सरकार ने बजट का नाम बदलकर बही-खाता कर दिया

इंदिरा गांधी के बाद निर्मला सीतारमण दूसरी ऐसी महिला हैं, जो देश का बजट पेश करने जा रही हैं. मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का ये पहला बजट है. और इस बजट की सबसे खास बात ये है कि इस बार ये बजट पुराने पेश किए गए बजट से कुछ मामलों में अलग है.

सबसे बड़ी बात ये है कि इस बार बजट का नाम ही बदल दिया गया है. अब इसका नया नाम बही खाता है. इसके अलावा भी एक और बदलाव है. और वो ये है कि पारंपरिक तौर पर बजट पेश करने के लिए सारे दस्तावेज एक चमड़े के बैग में रखे जाते थे. अब उसकी जगह लाल कपड़े ने ले ली है. निर्मला सीतारमण जो बही-खाता पेश करने जा रही हैं, वो किसी बैग में नहीं है, बल्कि एक लाल रंग के कपड़े में बंधा हुआ है, जिसपर अशोक की लाट बनी हुई है.

चमड़े के बैग में क्यों पेश किया जाता था बजट?

बजट फ्रांसीसी शब्द ‘बॉगेटी’ से बना है. इसका मतलब होता है चमड़े का थैला. पहली बार 1860 में ब्रिटेन के ‘चांसलर ऑफ दी एक्सयचेकर चीफ’ विलियम एवर्ट ग्लैडस्टन देश के हिसाब-किताब के दस्तावेज को एक लेदर बैग में लेकर आए थे. ब्रिटेन की महारानी ने बजट पेश करने के लिए लेदर का यह सूटकेस खुद ग्लैगडस्टमन को दिया था. उसी के बाद से बजट चमड़े के बैग में पेश किया जाने लगा. जब भारत आजाद हुआ, तब भी ये परंपरा कायम रही.

एक मान्यता और है.

इंग्लैंड के तत्कालीन वित्त मंत्री सर रॉबर्ट वालपोल को 1733 में देश का हिसाब-किताब पेश करना था. वो हिसाब-किताब के कागज को चमड़े के एक बैग में लेकर आए थे. कहा जाता है जब फ्रांस के सदन में मौजूद लोगों ने उनसे पूछा कि इस बैग में क्या है, तो उन्होंने जवाब दिया था कि बजट है. तभी से देश के हिसाब-किताब के कागजात को बजट कहा जाने लगा और तभी से बैग भी प्रचलन में आ गया.

क्या होता है बही-खाता?

किसी भी दुकान पर जाइए, वहां पर आपको एक लाल कपड़े वाली डायरी मिलेगी. इस डायरी में दुकानदार अपनी खरीद और बिक्री का हिसाब-किताब रखता है, सामान की एंट्री रहती है, अगर किसी से पैसे लिए हैं, तो वो लिखा होता है, किसो को उधार दिया हो तो वो भी लिखा होता है. इसे ही वो बही-खाता कहता है. खाता-बही किसी कारोबारी का वो दस्तावेज होता है, जिसमें वो निश्चित समय पर लिए-दिए गए पैसे का हिसाब-किताब रखता है. किसी खास आदमी या किसी खास कंपनी से किए गए लेन-देन को उस कंपनी या उस आदमी का खाता कहते हैं.

क्यों बदला नाम और बैग की जगह लाल कपड़ा क्यों आ गया?

भारत के चीफ इकनॉमिक एडवाइज़र हैं के. सुब्रमण्यम. उन्होंने बताया कि ये भारतीय परंपरा है. हम पश्चिमी सभ्यता से अलग दिखना चाहते हैं. ये बजट नहीं है, बल्कि बही खाता है.


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