गोलगप्पे की कहानी: क्या है महाभारत की कुंती और मगध साम्राज्य से कनेक्शन?

 

गोलगप्पे का असल इतिहास भले ही बहुत पुराना न हो मगर, उनके बारे में एक बात तय है कि ये हिंदुस्तान की शायद सबसे ज्यादा नामों वाली डिश है

कुछ दिन पहले खबर आई कि गुजरात के वडोदरा में कुछ समय के लिए गोलगप्पों पर प्रतिबंध लगा दिया गया है. 4,000 किलो गोलगप्पे, उनका पानी और आलू वगैरह फेंक दिए गए. असल में देश भर में फुचका, पानीपूरी, बताशे जैसे तमाम नामों से लोकप्रिय गोलगप्पों से जुड़े साफ-सफाई के मुद्दे बहुत गंभीर हैं. लेकिन यह बात भी सच है कि गोलगप्पों का मजा तो सड़क किनारे खाने में ही आता है. वैसे क्या आप जानते हैं कि लोग गोलगप्पों को महाभारत और मगध साम्राज्य तक से जोड़ देते हैं. चलिए जानते हैं गोलगप्पों के साथ जुड़ी कुछ चटखारेदार, चटपटी बातें और पानी के बताशों से जुड़ी कई और बातें.

क्या गोलगप्पे महाभारत कालीन हैं?

दुनिया में इतिहास और मिथक दो अलग-अलग चीज़ें होती हैं. महाभारत की कथा के साथ कई मिथक जुड़े हैं. इन्हीं में से गोलगप्पों से भी एक दंतकथा जोड़ दी गई है. इस कथा की प्रामाणिकता पर हम कोई टिप्पणी नहीं कर सकते, लेकिन कहानी रोचक है.

कहते हैं कि जब द्रौपदी की शादी पांचों पांडवों से हुई तो कुंती ने उनकी परीक्षा लेने की सोची. कुंती ने एक दिन द्रौपदी को खूब सारी सब्ज़ी और थोड़ा सा आटा दिया. द्रौपदी को उसी में पांचों पांडवों के लिए कुछ बनाना था. पांचाली ने आटे से गोल-गोल बताशे जैसे बनाए और उनमें बीच में सब्ज़ी भर दी. सारे पांडवों का पेट भर गया और माता कुंती खुश हो गईं. यही गोलगप्पों का सबसे पहला मॉडल था.

वैसे इस मिथक से अलग गोलगप्पों का संबंध मगध साम्राज्य से भी जोड़ने की कोशिश होती है. इंटरनेट पर कई जगह लिखा मिलता है कि मगध साम्राज्य में फुलकिस बहुत लोकप्रिय था. अब इन फुलकिस का स्वाद कभी बुद्ध या अशोक ने चखा होगा, ऐसा होना मुश्किल है. गोलगप्पों का सबसे जरूरी अंग आलू है. आलू पुर्तगालियों की लाई सब्ज़ी है. इसी तरह से गोलगप्पों के पानी को चटपटा बनाने वाली लाल मिर्च भी भारत में 300-400 साल पहले ही आई इसलिए मगध साम्राज्य का सीधा संबंध भी आज के गोलगप्पों से नहीं जोड़ा जा सकता है.

असल में मिथकों से अलग गोलगप्पा बहुत पुरानी डिश नहीं है. फूड हिस्टोरियन पुष्पेश पंत बताते हैं कि गोलगप्पा दरअसल राज कचौड़ी से बना व्यंजन हो सकता है. इसकी शुरुआत भी उत्तर प्रदेश और बिहार के बीच कहीं, या शायद बनारस में करीब 100-125 साल पहले हुई हो. तरह-तरह की चाट के बीच किसी ने गोल छोटी सी पूरी बनाई और गप्प से खा ली. इसी से इसका नाम गोलगप्पा पड़ गया.

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