बेस्ट बॉलीवुड परफॉर्मेंस 2017 की

जिस नैतिक शिक्षा के *तियापे में संजय कुमार से मिस्टेक हो गया, उसे हमको आचार्य श्याम जी पढ़ाने आते थे. नख से शिख तक नैतिकता में बूड़े हुए. कहते थे किसी भी मैदान में जीतने वाले से ज़्यादा महत्वपूर्ण दूसरे नंबर पर रहने वाला आदमी होता है. आखिर उसी की वजह से जीतने वाले को इतना मान मिलता है. हमेशा दूसरे नंबर पर रहे लोगों को ये बात अमृत समान लगती है.

हमारे जीवन में नैतिक शिक्षा के बाद सुरेंद्र मोहन पाठक नहीं आए. सीधे सलीमा आया. अब ये उस नैतिक शिक्षा का असर था या भोगा हुआ यथार्थ, यहां भी अपने को कुंदन के बजाय मुरारी, आदित्य प्रताप के बजाय कन्हैया और मन्नू शर्मा के बजाय पप्पी पसंद आए. सिनेमा का दायरा न होता, तो अपन सरपंच के ऊपर सरदार का उदाहरण भी लिख देते. हाय ये दो नंबर वाले मरवाएंगे. (इस आखिरी लाइन को ‘खाकी’ के अक्षय कुमार की आवाज़ में सुनें.)

नंबर दो वालों पर ये दो नंबरी मोनोलॉग इसलिए दे रहे हैं, क्योंकि 2017 भी इनके ही नाम रहा है. इयर एंडर की प्लानिंग के वक्त सोचा कि आपको इस साल आईं हिंदी फिल्मों के कुछ बेहतरीन किरदारों से मिलवाया जाए. क्या है कि मैच तो न्यूटन कुमार और राज बत्रा जैसे लोग जीत जाते हैं, लेकिन दिल तो आत्मा सिंह और श्याम प्रकाश जैसे लोग ही जीतते हैं.

तो आत्मा सिंह और श्याम प्रकाश जैसों को खोजने की कवायद का पहला हासिल ये है कि 2017 में बौड़म फिल्मों का औसत अच्छी फिल्मों से कहीं बेहतर रहा. दूसरा हासिल है 6 किरदार, जिनका नाम नीचे खोदा गया है. इतने निजी इंट्रो के लिए खेद है. आप इन 6 किरदारों की ओर कूच कीजिए.

#1. किरदार: आत्मा सिंह
एक्टर: पंकज त्रिपाठी
फिल्म: न्यूटन
स्टारकास्ट: राजकुमार, अंजलि पाटिल, रघुबीर यादव
रिलीज़ डेट: 22 सितंबर 2017

‘न्यूटन’ में पंकज त्रिपाठी सैनिक बने हैं. कहने को वो फिल्म के एक किरदार हैं, पर हैं न्यूटन के पूरक. वही न्यूटन, जो सच में क्रांति करना चाहता है और क्रांति की शुरुआत अपने नाम नूतन को बदलकर न्यूटन करके करता है. पंकज इसी न्यूटन के आत्मा सिंह हैं. आत्मा को नाइट-विज़न गॉगल्स चाहिए और इसी कोफ्त से भरा वो नक्सली इलाके में बैठा है. कहता है, ‘डेंजर इलाका है, जल्दी निकल लेना चाहिए’.

‘न्यूटन’ के रिव्यू में केतन ने लिखा था, ‘स्क्रीन पर न्यूटन और आत्मा सिंह को एक साथ देखकर वो ठंडक मिलती है, जो चिलचिलाती गरमी में पुदीने से महकते आम के पने को पीने में मिलती है.’ पंकज ‘बरेली की बर्फी’ में नरोत्तम मिश्रा बनने के बाद आत्मा सिंह बने थे. वर्दी धारण करने वाले आत्मा सिंह. जब वो कहते हैं कि ‘वर्दी में विनती भी धमकी मालूम देती है’, तो आप उनके साथ सहानुभूति रखने लगते हैं. इस सहानुभूति के भाव के दौरान भी आपके दिल का एक हिस्सा न्यूटन के पास होता है और यहीं पर पंकज जीत जाते हैं.

