मध्य प्रदेश में गायों को तेज़ बहती नदी में फेंकने का पूरा मामला क्या है ?

मध्य प्रदेश के सतना ज़िले में पुलिस ने चार लोगों को गायों को तेज़ बहाव वाली नदी में ज़बरदस्ती बहाने के आरोप में गिरफ़्तार किया है.

यह मामला मंगलवार का है और इस घटना का वीडियो वायरल होने के बाद उन पर कार्रवाई की गई है.

वीडियो में देखा जा सकता है कि शहर के बमहौर इलाके़ के रेलवे पुल के नीचे उफनती नदी में गायों को खदेड़ा जा रहा है. इसके बाद कई गायें तेज़ बहाव में स्टॉप डैम में जा गिरीं.

जानकारी के मुताबिक़, कई के पैर टूट गए और कई मर गईं. स्थानीय लोगों का दावा है कि गायों की संख्या 20 के क़रीब थी और उसमें से लगभग आधा दर्जन गायों की मौत हो गई.

हालांकि, पुलिस का कहना है कि सही संख्या के बारे में जांच के बाद ही पता चल पाएगा. सब डिवीज़नल पुलिस ऑफिसर (एसडीपीओ) नागौद विदिता डागर ने बताया कि उन्हें इस घटना की जानकारी मिली थी कि कुछ लोग आवारा मवेशियों को रेलवे ब्रिज के नीचे धकेल रहे हैं.

उन्होंने आगे बताया, “मौके़ पर तफ्तीश करने के बाद चार लोगों के ख़िलाफ़ मामला दर्ज किया गया है. इनमें से तीन वहीं के निवासी हैं और एक नाबालिग़ को भी अभियुक्त बनाया गया है.”

गिरफ़्तार किए गए तीन लोग बेटा बागरी, रवि बागरी और रामपाल चौधरी क़रीब के ही एक गांव के निवासी हैं. चारों अभियुक्तों के ख़िलाफ़ 4/9 गोवंश प्रतिषेध अधिनियम और बीएनएस की धारा 325 (3/5) के तहत मुक़दमा दर्ज किया गया है.

ऐसे कई मामले सामने आ चुके हैं

कथित तौर पर अभियुक्तों ने ऐसा इसलिए किया क्योंकि वह आवारा पशुओं के फसलों को ख़राब करने से परेशान थे. लेकिन इस क्षेत्र में यह पहला मामला नहीं है.

इससे पहले भी रीवा ज़िले में दर्जनों गायों को पहाड़ी पर ले जाकर उन्हें वहां से नीचे धकेल दिया गया जिसमें कई गायों की मौत हो गई थी और कई गायों के पैर टूट गए थे. इस तरह की हैवानियत के कई मामले इस क्षेत्र में सामने आ चुके हैं.

क्षेत्र में काम करने वाले समाजसेवी शिवानंद द्विवेदी के अनुसार इस तरह के मामले अब आम हो चुके हैं.

उन्होंने बताया, “मशीनों की वजह से गायों और बैल की उपयोगिता पूरी तरह से ख़त्म हो गई है. गायों को लोग तभी तक रखते हैं जब तक उसके दूध का वो उपयोग कर सकें. उसके बाद उसे वो छोड़ देते हैं. अब खेती में बैलों की ज़रूरत नहीं रह गई है तो लोग उन्हें सड़कों पर छोड़ देते हैं जिनकी वजह से हादसे हो रहे हैं.”

उन्होंने कहा कि ज़रूरत इस बात की है कि इनकी उपयोगिता बनाई रखी जाए.

आवारा पशुओं की वजह से दुर्घटनाओं के मामले भी आए सामने

मध्य प्रदेश में आवारा पशुओं की समस्या गंभीर होती जा रही है. प्रदेश में सड़कों पर मौजूद आवारा पशुओं की वजह से कई लोगों की मौत हो चुकी है वहीं ग्रामीण इलाक़ों में यही आवारा पशु फसलों को नुक़सान पहुंचा रहे हैं.

भोपाल में 10 अगस्त को सड़क पर बैठी एक गाय से टकराने से एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर प्रत्यूष त्रिपाठी की मौत हो गई. प्रत्यूष अपने दोस्त के घर से लौट रहे थे और अंधेरे में बैठी गाय को नहीं देख पाए. गाय का सींग उनकी जांघ में घुस गया था. उन्हें अस्पताल ले जाया गया लेकिन बचाया नहीं जा सका.

भोपाल की 60 साल की मुन्नी बाई सोनकर वन विभाग में आउटसोर्स कर्मचारी थीं. पिछले हफ्ते काम करके वो शाम को ऑटो से घर लौट रही थीं. उसी समय सामने से आ रही गाय को बचाने की कोशिश में ऑटो पलट गया. ऑटो में चार लोग सवार थे. तीन लोगों को चोट लगी लेकिन मुन्नी बाई ऑटो के नीचे दब गई थीं. उन्हें निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया लेकिन इलाज के दौरान उन्होंने दम तोड़ दिया.

