ठीक 72 साल पहले 31 अक्टूबर को जम्मू-कश्मीर में क्या हो रहा था?

15 अगस्त 1947 को भारत को आजादी मिलने के बाद से ही कश्मीर पर पड़ोसी देश की बुरी नजर लग गई थी. तब कश्मीर में राजा हरिसिंह की रियासत थी. अक्टूबर आते-आते हालात बदतर हो रहे थे. कबायलियों की सेना श्रीनगर की ओर बढ़ने लगी थी. धर्म विशेष के लोगों के साथ हत्या-लूटपाट और अन्य जुर्म बढ़ने लगे थे. जानें- 31 अक्टूबर के दिन जम्मू कश्मीर में क्या हो रहा था.

ठीक 72 साल पहले 31 अक्टूबर को जम्मू-कश्मीर में क्या हो रहा था?

जम्मू-कश्मीर रियासत में महाराजा हरि सिंह के सामने संकट के बादल मंडराने लगे थे. 25 अक्टूबर के दिन वो शहर छोड़कर भाग गए. अपनी गाड़ियों के काफिले के साथ वो जम्मू में मौजूद अपने सुरक्षित महल में पहुंच गए. उन्होंने जम्मू पंहुचकर तकरीबन हार मान ली थी. एक बयान में राजा हरिसिंह के बेटे ने बताया था कि उनके पिता ने जम्मू पहुंचकर कहा था कि हम कश्मीर हार मान गए. बस उसी कठिन समय में उन्होंने भारत के साथ संधि के लिए अपना मन मजबूत करके संधि पर हस्ताक्षर कर दिए.

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आधिकारिक तथ्यों के आधार पर वो 26 अक्टूबर 1947 का दिन था, जिस दिन भारत के गृह मंत्रालय के सचिव वीपी मेनन विलय के कागज पर महाराजा ने हस्ताक्षर किए.

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फिर आया 27 अक्टूबर का दिन, जब भारतीय सेना कश्मीर की तरफ कूच कर चुकी थी. सेना को हवाई जहाज से श्रीनगर में उतारा गया. ये हवाई पट्टी का इलाका था जहां बड़ी संख्या में सैनिक उतरे थे. ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार 31 अक्टूबर के दिन भारतीय सेना का पाकिस्तान के साथ घमासान युद्ध जारी था. बताते हैं कि पाकिस्तान ने महाराजा हरि सिंह को अपने साथ मिलाने के लिए कई प्रलोभन भी दिए थे.

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पाकिस्तान के अफसरों ने कश्मीर का दौरा किया और मंशा पूरी न होने पर नॉर्थ-वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस से पाकिस्तान ने 22 अक्टूबर, 1947 को विद्रोह शुरू कर दिया. सिर्फ पांच दिनों में पाकिस्तानी सैनिक श्रीनगर के काफी पास आ गए. वो यहां से सिर्फ 25 मील ही दूर रह गए.

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यही नहीं आजादी के उसी साल में लॉर्ड माउंटबेटन भी कश्मीर गए थे. उन्होंने राजा हरि सिंह से कहा कि भारत-पाकिस्तान अब अलग हो चुके हैं. वे किसी एक देश को चुन लें. फिर भी हरि सिंह ने इस पर हामी नहीं भरी.
कहा जाता है कि हरि सिंह के रवैये को माउंबेटन भी भांप गए थे और वापस आ गए थे. माउंटबेटन के राजनैतिक सलाहकार वी पी मेनन की किताब ‘द स्टोरी ऑफ द इन्टिग्रेशन ऑफ द इंडियन स्टेट्स’ के मुताबिक भारत के तत्कालीन गृहमंत्री सरदार बल्लभ भाई पटेल ने माउंटबेटन से यहां तक कहा कि अगर कश्मीर पाकिस्तान से मिलना चाहता है तो उन्हें कोई दिक्कत नहीं है. फिर भी महाराजा हरि सिंह फैसला नहीं ले पा रहे थे, तनाव बढ़ता जा रहा था.

वहां के हालात पाकिस्तानी सैनिकों के पक्ष में ज्यादा थे, फिर भी भारतीय सैनिकों ने उन्हें लंबे प्रयास के बाद वहां से उखाड़ फेंका. तब तक कश्मीर के मुजफ्फराबाद को पाकिस्तान ने हथिया लिया. लेकिन, यहां से दोनों राष्ट्रों के बीच दुश्मनी की दीवार और मजबूत हो गई. जवाहर लाल नेहरू ने संयुक्त राष्ट्र में भी ये मुद्दा उठाया. संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद ने जम्मू-कश्मीर को विवादित कहते हुए रिफरेंडम यानी जनमत संग्रह की बात कही. दोनों देशों से सेनाएं हटाने को भी कहा गया लेकिन कोई भी पीछे नहीं हटा.

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उस दौरान भारत की कश्मीर में स्थ‍िति काफी मजबूत हो गई थी. स्थानीय नेता और लोग भी भारत के पक्ष में थे. शायद इसके पीछे पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति को भी वजह बता सकते हैं. राजा हरि सिंह के फैसले का सभी ने स्वागत किया था. अब कश्मीर का भारत के साथ विलय हो चुका था.

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