 

#2. किरदार: ऊषा उर्फ बुआजी
एक्टर: रत्ना पाठक शाह
फिल्म: लिपस्टिक अंडर माई बुर्का
स्टारकास्ट: कोंकणा सेन शर्मा, सुशांत सिंह, विक्रांत मासी, अहाना कुमरा, प्लाबिता बोरठाकुर, शशांक अरोड़ा
रिलीज़ डेट: 21 जुलाई 2017

अब साहब इनकी एक्टिंग की बात तो नहीं करेंगे. इनकी एक्टिंग हमारे बात करने से कहीं अच्छी है. बात इस पर कर लेते हैं कि आपने बॉलीवुड में कब एक 60 साल की एक्ट्रेस को स्विमसूट पहने स्विमिंग पूल में देखा था? नहीं देखा होगा, क्योंकि हमने अपने एक्टर्स को कभी इतना स्पेस ही नहीं दिया कि वो हमें चौंका सकें. रत्ना शानदार एक्ट्रेस होंगी, पर लोग तो उन्हें बुआजी की तरह देखना चाहते हैं. वो जो सत्संग में जाए, बच्चों को स्कूल से घर ले आए और जब सरकारी मुलाज़िम घर तोड़ने आएं, तो वो बातों की जलेबियां छानते हुए हरे-लाल नोटों से उनका मुंह बंद कर दे.

पर हम ये भूल जाते हैं कि उस बुआजी के अंदर की ऊषा अभी मरी नहीं है. वो ज़िंदा है और अपने शौक के साथ ज़िंदा है. किसी अधेड़ उम्र के इंसान में जितनी ख्वाहिशें हो सकती हैं, वो सब ऊषा में हैं. पर हम उसे जीने कहां देना चाहते हैं. ‘लिपस्टिक..’ के सेकेंड हाफ में रत्ना के कैरेक्टर के साथ जो होता है, वो दिखाता है कि भरे बाज़ार में कपड़े उतरने के बाद भी हम बाकियों को इज्ज़त का पाठ पढ़ाते नज़र आएंगे. रत्ना की एक्टिंग को सलाम और उनकी बेबाकी को डबल सलाम.

#3. किरदार: श्याम प्रकाश
एक्टर: दीपक डोबरियाल
फिल्म: हिंदी मीडियम
स्टारकास्ट: इरफान, नेहा धूपिया, सबा कमर, तिलोत्तमा शोम, मल्लिका दुआ
रिलीज़ डेट: 19 मई 2017

‘हिंदी मीडियम’ में दीपक कम वक्त के लिए दिखते हैं, लेकिन उनका किरदार इतना ज़रूरी और बड़ा है कि इनके ज़िक्र के बिना फिल्म पूरी नहीं हो सकती. फिल्म में इरफान हमेशा की तरह एफर्टलेस थे. लगता ही नहीं कि इन्होंने रोल के लिए कोई मेहनत की होगी. दीपक की रेंज का हम अंदाजा ही लगा सकते हैं, क्योंकि वो एक मेडिकल स्टूडेंट के सवाल पर बेहोश भी हो सकते हैं और सैफ अली खान के गूदे को टहलने के लिए कंपनी गार्डेन भी भेज सकते हैं.

‘हिंदी मीडिया’ में श्याम प्रकाश के बच्चे का स्कूल में एडमीशन होना होता है, लेकिन वो दूसरे की मदद का झंडा लिए खड़ा होता है. वो इरफान की मदद करने के लिए गाड़ी के आगे कूद जाता है कि ड्राइवर से कुछ पैसे मिल जाएं, जिन्हें वो इरफान को दे सके. फिल्म में यही वो पॉइंट है, जब आप श्याम प्रकाश से हार जाते हैं. आप तो फिल्म देखिए. जब इरफान दीपक की वजह से खुद को गाली देते हैं, तो आपको कलेजे की एक परत पिघलती महसूस होगी.

#4. किरदार: श्यामलाल चटर्जी उर्फ शुटू
एक्टर: विक्रांत मासी
फिल्म: अ डेथ इन दि गंज
स्टारकास्ट: रणवीर शौरी, ओम पुरी, कल्कि कोचलिन, गुलशन देवैया, तिलोत्तमा शोम, जिम सरभ
रिलीज़ डेट: 2 जून 2017

‘अ डेथ…’ में दिखाया गया घर नॉर्मल जैसा है, पर ये नॉर्मल नहीं है. इसमें कुछ भी नहीं हो रहा होता है, फिर भी ये बोरिंग नहीं होता है. यहां सब चुप होते हैं, लेकिन एक शोर गूंज रहा होता है. इसी नॉर्मल रूटीन फैमिली में एक बंदा है शुटू. ये आप हैं और मैं हूं. इस लड़के को परेशान किया जा रहा है, बुली किया जा रहा है. वो पढ़ाई के साथ-साथ लाइफ में भी फेल हो रहा है. आप खुद को उसमें देखते हैं. ये आपको अपनी ज़िंदगी के किसी एक घंटे, दिन, हफ्ते, महीने या साल की याद दिलाता है.

