीजेपी यह भी कह रही है कि वो अभी राजस्थान के राजनैतिक हालात पर नजर बनाए हुए है.

बताया जाता है कि बीजेपी चाहती है कि राजस्थान में कांग्रेस की आपसी लड़ाई लंबी चले. पार्टी सूत्रों के मुताबिक अशोक गहलोत और सचिन पायलट और उनके समर्थकों के बीच लड़ाई जितनी लंबी चलेगी उसको उतना ही फायदा होगा.

बहुमत का गणित बीजेपी के हक में नहीं

बीजेपी ये बात भी अच्छी तरह से जानती है कि सचिन पायलट और उनके समर्थक विधायकों की संख्या सिर्फ 19 है, और इस समीकरण से विधानसभा का गणित बीजेपी के पक्ष में नहीं बैठता है.

राजस्थान में विधानसभा की कुल 200 सीटें हैं. इस वक्त 107 सीटें कांग्रेस के पास, 72 बीजेपी, 13 निर्दलीय, 3 आरएलपी, 2 सीपीएम, 2 बीटीपी और 1 आरएलडी के पास है.

यदि सचिन पायलट समेत उनके समर्थक 19 विधायक इस्तीफा दे दें या व्हिप का उल्लंघन करने पर उनकी सदस्यता को रद्द कर दिया जाए तो कांग्रेस के पास विधायकों की संख्या 88 रह जाएगी.

इसके अलावा कांग्रेस को 10 निर्दलीय, 2 बीपीटी, 2 सीपीएम और एक आरएलडी विधायक का समर्थन प्राप्त हैं यानी की कांग्रेस के पास कुल 103 विधायकों का समर्थन हो जाता है. ये संख्या बहुमत से दो विधायक अधिक है.

दूसरी तरफ बीजेपी के पास खुद 72 विधायक हैं और उसे हनुमान बेनीवाल की पार्टी आरएलपी के तीन विधायकों का समर्थन प्राप्त है, इस तरह से बीजेपी को 75 विधायकों का समर्थन हो जाता है.

मामले को लंबा खींचना चाहती है बीजेपी

इन राजनीतिक समीकरणों को देखते हुए बीजेपी अभी पूरे मामले को टालना चाहती है. बीजेपी की पूरी कोशिश है कि सचिन पायलट के समर्थन में कांग्रेस के कुछ और विधायक आ जाए इसलिए बीजेपी सचिन पायलट और समर्थक विधायकों की बगावत के बाद भी अशोक गहलोत सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाई है.

दूसरी तरफ सचिन पायलट के समर्थक 18 विधायकों ने अपनी ही सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला है. पिछले दो हफ्ते से सचिन पायलट के सभी समर्थक विधायक बीजेपी शासित राज्य हरियाणा के फाइव स्टार होटल में पिछले दो हफ़्ते से अधिक समय से ठहरे हुए हैं.

सचिन पायलट गुट भी मामले को लंबा खींचना चाहता है. इसलिए स्पीकर के नोटिस को हाई कोर्ट में कोर्ट में चैलेंज किया गया था. हाई कोर्ट का फैसला सचिन पायलट के समर्थक विधायकों के पक्ष में आने के बाद अब स्पीकर सभी बागी विधायकों के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर पाएंगे. मतलब साफ है कि अब ये मामला लंबा चलने वाला है.

विधानसभा सत्र बुलाने का प्रस्ताव दो बार खारिज

विधानसभा सत्र को जल्दी बुलाने के प्रस्ताव को राज्यपाल कलराज मिश्र दो बार वापस भेज चुके हैं. पहली बार राज्यपाल ये तर्क दिया कि अभी राजस्थान समेत पूरा देश COVID-19 के संक्रमण से जूझ रहा है, तब आप किसी विशेष कार्य के लिए विधानसभा का विशेष सत्र क्यों बुलाना चाहते हैं इसका प्रस्ताव में वर्णन नहीं है. यदि आपको विधानसभा के विशेष सत्र में बहुमत सिद्ध करना है तो इसको कैबिनेट द्वारा पास प्रस्ताव में मेन्शन कीजिए और साथ में ये भी प्लान बताइए कि विधानसभा के सत्र के दौरान सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए बैठने की व्यवस्था कैसे की जाएगी?

दूसरी बार राज्यपाल ने गहलोत सरकार के विधानसभा सत्र को बुलाने के प्रस्ताव को ये कहकर रिजेक्ट कर दिया कि कैबिनेट ने विधानसभा सत्र बुलाने के जो कारण प्रस्ताव में दिए हैं वो विशेष सत्र बुलाने के लिए उपयुक्त नहीं हैं. साथ ही राज्यपाल ने ये भी कहा कि आप विधानसभा सत्र बुलाना चाहते हैं तो इसके लिए जो नियम है उसके तहत प्रस्ताव दें यानी कि विधानसभा के सत्र और नोटिस के बीच 21 दिन का समय चाहिए.

बागी विधायकों के कांग्रेस में वापसी के रास्ते बंद

मतलब साफ है कांग्रेस की आपसी लड़ाई में बीजेपी के दोनों हाथों में लड्डू है, क्योंकि सचिन पायलट और उनके समर्थकों ने जिस तरह से अशोक गहलोत सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला है उसने गहलोत सरकार की नींव हिला दी है. अब इन विधायकों के कांग्रेस में वापसी के सारे रास्ते बंद हो चुके हैं.

बीजेपी को यकीन सचिन पायलट थामेंगे कमल

बीजेपी अच्छी तरह से जानती है कि आज नहीं तो कल सचिन और उनके समर्थक विधायकों की विधानसभा सदस्यता जानी है. भले ही आज सचिन पायलट और उनके समर्थक विधायक कह रहे हों कि वह बीजेपी में शामिल नहीं होंगे लेकिन सदस्यता जाने के बाद उनके पास दो ही विकल्प बचेंगे एक वो अलग मोर्चा बनाकर उपचुनाव में जाए या फिर बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ें. इतना तय कि अगर इस बार अशोक गहलोत सरकार बच भी गई तो सरकार पर खतरा हमेशा मंडराता रहेगा, क्योंकि बीजेपी लड़ाई बीच में छोड़ने वाली नहीं है.

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