मणिपुर में अजय भल्ला को ही राज्यपाल क्यों नियुक्त किया गया ?

भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) का एक अधिकारी जिसे केंद्र की मोदी सरकार ने लगातार चार बार सेवा विस्तार दिया और इसके बाद इस अधिकारी ने बतौर केंद्रीय गृह सचिव पांच साल पूरे किए.

अधिकारी का नाम है अजय कुमार भल्ला और अब इन्हें हिंसाग्रस्त मणिपुर का राज्यपाल बनाया गया है.

Why was Ajay Bhalla appointed as the Governor of Manipur
Why was Ajay Bhalla appointed as the Governor of Manipur

मंगलवार को राष्ट्रपति भवन की ओर से जारी अधिसूचना में अजय कुमार भल्ला समेत कुल पांच राज्यों में गवर्नरों की नियुक्ति के बारे में बताया गया है.

अजय भल्ला से पहले असम के राज्यपाल लक्ष्मण आचार्य बतौर राज्यपाल मणिपुर की अतिरिक्त ज़िम्मेदारी संभाल रहे थे.

भल्ला की नियुक्ति ऐसे समय में हुई है जब साल 2023 से राज्य ने जातीय हिंसा कई दौर देखे हैं और यह हिंसा अब भी जारी है.

अजय भल्ला के अलावा जनरल (रि.) वीके सिंह को मिज़ोरम, आरिफ़ मोहम्मद ख़ान को बिहार, राजेंद्र विश्वनाथ अर्लेकर को केरल और हरि बाबू कंभमपति को ओडिशा का गवर्नर नियुक्त किया गया है.

कौन हैं अजय कुमार भल्ला ?

अजय कुमार भल्ला 1984 बैच के असम-मेघालय कैडर के आईएएस अधिकारी हैं. केंद्र में काम करने से पहले अजय भल्ला साल 2002 तक असम और मेघालय राज्यों में अलग-अलग पदों पर काम कर चुके हैं.

भल्ला मई 2002 से मार्च 2005 तक भारत सरकार के शिपिंग विभाग में बतौर निदेशक (बंदरगाह) के रूप में काम कर चुके हैं.

इसके बाद उन्होंने अप्रैल 2005 से मई 2007 तक शिपिंग विभाग में संयुक्त सचिव (बंदरगाह) के रूप में काम किया और प्रमुख बंदरगाहों से संबंधित विकास, संचालन और मानव संसाधन विकास मामलों को देखा.

भल्ला ने 1 जुलाई 2010 से भारत सरकार के कोयला मंत्रालय में संयुक्त सचिव और 8 जनवरी 2015 से 12 अप्रैल 2015 तक कोयला मंत्रालय में अतिरिक्त सचिव के रूप में कार्य किया.

अपने इस कार्यकाल में उन्होंने कोयला ब्लॉकों के आवंटन से संबंधित कामों की ज़िम्मेदारी संभाली.

2016 में भल्ला वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय में पहुंचे और यहां उन्होंने विदेश व्यापार महानिदेशक के साथ भारतीय विदेश व्यापार संस्थान के निदेशक का अतिरिक्त प्रभार भी संभाला.

साल 2017 में उन्हें ऊर्जा मंत्रालय में सचिव की ज़िम्मेदारी दी गई और साल 2019 तक वो इस पद पर रहे. इसके बाद उन्हें केंद्रीय गृह सचिव पद की ज़िम्मेदारी दी गई.

अजय कुमार भल्ला ने दिल्ली विश्विद्यालय से बॉटनी में एसएससी की और पंजाब यूनिवर्सिटी से सोशल साइंस में एमफिल की डिग्री हासिल की.

इसके अलावा उन्होंने ऑस्ट्रेलिया की क्वींसलैंड यूनिवर्सिटी से एमबीए भी किया है.

गृह मंत्री अमित शाह के क़रीबी

2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सत्ता में वापसी होती है और अजय भल्ला इसी साल गृह मंत्रालय में आ जाते हैं. तब राजनाथ सिंह को गृह मंत्री से हटाकर रक्षा मंत्रालय की ज़िम्मेदारी दी गई.