इस सबसे भी ऊपर बात वहां बिगड़ती है, जब रात में शराब के नशे में कल्कि का किरदार शुटू पर हावी होता है. ये हावी होना दैहिक था, जो कुछ वक्त के लिए था. अगली सुबह कल्कि फिर रूखी हो जाती हैं. ये सब शुटू के अंदर इतना भर जाता है कि आखिर में वो… हम क्यों बताएं. जिन्होंने फिल्म नहीं देखी है, उनका सस्पेंस थोड़ी न मार देंगे. फिल्म देखिएगा. शुटू के लिए.

#5. किरदार: शौर्य
एक्टर: राजकुमार राव
फिल्म: ट्रैप्ड
स्टारकास्ट: गीतांजलि थापा, खुश्बू उपाध्याय
रिलीज़ डेट: 17 मार्च 2017

इस लिस्ट पर डिस्कशन के दौरान हम द्वंद में थे कि ‘बरेली की बर्फी’ के प्रीतम विद्रोही को लें या ‘ट्रैप्ड’ के शौर्य को. आखिर में तय हुआ कि शौर्य को रखेंगे. कारण- प्रीतम विद्रोही का किरदार देखकर आप एक बार को मान सकते हैं कि ये राजकुमार कर सकते हैं. पर ‘ट्रैप्ड’ का शौर्य दिमागी रूप से चूस लेने वाला किरदार है. आप दर्शक की कुर्सी पर बैठे हैं, लेकिन गद्दे जलाने से पहले शौर्य को रोक लेना चाहते हैं. जब बारिश का पानी उसके गले के नीचे उतरता है, तो परदे के इस तरफ आपका गला भी तर हो रहा होता है.

और सबसे सही तो क्लाईमैक्स का सीन है, जब शौर्य गगनचुंबी इमारत की बाहरी रेलिंग से नीचे उतर रहा होता है. ये वो वक्त होता है, जो किसी नास्तिक को भी आस्तिक बना दे. आप दुआ कर रहे होते हैं कि वो बच जाए. ‘ट्रैप्ड’ का ट्रेलर देखकर कौतूहल हुआ था कि इतनी सिंपल सी कहानी को कोई दो घंटे कैसे खींच सकता है, पर फिल्म देखते वक्त राजकुमार आपकी सारी शंकाएं दूर कर देते हैं.

#6. किरदार: हेड़ू
एक्टर: संजय मिश्रा
फिल्म: कड़वी हवा
स्टारकास्ट: रणवीर शौरी, तिलोत्तमा शोम
रिलीज़ डेट: 24 नवंबर 2017

ये रोल छठे नंबर पर लिखा है, तो इसके बारे में कोई शक-शुबहा न पाल लीजिएगा. संजय मिश्रा को तो जानते ही हैं. साथ में ये भी जान लीजिए कि हेड़ू का किरदार उनकी ज़िंदगी का सबसे डार्क कैरेक्टर है. नेगेटिव रोल उन्होंने पहले भी किए हैं. ‘सत्या’ याद कर लीजिए. पर हेड़ू का किरदार इतना डार्क है कि आप इसे देखते हुए खुद ही टूट जाते हैं. एक बूढ़ा किसान है, जिसकी खेती में दिक्कत है. फिर भी वो लाठी के सहारे पूरा गांव मंझा रहा है. बेटा भी किसान है, तो डर लगा रहता है कि किसी दिन पेड़ से लटक न जाए. आंखें अंधी हैं, पर मन थोड़े न अंधा है.

हेड़ू को ज़िंदगी हर कदम पर तोड़ रही होती है, पर वो लड़ता है. और ऐसा लड़ता है कि ‘कड़वी हवा’ को इस साल की सबसे ज़रूरी फिल्म बना देता है. 2017 में ढेर सारे लोगों ने अच्छा काम किया होगा, लेकिन संजय मिश्रा का हेड़ू सबसे अच्छा काम है. इसे किसी कीमत पर मिस नहीं किया जा सकता. इस साल की सबसे ज़रूरी फिल्म…

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