बांग्लादेश में चुनाव को लेकर रूस और अमेरिका आमने-सामने क्यों हैं ?

रूस ने दावा किया है कि अमेरिका और उसके सहयोगी देश बांग्लादेश के चुनाव को पारदर्शी और समावेशी बनाने के बहाने देश की घरेलू राजनीतिक प्रक्रिया को प्रभावित करने का प्रयास कर रहे हैं.

बांग्लादेश में सात जनवरी को चुनाव है. मॉस्को में रूसी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता मारिया जखारोवा ने बुधवार की प्रेस ब्रीफिंग के दौरान बांग्लादेश में अमेरिकी राजदूत पीटर हास पर ढाका में सरकार विरोधी रैली की योजना बनाने में शामिल होने का आरोप लगाया. अमेरिका ने इस बारे में अब तक कोई टिप्पणी नहीं की है.

हालांकि अमेरिका बीते क़रीब दो वर्षों से बांग्लादेश के 12वें संसदीय चुनाव के स्वतंत्र और निष्पक्ष आयोजन के लिए सरकार के ऊपर दबाव बना रहा है.

इस चुनाव में बाधा पहुँचाने वाले लोगों के लिए घोषित अमेरिकी वीज़ा नीति को भी लागू कर दिया गया है.

दूसरी ओर, रूस पहले भी अमेरिका के ख़िलाफ़ बांग्लादेश की आंतरिक राजनीति में हस्तक्षेप का प्रयास करने का आरोप लगा चुका है.

इस साल जनवरी में अमेरिकी विदेश मंत्रालय की नियमित ब्रीफिंग में प्रवक्ता नेड प्राइस ने ऐसे बयान को रूसी प्रॉपेगैंडा बताया था.

प्राइस ने तब कहा था, “हम अमेरिका की कूटनीतिक मौजूदगी वाले तमाम देशों में राजनीतिक क्षेत्र के विभिन्न शक्तियों से नियमित रूप से मुलाक़ातें करते हैं और इनमें बांग्लादेश भी शामिल है.”

लेकिन अमेरिकी प्रशासन ने अब तक रूस के इस ताजा दावे पर कोई टिप्पणी नहीं की है, जिसमें उसने कुछ ठोस तथ्यों के साथ ढाका में तैनात अमेरिकी राजदूत पर विरोधी दल के साथ मिलीभगत के आरोप लगाए हैं.

बांग्लादेश के पूर्व विदेश सचिव तौहीद हुसैन और अंतरराष्ट्रीय संबंधों के प्रोफ़ेसर और विश्लेषक शहाब एनाम खान, दोनों का कहना है कि भू-राजनीतिक वजहों से ही अमेरिका और रूस की सक्रियता बढ़ी है.

ये लोग मानते हैं कि रूस अमेरिका के जिन कार्यक्रमों को बांग्लादेश की घरेलू राजनीति में अपना प्रभाव बढ़ाने या हस्तक्षेप के तौर पर देखता है, वह ख़ुद भी इन्हीं मुद्दों पर अपना प्रभाव बढ़ाने का प्रयास कर रहा है.

वॉशिंगटन स्थित विल्सन सेंटर के साउथ एशियन इंस्टीट्यूट के निदेशक माइकल कुगलमैन का कहना है कि यह मामला अमेरिका और रूस के बीच कड़वे द्विपक्षीय संबंधों को बताता है. इसकी वजह से बांग्लादेश उनकी आपसी प्रतिद्वंद्विता का मंच बन गया है.

दूसरी ओर विपक्षी दल बीएनपी ने शनिवार को जारी एक बयान में कहा है कि रूसी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता की टिप्पणी बांग्लादेश के लोगों की पारदर्शी और समावेशी चुनाव की इच्छा और स्थिति के विपरीत है.’

क्या कहा है रूस के विदेश मंत्रालय ने

बांग्लादेश स्थित रूसी दूतावास के वेरिफाइड फ़ेसबुक पेज पर मॉस्को स्थित विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मारिया जखारोवा की टिप्पणी उनकी तस्वीर के साथ पोस्ट की गई है.

