Mahakumbh: ‘अन्न, जल, पूजन सामग्री, मंत्र और अनुष्ठान सब प्रदूषित’, शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने बताई वजह

ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कहा कि आज हमारा खानपान ही नहीं, अन्न, जल तक प्रदूषित हो गया है। पूजा की सामग्री प्रदूषित है। मंत्र, अनुष्ठान प्रदूषित हैं। 

ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कहा कि सतर्कता में शिथिलता धर्म-कर्म को प्रदूषित कर देती है। आज हमारा खानपान ही नहीं, अन्न, जल तक प्रदूषित हो गया है। पूजा की सामग्री प्रदूषित है। मंत्र, अनुष्ठान प्रदूषित हैं। भाषा-भाव और भंगिमा भी प्रदूषित हो रहे हैं। नए-नए देवता बनते जा रहे हैं। धर्म-अधर्म से मिश्रित हो रहा है। यदि अधर्म अपने स्पष्ट रूप में हमारे सामने आए तो काफी हद तक संभव है कि हम उससे बच सकें पर जब वह धर्म के रूप में हमारे सामने आता है तो उससे बचना कठिन हो जाता है।

अविमुक्तेश्वरानंद सोमवार को सेक्टर-19 के शंकराचार्य शिविर में आयोजित परमधर्मसंसद में धार्मिक प्रदूषण पहचान एवं निवारण विषय पर बोल रहे थे। शंकराचार्य ने कहा कि भागवत में व्यास जी ने अधर्म की पांच शाखाओं का वर्णन किया है। उसमें विधर्म, परधर्म, आभास, उपमा और छल शामिल हैं। यही धार्मिक प्रदूषण है जो अधर्म को धर्म के रूप में प्रस्तुत कर हमें गर्त में ले जा रहा है। विधर्म माने धर्म समझकर करने पर भी जिससे धर्मकार्य में बाधा पड़ती हो जैसे यहूदी, पारसी, ईसाई, इस्लाम आदि ।

परधर्म माने अन्य के द्वारा अन्य के लिए उपदिष्ट धर्म जैसे ब्रह्मचारी का गृहस्थ को, गृहस्थ का संन्यासी को। आभास स्वेच्छाचार जो धर्म सा लगता है जैसे अनधिकारी का संन्यास। उपमा माने पाखंड तथा छल माने शास्त्र वचनों की अपने मन से की गई व्याख्या या उनमें अपने आप से मनमाना बदलाव कर देना। समस्त सनातनधर्मियों को सतर्क रहकर धर्म के सच्चे स्वरूप को समझते हुए धार्मिक प्रदूषणों से बचकर रहने की आवश्यकता है। विशिष्ट अतिथि महामंडलेश्वर स्वामी आशुतोष गिरी महाराज ने कहा कि देश में गो हत्या पूर्णतः प्रतिबंधित हो और गो माता को राष्ट्रमाता का दर्जा मिले इसके लिए हम सबको एकजुट होकर आवाज उठानी चाहिए। ।

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