इस तरह के दर्जनों हादसे हर रोज़ प्रदेश की सड़कों पर हो रहे हैं. वैसे प्रदेश में गायों के लिए 1563 गौशालाएं संचालित हो रही हैं.

हालांकि, स्वीकृत गौशालाओं की संख्या 3200 से ज़्यादा है. लेकिन इतनी गौशालाएं होने के बावजूद हज़ारों आवारा पशुओं को अलग-अलग नेशनल हाईवे पर देखा जा सकता है. इसकी वजह से न सिर्फ़ हर रोज़ आवारा पशु मर रहे हैं बल्कि लोग भी घायल हो रहे हैं और कई मामलों में उनकी मौत भी हो जा रही है.

सरकार ने इस दिशा में क्या किया है?

सरकार ने इस समस्या से निपटने के लिए एक उच्च स्तरीय समिति का गठन इसी माह किया है.

सरकार 15 दिन का एक विशेष अभियान भी चला रही है ताकि आवारा पशुओं की समस्या से निपटा जा सके.

हालांकि इस तरह के अभियान सरकार ने पहले भी चलाए हैं लेकिन उनका कुछ नतीजा नहीं निकला है.

सरकारी आदेश में कहा गया है कि आवारा पशुओं के नियंत्रण के लिए प्राप्त सुझावों को इस विशेष अभियान में शामिल किया जाएगा. सड़कों पर बढ़ती समस्या से निपटने के लिये सरकार ने 2,000 लोगों को वॉलंटियर के तौर पर नियुक्त करने का फ़ैसला भी किया है.

इसके लिये नेशनल हाईवे पर स्थित 1,000 गांवों की ग्राम पंचायतों में दो-दो लोगों को नियुक्त किया जाएगा. इनका मुख्य उद्देश्य यही होगा कि वो गायों और दूसरे मवेशियों को मुख्य सड़क पर आने न दें. इसके लिये उन्हें 5,000 से लेकर 10,000 रुपये मानदेय के रूप में दिए जाएंगे.

इस बीच सरकार ने फ़ैसला किया है कि सड़कों पर मौजूद पशुओं को आवारा पशु नहीं कहा जाएगा.

आवारा पशु नहीं निराश्रित मवेशी

मंदसौर के पूर्व विधायक यशपाल सिंह सिसोदिया के मुताबिक़, मुख्यमंत्री मोहन यादव ने आदेश देकर “आवारा को निराश्रित मवेशी” करवा दिया है.

एमपी के सीएम मोहन यादव ने एक आदेश को संशोधित कराते हुए “आवारा की जगह अब निराश्रित मवेशी” करवा दिया है.

यशपाल सिंह सिसोदिया ने बताया, “इस समस्या से निपटने के लिये शहरों में गौ अभ्यारण बनाएं जाने चाहिये. गांवों में गौशालाएं हैं लेकिन शहरों में नहीं होने की वजह से सड़कों पर हादसे बढ़ रहे हैं.”

मध्य प्रदेश में सरकारी आंकड़ों के मुताबिक़, कुल 1.87 करोड़ गायें हैं.

सरकार ने गौशालाओं के लिये 252 करोड़ रुपये का प्रावधान किया है. सरकार ने इस बजट में अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए आवंटित राशि के एक हिस्से को गौ-कल्याण में ट्रांसफर कर दिया है. वहीं इसी साल सरकार ने गायों के लिये पहले मिलने वाले 20 रुपये के अनुदान को बढ़ा कर 40 रुपये कर दिया है.

मध्य प्रदेश गौ-पालन एवं पशुधन संर्वधन बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष स्वामी अखिलेश्वरानंद गिरि ने बताया कि प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव उनके बताए तमाम सुझावों को एक-एक कर लागू कर रहे हैं.

उन्होंने कहा कि बोर्ड ने गायों को लेकर एक स्टडी की थी और उनके अनुसार आज मध्य प्रदेश में कम से कम दस लाख गायें सड़कों पर हैं जिसकी वजह से यह स्थिति बन रही है.

उन्होंने कहा कि सरकार को गायों के लिये कई सुझाव दिए गए हैं. गिरि ने बताया, “सबसे पहले नेशनल हाईवे के किनारे वाली गायों को जो करीब की गौशालाएं हैं वहां पहुंचाया जाए. उसके बाद दूसरे नंबर पर वह गायें जो अनुपयोगी हो गई हैं उन्हें जंगल में छोड़ दिया जाए, उसके लिये जंगल गौवंश वन विहार बना देना चाहिये. तीसरा यह कि नेशनल हाईवे और चौराहों की गायों को नेशनल हाइवे के किनारे अस्थायी ठिकाने बनाकर रखा जाए. इसमें नेशनल हाईवे अथॉरिटी से दोनों तरफ फेंसिंग कराने को कहा है. ताकि गायों और इंसानी जान का नुकसान न हो.”

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