उन्होंने इसमें कहा है, “हम बार-बार यह मुद्दा उठाते रहे हैं कि अमेरिका और उसके सहयोगी देश बांग्लादेश के चुनाव को पारदर्शी और समावेशी बनाने की आड़ में देश की घरेलू राजनीतिक प्रक्रिया को प्रभावित करने का प्रयास कर रहे हैं.”

उनका आरोप है कि ढाका में तैनात अमेरिकी राजदूत पीटर हास ने अक्तूबर के आख़िर में एक सरकार विरोधी रैली के आयोजन के लिए स्थानीय विपक्षी पार्टी के एक सदस्य के साथ मुलाक़ात की थी.

यहाँ इस बात का ज़िक्र प्रासंगिक है कि बीते 28 अक्तूबर को ढाका में बीएनपी की महारैली थी. उसके बाद से पार्टी लगातार हड़ताल और अवरोध जैसे कार्यक्रम आयोजित करती रही है. इसी बीच, बीते 13 नवंबर को अमेरिका के सहायक विदेश मंत्री (दक्षिण और मध्य एशिया) डोनाल्ड लू ने सत्तारूढ़ अवामी लीग, विपक्षी बीएनपी और जातीय पार्टी को बिना शर्त बातचीत की अपील करते हुए पत्र भेजा था.

इसके जवाब में अवामी लीग ने कहा है कि फ़िलहाल ऐसी बातचीत के लिए समय नहीं है. दूसरी ओर, बीएनपी का कहना है कि बातचीत का माहौल तैयार करने की ज़िम्मेदारी सरकार की है.

दोनों दलों के इस परस्पर विरोधी रुख़ के बीच चुनाव आयोग ने सात जनवरी को मतदान की तारीख तय कर चुनाव कार्यक्रम की घोषणा कर दी है.

तौहीद हुसैन कहते हैं, “चुनाव या राजनीति पर दोनों देशों के बीच बातचीत के बावजूद असली मुद्दा भू-राजनीतिक है. इसी वजह से अगर अमेरिका कुछ कहता है तो रूस भी अपना रुख़ स्पष्ट करता है.”

यहाँ इस बात का ज़िक्र ज़रूरी है कि वर्ष 2014 के चुनाव के बाद अमेरिका और पश्चिमी देशों के बांग्लादेश की आलोचना के बावजूद चीन, भारत और रूस ने ऐसा नहीं किया है.

क्या नया है रूस का आरोप?

बीते साल के आख़िर में बांग्लादेश के मुद्दे पर रूस और अमेरिका का परस्पर विरोधी रुख़ सामने आया है.

ख़ासकर बांग्लादेश में अपने राजनयिकों की गतिविधियों पर दोनों महाशक्तियों ने एक-दूसरे के ख़िलाफ़ आरोप-प्रत्यारोप लगाए थे.

बीते साल 14 दिसंबर को ढाका में बीएनपी के एक लापता नेता के घर से लौटते समय अमेरिकी राजदूत पीटर हास को एक समूह के विरोध प्रदर्शन का सामना करना पड़ा था.

तब रूसी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मारिया जखारोवा ने एक बयान में कहा था, “यह घटना एक अमेरिकी राजनयिक की गतिविधियों का अपेक्षित नतीजा है. वे बांग्लादेश के आम लोगों के हितों की रक्षा की दलील देते हुए देश की घरेलू राजनीतिक में धीरे-धीरे अपना प्रभाव बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं.”

उसके बाद 20 दिसंबर को रूसी दूतावास की ओर से जारी एक बयान में कहा गया था, “रूस बांग्लादेश समेत तमाम देशों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने की नीति के प्रति दृढ़ता से कृतसंकल्प है.”

इसके अगले ही दिन अमेरिकी दूतावास ने अपने एक ट्वीट में रूसी दूतावास के उस बयान को शेयर करते हुए सवाल किया कि क्या यह यूक्रेन के मामले में भी लागू है?

इस मुद्दे पर दोनों देशों के ढाका स्थित दूतावास ने कई ट्वीट और जवाबी ट्वीट किए थे. उसके बाद 22 दिसंबर को मारिया जखारोवा ने एक बार फिर टिप्पणी की.

