संस्कार कांवड़ यात्रा

29 जुलाई 2019 || प्रातः7 बजे || ग्वारीघाट सिद्ध घाट से कैलाश धाम तक ||

देश दुनिया की पहली राष्ट्र के हृदय नगर संस्कारधानी कीसंस्कार कांवड़ यात्रा निर्विकल्प है निर्विकार है क्यों ?
इसमें क्या ख़ास है जानिये एक नज़र-श्रावण मास में सदा शिव की उपासना का एक सहज सरल दिव्य महायोग है कावंड़ यात्रा।संस्कार कांवड़ यात्रा में जहां एक ओर जल दूसरी ओर देव वृक्षों को लेकर कावड़िया चलते है जलाभिषेक कर शिव स्वरूप देव वृक्षों का पूजन के साथ स्थापना अपने अपने स्थानों पर स्थापित कर राष्ट्र प्रेम एवं प्रकृति संरक्षण संवर्धन के दिव्य सन्देश के साथ भगवान भोलेनाथ की सगुण उपासना करते है।संस्कार कांवड़ यात्रा का महत्व इस यात्रा के स्थान से भी जुड़ा है जिसके कारण यह यात्रा परम् कल्याणकारी विशेषफलदायी हो जाती है देश दुनिया की पहली राष्ट्र के हृदय नगर संस्कारधानी कीसंस्कार कांवड़ यात्रा निर्विकल्प है निर्विकार है क्यों ?
इसमें क्या ख़ास है जानिये एक नज़र-श्रावण मास में सदा शिव की उपासना का एक सहज सरल दिव्य महायोग है कावंड़ यात्रा।संस्कार कांवड़ यात्रा में जहां एक ओर जल दूसरी ओर देव वृक्षों को लेकर कावड़िया चलते है जलाभिषेक कर शिव स्वरूप देव वृक्षों का पूजन के साथ स्थापना अपने अपने स्थानों पर स्थापित कर राष्ट्र प्रेम एवं प्रकृति संरक्षण संवर्धन के दिव्य सन्देश के साथ भगवान भोलेनाथ की सगुण उपासना करते है।संस्कार कांवड़ यात्रा का महत्व इस यात्रा के स्थान से भी जुड़ा है जिसके कारण यह यात्रा परम् कल्याणकारी विशेषफलदायी हो जाती है जानिये क्यों ?संस्कार कांवड़ यात्रा का प्रारम्भ जिस स्थान से होता है वह सिद्ध घाट ग्वारी घाट है जो भगवान श्री कृष्ण की योगलीला का केंद्र एवं महागुरु सिद्धनाथ दादा धूनी वाले एवं अनेक सिद्ध महायोगियों की साधना उपासना स्थली के साथ परम पवित्र तीर्थ क्षेत्र है लाखों भक्त प्रेमियों की आस्था का केंद्र है।कैलाश धाम मतामर यह प्राचीन स्थल कई सदियों से सिद्ध योगियों का प्रिय क्षेत्र रहा है
जहां कावड़िया कांवड़ में जल व देवव्रक्षो को लेकर जाते है कैलाश धाम में चमत्कारिक नर्मदेश्वर महादेव की स्थापना है
इस स्थान के समीप माँ नर्मदा एक कुण्ड में प्रगट हुई जो *परसराम कुण्ड* के नाम से आज भी विख्यात है।
यही परसुराम जी की तपोस्थली है।
संस्कार कांवड़ यात्रा एक अतिप्राचीन सिद्ध महातीर्थ की यात्रा है जो हमें सनातनी धर्म संस्कृति से जोड़ती है।त्रिपुरी दिव्य महातीर्थ जहाँ तैतीस कोटि देवताओं के साथ देवाधिदेव महादेव सदा विद्यमान रहते है इस तीर्थ को काशी के समतुल्य स्कन्द पुराण में कहा गया है।
संस्कारधानी की संस्कार कावंड़ यात्रा इसी त्रिपुरी महातीर्थ क्षेत्र में निकलती है।श्रावण मास सदा शिव का सबसे प्रिय मास है।
आइये जिस जल में सब तीर्थो का फल समाया ।
जिस जल का अम्रत पान सदाशिव नित्य करते
जिस जल के स्पर्श एवं दर्शन मात्र से रोग दोष बिघ्न बाधायेे दूर हो जाती है।
ऐसे अम्रत तुल्य जल के साथ देव व्रक्षो के साथ आइए सदा शिव के प्रिय श्रावण मास में शिव की सगुण उपासना से जुड़ कर प्रकृति संस्कृति की ओर चले।जलाभिषेक एवं कावंड़ का प्रारंभविश्व् कल्याण की भावना से सागर मंथन हुआ जिसमें अम्रत रत्न के साथ विष निकला जिसे देवाधिदेव महादेव ने ग्रहण किया।बिष के तेज़ से सारा सरीर अग्नि के समान जलने लगा तब अति तीक्ष्ण हलाहल विष की ज्वाला को शांत करने सभी देवों ने मिलकर सबसे पहले शिव का अभिषेक किया यही से प्रारम्भ हुई भगवान् भोले नाथ की *जलाभिषेक की परंपरा प्रारंभ हुई* ।
इस परंपरा की शुरुआत के पश्चात कांवड़ यात्रा का जन्म हुआ पहली कावड़ माँ गौरी ने उठाई कांवड़ में जल रखकर शिव को प्रसन्न करने प्रारंभ की।सदियों से चली आ रही ये परंपरा प्रसन्नता सम्पन्नता के लिए श्रृद्धा भाव के साथ आज भी श्रावण मॉस में लाखों श्रृद्धालु भगवान् भोले नाथ का कांवड़ में जल भरकर शिवालयों में जल अभिषेक के लिए निकलते है। सदियों से चली आ रही सनातन विश्व संस्कृति की अदभुत दिव्य परम्परा को माँ नर्मदा तट पर रेवाखंड के परमतपस्वि नर्मदा मिशन के संस्थापक समर्थ सद्गुरु भैयाजी सरकार ने एक नया स्वरूप दिया।
कांवड़ को प्रकृति प्रेम पूजा शक्ति की सगुण उपासना का एक आदर्श बनाया।
इस परम्परा से जन जन को राष्ट्र धर्म के साथ प्रकृति संस्कृति की ओर ले जाने का एक सहज महायोग बनाया।
सदाशिव के प्रिय श्रावण मास के द्वतीय सोमवार को यह यात्रा विगत 8 वर्षों से निकल रही ये 9 वां वर्ष है श्रावण मास के दूसरे सोमवार 29 जुलाई 2019 को प्रातः7 बजे तीर्थ क्षेत्र ग्वारीघाट सिद्ध घाट से कैलाश धाम तक आइये कावण यात्रा में शामिल होकर शिव की सगुण उपासना से जुड़ एक प्रकृति संस्कृति प्रधान समर्थ राष्ट्र का निर्माण करें।

संस्कार कावड़ यात्रा समिति जबलपुर
नर्मदा मिशन

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