तत्कालीन बीजेपी अध्यक्ष और गुजरात के गांधीनगर से सांसद चुनकर आए अमित शाह को गृह मंत्री बनाया.

भल्ला पहले गृह मंत्रालय में ओएसडी बने फिर लगभग एक महीने बाद राजीव गौबा की जगह केंद्रीय गृह सचिव बन जाते हैं.

एक साल बाद 2020 में भल्ला को रिटायर होना था, लेकिन केंद्र की मोदी सरकार ने उन्हें सेवा विस्तार दे दिया.

पांच अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 को रद्द करते हुए जम्मू कश्मीर के विशेष राज्य का दर्जा हटा दिया गया और दो केंद्र शासित प्रदेश- लद्दाख और जम्मू-कश्मीर बना दिए गए.

कुछ दिन बाद इसी अगस्त महीने में अजय भल्ला को गृह सचिव बनाया गया था. भल्ला के सामने जम्मू-कश्मीर में शांति स्थापित करने के साथ हिंसा को रोकने की चुनौती थी.

साल 2019 के अंत में नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के ख़िलाफ़ देशभर में विरोध प्रदर्शन हो रहे थे. इस दौरान सरकार की प्रतिक्रिया को लेकर प्रबंधन की ज़िम्मेदारी अजय भल्ला के कंधों पर थी.

इसके बाद भल्ला के ही कार्यकाल में दिल्ली में दंगे भी हुए थे.

साल 2020 में भारत समेत दुनिया के सामने कोविड के रूप में सबसे बड़ी चुनौती आई और इस दौरान गृह सचिव अजय भल्ला के सामने राज्यों के साथ समन्वय एक बड़ी चुनौती थी.

इस बीच उन्हें पहला सेवा विस्तार मिला, जिसे अगले कुछ सालों 2021, 2022 और 2023 में भी बढ़ाया गया.

लगातार सेवा विस्तार मिलने के बाद अमित शाह के क़रीबी अजय भल्ला ने बतौर केंद्रीय गृह सचिव पांच साल का समय पूरा किया और ऐसे करने वाले वो सिर्फ़ दूसरे अधिकारी थे.

आख़िरी बार ऐसा 52 साल पहले हुआ था, जब साल 1971 में लल्लन प्रसाद सिंह ने बतौर गृह सचिव छह साल से ज़्यादा का कार्यकाल पूरा किया था.

बिहार में जन्मे लल्लन प्रसाद सिंह 1936 में इंडियन सिविल सर्विस (अब आईएएस) में शामिल हुए थे और सेवानिवृत्ति के बाद असम, मणिपुर, मेघालय, नागालैंड और त्रिपुरा के राज्यपाल रहे थे.

कुछ मामले ऐसे भी हैं, जिन पर उनके गृह सचिव रहते हुए कोई ख़ास एक्शन देखने को नहीं मिला.

राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनआरसी) का जोर-शोर से प्रचार किया गया था, लेकिन इस पर अभी तक कोई ठोस पहल शुरू नहीं हुई है.

जनगणना की ज़िम्मेदारी गृह मंत्रालय की होती है और साल 2021 में इसे होना था.

अब तक जनगणना को लेकर कोई सुगबुगाहट नहीं दिखाई दे रही है. सितंबर में गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि जल्दी ही जनगणना करवाई जाएगी.

कई मौक़ों पर दिल्ली पुलिस की भूमिका पर भी सवाल खड़े हुए हैं. चाहे वह जेएनयू में हुई हिंसा हो या दिल्ली दंगे.

कुछ मौक़ों पर अलग-अलग अदालत ने दंगों से जुड़े मामलों में दिल्ली पुलिस को फटकार लगाई है.

मणिपुर के लिए अजय भल्ला ही क्यों ?

विजेता सिंह अंग्रेज़ी अख़बार ‘द हिन्दू’ के लिए गृह मंत्रालय कवर करती हैं.