उन्होंने कहा था, “हाल में उनके (पीटर हास के) ब्रिटिश और जर्मन मिशन के सहयोगी भी इसी तरह काम में शामिल हो गए हैं और अगले साल के आख़िर में होने वाले संसदीय चुनाव की पारदर्शिता और उसके समावेशी होने के मुद्दे पर लगातार बयान दे रहे हैं. हमारा मानना है कि संप्रभु देशों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने के सिद्धांत का उल्लंघन करने वाली ऐसी गतिविधियां अस्वीकार्य हैं.”

माइकल कुगलमैन ने बीबीसी बांग्ला से कहा है कि दोनों महाशक्तियों के बीच प्रतिस्पर्धात्मक प्रवृत्ति है. उनका कहना था, “इस रणनीतिक पहलू को ध्यान में रखते हुए कहा जा सकता है कि मॉस्को की ओर से वॉशिंगटन को शर्मिंदा करने के लिए हर मौक़े का इस्तेमाल करने का मामला कोई आश्चर्यजनक नहीं हैं.रूस जानता है कि ढाका को बांग्लादेश की राजनीति पर अमेरिकी नीति पसंद नहीं है. यही वजह है कि वह इस मामले में खुल कर आगे बढ़ रहा है.”

चुनाव और राजनीति के मुद्दे पर रूस उत्साहित क्यों

बांग्लादेश में वर्ष 1975 में देश के संस्थापक राष्ट्रपति शेख मुजीब-उर रहमान हत्याकांड और सियासी बदलाव के बाद कई दशकों तक देश की चुनावी राजनीति में रूस की सक्रियता नजर नहीं आई थी. वह वर्ष 2010/12 के बाद धीरे-धीरे सक्रिय होने लगा.

इस साल सितंबर में रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोफ के ढाका दौरे से यह बात सामने आई कि रूस के लिए बांग्लादेश की ख़ास अहमियत है.

उनका यह दौरा ऐसे समय पर हुआ जब अमेरिका समेत तमाम पश्चिमी देश लोकतंत्र, मुक्त और निष्पक्ष चुनाव और मानवाधिकारों के मुद्दे पर बांग्लादेश पर दबाव बढ़ा रहे थे. उसके बाद रूस बांग्लादेश की राजनीति और चुनाव पर विभिन्न तरीके से प्रतिक्रिया जताता रहा है.

मॉस्को में पब्लिक डिप्लोमैसी के मुद्दे पर काम करने वाले संस्थान रसियन फ्रेंडशिप सोसाइटी विद बांग्लादेश के अध्यक्ष मिया सत्तार बीबीसी बांग्ला से कहते हैं, “अमेरिका की सरकार बदलने की नीति ही रूस की ऐसी प्रतिक्रिया की मूल वजह है. अमेरिका अपने हित में दुनिया में जहाँ भी सरकार बदलने की अनैतिक नीति को लागू करने का प्रयास करता है, रूस उसका विरोध करता है.”

”बांग्लादेश और रूस के संबंध ऐतिहासिक हैं और रूस इसे अहमियत देता है. लेकिन उसने कभी यहां सरकार बदलने या अपनी पसंदीदा सरकार के गठन का प्रयास नहीं किया है. इसके उलट उसने अमेरिका के ऐसे किसी भी प्रयास का विरोध किया है.”

ढाका में विश्लेषकों का कहना है कि रूपपुर परमाणु बिजली केंद्र ही रूस की सक्रियता की मूल वजह है. उसने इस केंद्र का निर्माण कार्य लगभग पूरा कर दिया है और इस बीच यूरेनियम की खेप भी बांग्लादेश पहुँच गई है.

तौहीद हुसैन का कहना है कि इससे पहले दोनों देशों में आपसी विनियम लगभग बंद पड़ा था. लेकिन रूपपुर के ज़रिए यह तेज़ी से बढ़ गया है.

वह कहते हैं, “रूपपुर के ज़रिए ही बदलाव आया है. अब उसके (रूस के) लिए स्थिरता बेहद ज़रूरी है. रूसियों की राय में एक सरकार के लंबे समय तक सत्ता में रहने की स्थिति में उनको कामकाज़ में सहूलियत होगी.”

