सरकार ने रफ़ाल सौदे से जुड़े फ़ैसले पर अपने क़दम पीछे खींचते हुए सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि उसके पहले के शपथ पत्र में ‘टाइपिंग की ग़लती’ हो गई थी।

सरकार ने रफ़ाल सौदे से जुड़े फ़ैसले पर अपने क़दम पीछे खींचते हुए सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि उसके पहले के शपथ पत्र में ‘टाइपिंग की ग़लती’ हो गई थी। उसने अदालत से गुजारिश की है कि इस वजह से हुई तथ्यात्मक ग़लती सुधार ली जाए। इसे सरकार की ओर से ‘डैमेज कंट्रोल’ और फ़जीहत से बचने की कोशिश कहा जा सकता है।

शनिवार को दायर शपथ पत्र में सरकार ने कहा है कि उसने पहले जो शपथ पत्र दिया था, उसमें ‘टाइपिंग की ग़लती’ हो गई थी। उसमें सीएजी की रिपोर्ट देने की प्रक्रिया की बात कही जानी थी, लेकिन भूल से रिपोर्ट देने की बात कह दी गई थी। लिहाज़ा, सुप्रीम कोर्ट ने इसे भूल समझा था। अब वह इस तथ्यात्मक ग़लती को ठीक कर ले।

सरकार ने शपथ पत्र में कहा है कि उन्होंंने जो नोट भेजा था, उसमें लिखा हुआ था: सरकार क़ीमत का ब्योरा सीएजी को पहले ही दे चुकी है। सीएजी की रिपोर्ट पीएसी जाँच करती है और उसका कुछ हिस्सा संसद के सामने रखती है जो जनता के सामने आता है।

सरकार ने आगे कहा कि इस नोट में यह बात भूतकाल के संदर्भ में कही गई है यानी सरकार ने सीएजी के साथ क़ीमत का ब्योरा साझा किया है। यह बात बिल्कुल सच है, लेकिन ऊपर दिए हिस्से का दूसरा वाक्य जो पीएसी के संदर्भ में है, उसमें कहा गया है कि सीएजी की रिपोर्ट पीएसी जाँच करती है, जबकि सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले में ‘जाँच करती है’, शब्द की जगह यह लिखा हुआ है कि ‘जाँच हो चुकी है’। इस लिहाज़ से फ़ैसले में लिखा गया है कि सीएजी की रिपोर्ट को पीएसी ने जाँच परख लिया है।

सरकार ने कहा है कि माननीय सुप्रीम कोर्ट से प्रार्थना की जाती है कि फ़ैसले के पैराग्राफ़ 25 में निम्नलिखित सुधार कर लिया जाए ताकि अदालत के फ़ैसले से किसी तरह का संदेह या ग़लतफ़हमी पैदा न हो।

सरकार की तरफ से कहा गया है कि निर्णय में कृपया यह लिखा जाए कि सीएजी की रिपोर्ट की जाँच पीएसी करती है, उसका कुछ हिस्सा संसद के सामने रखा जाता है जो कि सार्वजनिक होता है।

अदालत ने फ़ैसला इस आलोक में दिया था कि सीएजी की रिपोर्ट को पीएसी ने जाँच परख लिया है। अदालत को लगता है कि जब संसद की समिति ने ख़ुद मामले की जाँच कर ली है तो इस मामले में अदालत के पड़ने का कोई कारण नहीं बनता है। अब अगर सरकार ही इस बात को मानती है कि रफ़ाल जहाज़ की क़ीमत से जुड़ी जानकारी सीएजी को दी गई तो यह बात साफ़ हो जाती है कि सीएजी और संसदीय समिति ने इस मामले की कोई जाँच पड़ताल नहीं की।
अब यह अदालत को तय करना है कि जिस मामले की जाँच न सीएजी ने की, न ही सीएजी की रिपोर्ट की पड़ताल पीएसी ने की तो फिर क्या अदालत के फ़ैसले की बुनियाद ही ख़त्म नहीं हो जाती।

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