अजय भल्ला को राज्यपाल बनाए जाने पर विजेता कहती हैं, “अगर आप बतौर गृह सचिव अजय भल्ला का ट्रैक रिकॉर्ड देखेंगे तो आपको इस फ़ैसले के पीछे की वजह पता चल जाएगी.”

“भल्ला गृह मंत्री अमित शाह के नज़दीकी दिखाई पड़ते हैं और जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 का मुद्दा हो या सीएए का मुद्दा दोनों पर ही इन्होंने सरकार के लिए अच्छा काम किया था. अजय भल्ला गृह सचिव रहते हुए मणिपुर को देख रहे थे और रिटायर होने के बाद सरकार ने एक बार राज्यपाल के रूप में उन्हें ज़िम्मेदारी दी है.”

विजेता सिंह कहती हैं, “इसके पीछे एक बड़ी वजह है अमित शाह का उनके ऊपर पूरा भरोसा. इसका एक उदाहरण तीन नए आपराधिक क़ानून को लेकर मिलता है. इनको लागू कराने के लिए वो लगातार एक्टिव थे.”

इस साल की शुरुआत में देश के अलग-अलग हिस्सों में ट्रक ड्राइवर हड़ताल कर रहे थे. तब संसद में भारतीय न्याय संहिता के तहत आपराधिक मामलों में सज़ा के नए प्रावधान किए गए थे.

क़ानून के तहत ‘हिट एंड रन’ केस में ड्राइवरों को दस साल की कैद और सात लाख रुपये जुर्माने का प्रावधान था. मामले में सरकार की तरफ़ से अजय भल्ला ने मोर्चा संभाला था.

अजय भल्ला ने ऑल इंडिया ट्रांसपोर्ट कांग्रेस के प्रतिनिधियों से मीटिंग की थी. सरकार की तरफ़ से भल्ला के आश्वासन के बाद ट्रक ड्राइवरों ने विरोध प्रदर्शन वापस ले लिया था.

केबीएस सिद्धू 1984 बैच के पंजाब कैडर के आईएएस हैं और अजय भल्ला के बैचमेट हैं. सिद्धू जुलाई, 2021 में पंजाब के विशेष मुख्य सचिव पद से रिटायर हुए हैं.

अजय भल्ला के बारे में केबीएस सिद्धू बीबीसी से बातचीत में बताते हैं, “उनकी नई नियुक्ति के पीछे दो बातें अहम हैं.”

“पहला उनका पूर्वोत्तर में अनुभव और दूसरा लंबे समय से केंद्र सरकार के साथ काम करने का अनुभव. केंद्र में गृह सचिव रहते हुए उन्हें इंटेलिजेंस एजेंसी और दूसरे सुरक्षा बलों के साथ काम करने का अनुभव है.”

सवाल उठता है कि जनरल (रि.) वी के सिंह का बैकग्राउंड भी सेना का है और वो केंद्र में मंत्री भी रहे हैं. ऐसे में अजय भल्ला की जगह वी के सिंह को प्राथमिकता क्यों नहीं दी गई?

इस पर केबीएस सिद्धू कहते हैं, “केंद्र सरकार एक कड़ा संदेश भेजना चाहती है कि हम हिंसाग्रस्त मणिपुर में एक ऐसे व्यक्ति को भेज रहे हैं जिसे नॉर्थईस्ट में काम करने का अनुभव तो है ही लेकिन सबसे ज़रूरी गृह मंत्रालय की भी गहरी समझ है. भले ही राज्यपाल के रूप में ही सही. उनकी छवि भी अब तक बेदाग है. कुल मिलाकर वो मुख्यमंत्री और गृह मंत्री के बीच एक अहम कड़ी होंगे.”

पिछले साल अगस्त में जब अजय भल्ला को सेवा विस्तार दिया था तो इंडियन एक्सप्रेस ने गृह मंत्रालय के कुछ अधिकारियों से बातचीत की थी.

तब एक अधिकारी ने बताया था, “उन्हें पता है कि अगर सरकार ने कोई फ़ैसला लिया है तो उसे पूरा ही करना होगा. भले ही उन पर कितना भी दवाब हो लेकिन वो अपना आपा नहीं खोते हैं.”

