Delhi Election 2020: क्यों बच जाते हैं नफरत की राजनीति करने वाले? जानिए EC के अधिकार

Delhi Election 2020 के लिए चुनाव प्रचार के दौरान केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर और बीजेपी सांसद प्रवेश वर्मा ने ऐसा कुछ कहा जो चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन है. चुनाव आयोग ने उनके बयान को विवादित मानते हुए उनपर कार्रवाई की. उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के स्टार प्रचारक की लिस्ट से दोनों नेताओं को बाहर निकालने के लिए बोला है. अब आप सोच रहे होंगे कि सिर्फ स्टार प्राचरक की लिस्ट से बाहर निकालने से क्या होगा, क्योंकि उनके प्रचार पर कोई पांबदी तो लगी नहीं है?

दरअसल इस फैसले के बाद इन दोनों नेताओं द्वारा कैंपेन पर होने वाले खर्च को प्रत्याशी के खर्च में जोड़ा जाएगा. पहले यह खर्च, पार्टी के नाम पर हो रहा था.

विधायक कितना खर्च कर सकता है?

बता दें दिल्ली के विधायक प्रत्याशी चुनाव प्रचार के नाम पर 28 लाख रुपये तक खर्च कर सकते हैं. खर्च में गुब्बारे से लेकर चाय तक का खर्च जुड़ता है. हालांकि लोकसभा चुनाव में यह सीमा 50 लाख तक होती है. खर्च की सीमा आबादी पर भी निर्भर करती है.

किस बयान पर की गई कार्रवाई?

दरअसल केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर, रिठाला विधानसभा सीट से बीजेपी प्रत्याशी मनीष चौधरी के लिए चुनाव प्रचार कर रहे थे. इस दौरान उन्होंने मंच से कहा ‘देश के गद्दारों को… जिसके बाद मंच के नीचे मौजूद लोगों ने ‘गोली मारो…’ जैसे शब्दों का प्रयोग किया. सोशल साइट्स पर वीडियो वायरल होने के बाद कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी नेताओं ने चुनाव आयोग से इस मामले में कार्रवाई करने की बात कही थी.

वहीं बीजेपी सांसद प्रवेश वर्मा ने विकासपुरी में चुनाव प्रचार के दौरान कहा कि शाहीन बाग में जमा लोग घरों में घुसकर लोगों की बहन बेटियों के साथ रेप करेंगे.

लोगों में गुस्सा क्यों?

कई लोगों इस बात को लेकर नाराज़ हैं कि कानून बनाने वाले सांसद और मंत्री देश को तोड़नेवाले विभाजनकारी बातें कैसे कर सकते हैं? चुनाव आयोग उन्हें सिर्फ स्टार प्रचारक की लिस्ट से बाहर कर रहा है. इससे क्या होने वाला है. उनके ख़िलाफ़ कड़े एक्शन क्यों नहीं लिए जाते. ऐसे में चुनाव आयोग के अधिकारों को जानना बेहद जरूरी है.

चुनाव आयोग के सीमित हैं अधिकार

समाज में नफरत फैलाने वाले किसी भी तरह के बयान के खिलाफ एक्शन लेने के लिए चुनाव आयोग के पास सीमित अधिकार हैं.

चुनाव आयोग सबसे पहले दोषी प्रत्याशी या चुनाव प्रचार करने वाले नेता को नोटिस जारी कर जवाब देने को कहता है. अगर उनका जवाब आयोग को संतोषजनक नहीं लगता है या वो आगे भी आपत्तिजनक बयान देना जारी रखते हैं तो चुनाव आयोग उनके खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज कर सकता है. लेकिन वो किसी को अयोग्य घोषित नहीं कर सकता है. अगर मामला किसी प्रचारक का है जो प्रत्याशी नहीं है तो ज्यादा से ज्यादा उनके चुनाव प्रचार पर कुछ दिनों के लिए पाबंदी लगाई जा सकती है.

बता दें चुनाव आयोग एक संवैधानिक निकाय है लेकिन आचार संहिता वैधानिक दस्तावेज नहीं है. यानी कि आचार संहिता के उल्लंघन पर कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जा सकती है.

हालांकि ‘भ्रष्ट आचरण’ और ‘चुनावी अपराध’ जैसे मामलों में भारतीय दंड संहिता और लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के अनुसार कार्रवाई की जा सकती है. लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के तहत चुनाव याचिका पर उच्च न्यायालय फैसला सुना सकता है.

इसके अलावा आर्टिकल 324 के तहत संविधान चुनाव आयोग को वो सारे अधिकार देता है जिससे निष्पक्ष मतदान संपन्न कराया जा सके.

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