तीन भाषा नीति पर जारी विवाद के बीच तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन सरकार ने बड़ा क़दम उठाया है. गुरुवार को राज्य सरकार का जो बजट पेश किया गया उसमें रुपए के लोगो (सिंबल) को तमिल अक्षर से बदल दिया गया.
भारत सरकार ने रुपए के जिस सिंबल को स्वीकार्यता दी है वो देवनागरी भाषा के अक्षर र और रोमन के R को मिलाकर बनाया गया है. तमिलनाडु के बजट में इसे हटाकर तमिल अक्षर ரூ को इस्तेमाल किया गया है जिसका मतलब रु है. जबकि पिछले साल (2024-25) के बजट में रुपए का परंपागत लोगो इस्तेमाल किया गया था.

ख़ास बात यह है कि यह फ़ैसला ऐसे समय पर लिया गया जब राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लेकर केंद्र और तमिलनाडु के बीच विवाद चल रहा है. राज्य की डीएमके सरकार, मोदी सरकार पर हिंदी थोपे जाने का आरोप लगा रही है.
बजट में रुपए का लोगो क्यों बदला गया, फ़िलहाल इसे लेकर तमिलनाडु सरकार की ओर से अब तक आधिकारिक रूप से कुछ नहीं कहा गया है, लेकिन भारतीय जनता पार्टी ने इस पर सख़्त आपत्ति जताई है.
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने ख़ुद ये बजट पेश किया और अपने एक्स हैंडल से एक वीडियो पोस्ट किया जिसमें नज़र आ रहा है कि रुपए का लोगो हटाकर उसे तमिल अक्षर से रिप्लेस किया गया है.
भारतीय जनता पार्टी की तीखी प्रतिक्रिया
तमिलनाडु भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष के अन्नामलाई ने डीएमके सरकार के इस क़दम को ‘बचकाना’ क़रार दिया है.
उन्होंने सोशल मीडिया अकाउंट एक्स पर पोस्ट किया, “डीएमके सरकार ने 2025-26 के बजट में रुपए के उस लोगो को बदल दिया जिसे एक तमिल नागरिक ने ही डिज़ाइन किया था. जिसे पूरे देश ने स्वीकार किया. जिसे करेंसी में भी शामिल किया गया. उदय कुमार ने इसे डिज़ाइन किया जो ख़ुद भी एक पूर्व डीएमके विधायक के बेटे हैं. स्टालिन आप और कितने बचकाना हो सकते हैं?”
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन लगातार केंद्र सरकार की राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर हमला कर रहे हैं और मोदी सरकार पर ‘शिक्षा के भगवाकरण’ का आरोप लगा रहे हैं.
स्टालिन का कहना है कि केंद्र सरकार तमिलनाडु पर हिंदी थोप रही है.
डीएमके बनाम केंद्र सरकार

केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने डीएमके सरकार के आरोप के जवाब में संसद में इसी सप्ताह कहा था, “राष्ट्रीय शिक्षा नीति भारत में विविध भाषाओं के कल्चर को प्रमोट कर रही है. राष्ट्रीय शिक्षा नीति राज्यों को ये स्वायत्ता देगी कि वो पाठ्यक्रम में भाषाओं को चुनने की प्राथमिकता तय कर सकें. ये नीति सभी प्रादेशिक भाषाओं का सम्मान करती है. “
प्रधान ने इसी सप्ताह संसद के बजट सत्र के दौरान राष्ट्रीय शिक्षा नीति का विरोध कर रहे डीएमके सांसदों के बरताव पर आपत्ति जताई थी और उनके लिए जिस शब्द का इस्तेमाल किया था उस पर डीएमके सांसद कनिमोझी ने सख्त एतराज़ जताया था. जिसके बाद हंगामा मचने पर प्रधान को अपने शब्द वापस लेने पड़े थे.
क्या है त्रिभाषा फॉर्मूला और तमिलनाडु क्यों कर रहा विरोध
डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन की अध्यक्षता में विश्विविद्यालय शिक्षा आयोग ने त्रिभाषा फॉर्मूला पेश किया था. बाद में स्कूली शिक्षा के लिए त्रिभाषा फॉर्मूला बन गया.
इस प्रस्ताव को 1964-66 में कोठारी आयोग ने भी मंजूर कर लिया था. 1968 में इंदिरा गांधी सरकार की ओर से लाई गई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में इसे शामिल किया गया.
इसके मुताबिक़, उत्तर भारत में हिंदी और अंग्रेजी के अलावा दक्षिण भारत की कोई एक भाषा पढ़ाई जानी थी और गैर-हिंदी भाषी राज्यों में क्षेत्रीय भाषा और अंग्रेजी के साथ हिंदी सिखाई जानी थी.
राजीव गांधी की सरकार में बनी 1986 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति और 2020 की नई शिक्षा नीति को भी इस फॉर्मूले को बरकरार रखा गया.
पिछले कई वर्षों से केंद्र सरकार यह कहती रही है कि शिक्षा संविधान की समवर्ती सूची में है और त्रिभाषा फॉर्मूले को लागू करना राज्यों की ज़िम्मेदारी है.
जब स्मृति ईरानी 2014 में शिक्षा मंत्री थीं तो उन्होंने कहा था कि स्कूली शिक्षा के सिलेबस को राज्यों को ही अंतिम रूप देना है.
लेकिन अब शिक्षा मंत्रालय ने राज्यों को दिए जाने वाले एजुकेशन फ़ंड को नई शिक्षा नीति लागू करने से जोड़ दिया है. यानी अगर नई शिक्षा नीति लागू नहीं की तो राज्यों को एजुकेशन फ़ंड नहीं मिलेगा.
तमिलनाडु सरकार का कहना है कि केंद्र सरकार इसके जरिये दक्षिण भारत के राज्यों में हिंदी थोपना चाहती है. इस फ़ंड को रोककर कर वो इन राज्यों पर दबाव बनाना चाहती है.