राजभवन में अब अजय भल्ला होंगे और इससे पहले राज्य के शीर्ष अधिकारियों में भी फेरबदल किया गया था.

राजीव कुमार को पुलिस महानिदेशक (डीजीपी), विनीत जोशी को मुख्य सचिव और कुलदीप सिंह को सुरक्षा सलाहाकार बनाया था. जानकार अब मणिपुर पर गृह मंत्री अमित शाह का पूरा नियंत्रण मान रहे हैं.

मणिपुर के वरिष्ठ पत्रकार युमनाम रूपचंद्र सिंह कहते हैं, “राज्य में बीजेपी की सरकार है और जब से हिंसा हुई है तब से यह साफ़ हो चुका है कि केंद्र और राज्य यहां मिलकर काम कर रहे हैं.”

“बीरेन सिंह को एक राज्य को जो पूरी ज़िम्मेदारी देनी चाहिए वो अभी इनके पास नहीं है.”

“अगर मणिपुर को बीते कुछ समय से देख रहे होंगे तो पाएंगे कि जो अधिकारी यहां पर आएं हैं उनके केंद्र सरकार यहां लाई है. स्पष्ट तौर पर केंद्र सरकार और गृह मंत्री अमित शाह ने पूरी ज़िम्मेदारी ले ली है.”

अजय भल्ला के सामने चुनौतियां

साल 2023 के मई महीने में मणिपुर में हिंसा भड़की थी और तब से लेकर अब तक गतिरोध की स्थिति बनी हुई है.

राज्य सरकार के मुताबिक़, हिंसा में 250 से ज़्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. इसके अलावा राज्य की एक बड़ी आबादी विस्थापित हो चुकी है.

अजय कुमार भल्ला नौकरशाह रह चुके हैं लेकिन संवैधानिक पद का उन्हें अनुभव नहीं है.

ऐसे में बतौर राज्यपाल उनकी पहली बड़ी चुनौती कुकी-मैतेई के बीच हिंसा की आग में सुलगते मणिपुर में शांति स्थापित करना होगी.

युमनाम रूपचंद्र सिंह कहते हैं, “अजय भल्ला सबसे बड़ी चुनौती दोनों समुदायों को साथ उनके लेकर मुद्दों को सुलझाने की होगी. जैसे- ड्रग्स तस्करी, अवैध घुसपैठ, बॉर्डर फेंसिंग, अवैध हथियार और राजनीतिक दूरी को ख़त्म करना. इसके अलावा हाईवे पर जो बफ़र जोन बने हैं उन्हें भी हटाना होगा.”

मणिपुर हाई कोर्ट ने 27 मार्च 2023 को एक आदेश में राज्य सरकार से मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल करने की बात पर जल्दी विचार करने को कहा था.

फिर तीन मई को ये हिंसा तब शुरू हुई जब मैतेई समुदाय को जनजाति का दर्जा दिए जाने की मांग के ख़िलाफ़ राज्य के कुकी समेत दूसरे जनजातीय समुदाय ने रैली निकाली जो बाद में हिंसक हो गई.

उन्होंने मैतेई समुदाय पर हमले किए. जवाब में मैतेई समुदाय ने भी अपनी बदले की कार्रवाई शुरू कर दी और मैतेई बहुल इलाक़ों में रह रहे कुकी समुदाय के लोगों के घर जला दिए गए और उन पर हमले किए गए.

इन हमलों के बाद मैतेई बहुल इलाकों में रहने वाले कुकी और कुकी बहुल इलाकों में रहने वाले मैतेई अपने-अपने घर छोड़कर जाने लगे.

मणिपुर की 35 लाख की आबादी में से आधे से अधिक मैतेई समुदाय के लोग हैं, जो ख़ास तौर पर इम्फ़ाल और उसके आसपास के इलाकों में रहते हैं और इनका एक बड़ा हिस्सा हिंदू है.

वहीं कुकी और नगा जनजातियां पहाड़ी ज़िलों में रहती आईं हैं. कुकी समुदाय के लोग मुख़्य तौर पर ईसाई हैं.

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