किताब छपी नहीं और बैंक ने दे दिया ₹7.5 करोड़ का ऑर्डर, IMF से हटाए गए लेखक केवी सुब्रमण्यन

IMF के एग्जिक्युटिव डायरेक्टर के पद से अचानक हटा लिए जाने के बाद जानेमाने अर्थशास्त्री केवी सुब्रमण्यन चर्चा के केंद्र में आ गए हैं। सवाल है कि आखिर मोदी सरकार ने अचानक इतना बड़ा फैसला क्यों लिया? क्या उनकी किताब India@100: Envisioning Tomorrow’s Economic Powerhouse का इससे कोई लेनादेना है ?

सरकार ने केवी सुब्रमण्यन को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के कार्यकारी निदेशक के पद से अचानक हटा दिया। आईएमएफ के एग्जिक्युटिव डायरेक्टर के तौर पर सुब्रमण्यन का कार्यकाल छह महीने बाकी था, लेकिन मोदी सरकार ने उन्हें तुरंत प्रभाव से हटा लिया। आईएमएफ ने भी इसकी पुष्टि की है कि सुब्रमण्यन को हटाने का फैसला भारत सरकार का ही है। सवाल है कि क्या सरकार के इस फैसले के पीछे केवी सुब्रमण्यन की किताब ‘इंडिया@100: एनवीजनिंग टुमॉरोज इकनॉमिक पावरहाउस’ है ?

छपाई से पहले किताब के लिए 7.5 करोड़ का ऑर्डर

इकनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट में विस्तार से बताया गया है कि यूनियन बैंक ऑफ इंडिया ने केवी सुब्रमण्यन की इस पुस्तक ‘India@100: Envisioning Tomorrow’s Economic Powerhouse’ के प्रकाशन से पहले ही इसकी करीब 2 लाख कॉपियों का ऑर्डर दे दिया। बैंक ने अपने 18 जोनल ऑफिस को एक पत्र लिखकर कहा कि उनमें से हरेक ऑफिस 10,525 किताबें खरीदे। इनमें पेपरबैक एडिशन के लिए प्रति पुस्तक 350 रुपये जबकि हार्डकवर के लिए प्रति किताब 597 रुपये की दर से पैसे आवंटित किए जाने का प्रावधान किया गया। इस तरह, कुल 1,89,450 किताबों के लिए कुल 7.25 करोड़ रुपये की रकम निर्धारित की गई। इस रकम का आधा हिस्सा किताब की प्रकाशक कंपनी रूपा पब्लिकेशन को दे भी दिया गया।

सुब्रमण्यन की तो किस्मत चमक गई!

भारत में अंग्रेजी भाषा की किसी किताब की 10 हजार कॉपियां ही बिक जाएं तो उसे बेस्टसेलर मान लिया जाता है, लेकिन केवी सुब्रमण्यन की किस्मत बाकी लेखकों से अलग दिखी। एक ही खरीदार यूनियन बैंक ऑफ इंडिया ने उनकी 1,89,450 कॉपियों का ऑर्डर दे दिया। यानी बेस्टसेलर के मानक से लगभग 18 गुना ज्यादा। इस ऑर्डर से सुब्रमण्यन की तो किस्मत चमकी, लेकिन बैंक में बवाल मच गया जब बोर्ड मीटिंग में इस खर्चे से पर्दा उठा।

बैंक की बोर्ड मीटिंग में उजागर हुआ मामला

दिसंबर 2024 में यूनियन बैंक ऑफ इंडिया की बोर्ड मीटिंग हुई। बोर्ड के एग्जिक्युटिव डायरेक्टर नीतेश रंजन ने मीटिंग में कहा कि उन्हें तो किताब खरीदने पर 7.5 करोड़ रुपये खर्च करने के फैसले की कोई जानकारी ही नहीं है। बोर्ड ने तब सपोर्ट सर्विस डिपार्टमेंट के जनरल मैनेजर गिरिजा मिश्र से पूछा कि वो किस अधिकार से किताब खरीदने के लिए 7.5 करोड़ रुपये पेमेंट करने पर राजी हो गए। तब बैंक की एमडी और सीईओ ए. मनीमेखलाई ने बोर्ड को बताया कि दरअसल उन्होंने गिरिजा मिश्र को किताब खरीदने के लिए पेमेंट करने का आदेश दिया था, लेकिन कानून तोड़कर नहीं। बोर्ड मीटिंग के करीब एक सप्ताह बाद 26 दिसंबर को मनीमेखलाई ने गिरिजा को सस्पेंड कर दिया।

एंप्लॉयी असोसिएशन ने की जांच की मांग

इकनॉमिक टाइम्स की खबर के मुताबिक, अब बैंक कर्मचारियों के संघ ने मनिमेखलाई को पत्र लिखकर मामले का जांच करवाने की मांग की है। ऑल इंडिया यूनियन बैंक एंप्लॉयीज असोसिएशन के महासचिव एन. शंकर ने अपने पत्र में कहा कि केवी सुब्रमण्यन की किताब के प्रमोशन पर गलत तरीके से इतनी भारी रकम खर्च करने के पीछे किसका आइडिया था और किसने इसमें सहभागिता निभाई, इसका पता लगाना बैंक की जिम्मेदारी है।

जोनल ऑफिसों को मिला था ऑर्डर

ध्यान रहे कि जब जोनल ऑफिसों को हेडक्वॉर्टर की तरफ से ऑफिस एडवाइस का लेटर गया तो उसमें कहा गया था कि आधा पैसा रूपा पब्लिकेशन को दे दिया गया है, अब बाकी का आधा पैसा सभी जोनल ऑफिस बराबर हिस्से में बांटकर अपने फंड से दे दें। पत्र में यह भी बताया गया कि सभी जोनल ऑफिस इसे ‘अन्य खर्चों’ के मद में डाल दें। पत्र में कहा गया कि ये किताबें बैंक के ग्राहकों, आसपास के स्कूलों, कॉलेजों और पुस्तकालयों आदि में बांट दी जाएं। यूनियन बैंक ऑफ इंडिया 96,298 करोड़ रुपये के मार्केट कैप के साथ देश का चौथा सबसे बड़ा सार्वजनिक क्षेत्र का बैंक है। इसने 9.5 लाख करोड़ रुपये का लोन दे रखा है जबकि 12.2 लाख करोड़ रुपये ग्राहकों ने बैंक में जमा कर रखे हैं।

क्या इसी किताब के कारण हटे केवी सुब्रमण्यन?

केवी सुब्रमण्यन एक जानेमाने अर्थशास्त्री हैं जो भारत सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार (CEA) रह चुके हैं। उन्होंने 2018 से 2021 तक इस पद पर रहते हुए मोदी सरकार को आर्थिक मामलों में मंत्रणा दी है। सरकार ने उन्हें अगस्त 2022 में आईएमएफ के एग्जिक्युटिव डायरेक्टर पद पर नियुक्ति को मंजूरी दी थी। सुब्रमण्यन ने 1 नवंबर को यह पद संभाला था। वो आईएमएफ में भारत, बांग्लादेश, श्रीलंका और भूटान डेस्क के इनचार्ज थे। सरकार ने उन्हें 30 अप्रैल को तत्काल प्रभाव से आईएमएफ से हटा लिया।

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