केंद्रीय नागर विमानन मंत्री हरदीप पुरी ने साफ किया है कि एअर इंडिया का निजीकरण नहीं हुआ तो इसको चलाना मुश्किल होगा. उन्होंने कहा कि अगर एअर इंडिया का निजीकरण नहीं हुआ तो इसे चलाने के लिए पैसा कहां से आएगा?
संसद परिसर में न्यूज एजेंसी एएनआई से बात करते हुए हरदीप पुरी ने कहा, ‘यदि हम एअर इंडिया का निजीकरण नहीं करते, तो इसे चलाने के लिए पैसा कहां से मिलेगा? एअर इंडिया एक फर्स्ट क्लास का एसेट है और इसे यदि बेचा जाए तो हमें बिडर्स मिल जाएंगे. यदि हम आदर्श स्थिति देखें तो इसे चलाना वास्तव में मुश्किल है.’
गौरतलब है विनिवेश समिति ने यह तय किया था कि एअर इंडिया के कारोबार से सरकार पूरी तरह से बाहर निकल जाए. सरकार द्वारा संभावित बोलीदाताओं के पात्रता मानदंडों में भी ढील देने पर भी विचार किया जा रहा है जिससे नई कंपनियां और हाई नेटवर्थ इंडिविजुअल्स (एचएनआई) भी इसकी बिक्री प्रक्रिया में भाग ले पाएंगे.
एक भी पायलट ने इस्तीफा नहीं दिया
इसके पहले राज्यसभा में केंद्रीय नागर विमानन मंत्री हरदीप पुरी ने कहा कि एअर इंडिया के पायलट की पूरी देखभाल की जा रही है और एक भी पायलट ने इस्तीफा नहीं दिया है और उन्हें मार्केट के मुकाबले बेहतर वेतन दिया जा रहा है. उन्होंने कहा कि सिर्फ कुछ कर्मचारियों के वेतन का 25 फीसदी हिस्सा रोका गया है. विनिवेश से पहले यह हिस्सा भी सभी कर्मचारियों को दे दिया जाएगा.
निजीकरण के बाद आरक्षण का क्या होगा
निजीकरण के बाद एयर इंडिया के कर्मचारियों में आरक्षण का नियम क्या लागू होगा? इस सवाल पर केंद्रीय मंत्री ने कहा कि अक्सर होता यह है कि निजीकरण के बाद ज्यादातर पुराने कर्मचारी ही बने रहते हैं, लेकिन उसके बाद नई भर्ती में सरकार कोई दखल नहीं देती.
कर्ज में डूबी है एअर इंडिया
एअर इंडिया को वित्त वर्ष 2018-19 में 8,400 करोड़ रुपये का जबरदस्त घाटा हुआ. एअर इंडिया पहले से ही लंबे समय से पैसों की कमी से जूझ रही है और कर्ज के बोझ से दबी हुई है. ज्यादा ऑपरेटिंग कॉस्ट और फॉरेन एक्सचेंज लॉस के चलते कंपनी को भारी घाटा उठाना पड़ा है. एअर इंडिया को एक साल में जितना घाटा हुआ है उतने में तो एक नई एयरलाइंस शुरू की जा सकती है.
कितने का है कर्ज
एअर इंडिया पर फिलहाल करीब 60,000 करोड़ रुपये का कर्ज है, जिसमें विमानों की खरीद और कार्यशील पूंजी हेतु लिए गए दीर्घकालिक कर्ज भी शामिल हैं.