शहाब एनाम खान भी तौहीद के कथन से सहमत हैं. उन्होंने बीबीसी बांग्ला से कहा कि रूस बांग्लादेश को सिविल न्यूक्लियर टेक्नोलॉजी की सप्लाई कर रहा है और उसी वजह से बांग्लादेश की घरेलू राजनीति और उसके साथ पश्चिमी देशों के संपर्क का मुद्दा उसके लिए महत्वपूर्ण है.”

”भू-रणनीतिक रूप से बांग्लादेश पहले के मुक़ाबले अब ज़्यादा अहम है. रूस के लिए घरेलू राजनीति में स्थिरता काफ़ी महत्वपूर्ण है क्योंकि उसका यूरेनियम इस समय बांग्लादेश में है. वह जिन देशों को यूरेनियम की सप्लाई करता है, उनके साथ पश्चिमी देशों के संबंधों को मुद्दा भी उसके (रूस के) लिए महत्वपूर्ण है.

हालांकि तौहीद हुसैन का कहना है कि बांग्लादेश पर अमेरिकी नीतियों में बदलाव भी रूस की सक्रियता की एक वजह है. वह कहते हैं, “अमेरिका और चीन को लेकर वैश्विक ध्रुवीकरण अब और अधिक स्पष्ट है. चीन रूस का रणनीतिक मित्र है. इन वजहों से रूस अमेरिका का आधिपत्य नहीं स्वीकार करना चाहता. इसके कारण बांग्लादेश की घरेलू राजनीति में भी वह अमेरिका और उसके मित्र देशों की भूमिका को स्वीकार नहीं कर पा रहा है.”

हुसैन और ख़ान दोनों का कहना है कि बांग्लादेश की राजनीति पर अमेरिका और रूस के परस्पर विरोधी बयानों के बावजूद हक़ीक़त में दोनों देश बांग्लादेश की घरेलू राजनीति पर लगातार बयान दे रहे हैं.

माइकल कुगलमैन का कहना है कि मॉस्को फ़िलहाल बांग्लादेश के साथ अपने मधुर संबंधों और वहाँ अपने निवेश का आनंद उठा रहा है. वह कहते हैं, “रूस अपने हित में बांग्लादेश को अहम मानता है. इस वजह से भी वह अमेरिकी नीति की आलोचना कर रहा है. इससे पहले भी दोनों देश ट्विटर पर एक-दूसरे के खिलाफ टिप्पणी करते रहे हैं.”

रूस की टिप्पणी पर बीएनपी का बयान

बीएनपी ने शनिवार को जारी एक बयान में कहा है कि रूसी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मारिया जखारोवा ने अपने एक्स (ट्विटर) हैंडल पर अमेरिका पर आरोप लगाते हुए जो टिप्पणी की है, उसने बांग्लादेश की आम जनता और बीएनपी का ध्यान आकर्षित किया है.

पार्टी के वरिष्ठ संयुक्त महासचिव रूहुल कबीर रिज़वी के हस्ताक्षर से जारी उस बयान में कहा गया है, “रूसी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता की टिप्पणी बांग्लादेश के लोगों की पारदर्शी और समावेशी चुनाव की इच्छा और स्थिति के विपरीत हैं. बीएनपी इस ग़लत सूचना और ग़लत व्याख्या से सहमत नहीं है.”

उसने कहा है कि ऐसे अवांछित और अनपेक्षित आरोप पहले नहीं लगाए गए हैं कि बीएनपी की रैली में किसी विदेशी राजनयिक ने सहायता की है.

बयान के मुताबिक, वास्तविकता से परे ऐसी टिप्पणी बांग्लादेश के लोगों की लोकतंत्र बहाल करने की आकांक्षाओं के ख़िलाफ़ है.

दरअसल, ज़खारोवा का दृष्टिकोण लोकतंत्र के पक्षधर लोगों की इच्छा को कमज़ोर करते हुए भ्रष्ट अवामी लीग सरकार के फासीवादी शासन का समर्थन करता है.

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