दिल्ली भाजपा ने शुक्रवार को विधानसभा चुनाव के लिए अपने उम्मीदवारों के नाम का ऐलान कर दिया. 57 नामों की पहली सूची में भाजपा ने किसी भी मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट नहीं दिया है.
वहीं, आम आदमी पार्टी ने दिल्ली की मुस्लिम बहुल सीटों पर मुस्लिम नामों पर भरोसा जताया है, लेकिन बीजेपी ने किसी को टिकट नहीं दिया है. बता दें कि दिल्ली में 5 सीटें ऐसी हैं, जहां मुस्लिम वोटर ही तय करते हैं कि कौन जीतेगा.
मटिया महल एक मुस्लिम बहुल सीट है लेकिन बीजेपी ने यहां से अपने महासचिव रविन्द्र गुप्ता को टिकट दिया है. वहीं, सीलमपुर से कौशल मिश्र को टिकट थमाया है. इसके अलावा ओखला से ब्रह्म सिंह तंवर, बल्लीमारान से लता सोढ़ी और मुस्तफाबाद से जगदीश प्रधान को टिकट दिया है.
इनके अलावा 5 ऐसी सीटें हैं, जहां मुस्लिम निर्णायक कारक हैं, जिसमें सीमापुरी, बाबरपुर, चांदनी चौक, सादर बाज़ार और घोंडा की सीट शामिल है. यहां मुस्लिमों की अच्छी खासी तादाद है लेकिन वहां दूसरे समीकरण भी हैं इसलिए पार्टियां समीकरण के हिसाब से उम्मीदवार उतारती हैं.
बीजेपी ने 8 पूर्वांचलियों पर लगाया दांव
जिन पूर्वांचल वोटों के सहारे भाजपा को दिल्ली चुनाव में आस है, उन्हीं को टिकट देने में पार्टी ने कंजूसी दिखाई है. अब तक घोषित 57 उम्मीदवारों में सिर्फ आठ पूर्वांचली उम्मीदवार हैं, जबकि पार्टी की ओर दावा किया गया था कि इस बार विधानसभा चुनाव में बड़ी संख्या में पूर्वांचली उम्मीदवारों को मैदान में उतारा जाएगा.
दिल्ली में 40 फीसदी के करीब पूर्वांचल के वोटर हैं. लगभग 25 से 30 विधानसभा सीटों पर इनकी संख्या निर्णायक है. उधर आम आदमी पार्टी ने 12 पूर्वांचली उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है.
दिल्ली विधानसभा चुनाव में जिन क्षेत्रों से पूर्वांचल के उम्मीदवारों को टिकट दिया गया है, इसमें लक्ष्मी नगर से अभय वर्मा को, विकासपुरी से संजय सिंह को, मॉडल टाउन से कपिल मिश्रा, द्वारका से प्रद्युम्न राजपूत, बादली से विजय भगत, रिठाला से मनीष चौधरी, पालम से विजय पंडित और सीलमपुर से कौशलेंद्र मिश्रा हैं.
विधानसभा चुनाव में पूर्वांचल फैक्टर का आलम यह है कि भोजपुरी गाने पर भी वार-पलटवार हो रहा है. अरविंद केजरीवाल ने मनोज तिवारी के गाने को लेकर न सिर्फ निशाना साधा, बल्कि उसे अपनी पार्टी के कैंपेन में भी शामिल किया.
भाजपा भी इसे पूर्वांचली स्वाभिमान से जोड़ना शुरू कर दिया है. मनोज तिवारी खुद सोशल मीडिया का भी खूब इस्तेमाल कर रहे हैं. पार्टी ने संकेत दिया है कि आगे आने वाले दिनों में इस अभियान को और तेज किया जाएगा. बावजूद इसके भाजपा अपनी पुरानी परिपाटी को बदल नहीं पा रही है.
गौरतलब है कि 2015 के विधानसभा चुनाव में भी भाजपा ने सिर्फ आठ पूर्वांचली उम्मीदवारों पर दांव लगाया था. उस समय पार्टी की करारी हार हुई थी, जिसकी मुख्य वजह पूर्वांचली वोटरों का आम आदमी पार्टी (आप) की तरफ झुकाव माना गया था.