भारत- चीन समझौते पर क्यों उठ रहे हैं सवाल, क्या कह रहे हैं एक्सपर्ट

रूस के कज़ान में ब्रिक्स सम्मेलन शुरू होने से ठीक पहले भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान ऐलान किया कि भारत और चीन पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा यानी एलएसी पर गश्त के पैटर्न को लेकर एक समझौते पर पहुंच चुके हैं.

विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भी कहा कि कि भारत-चीन सीमा के इस हिस्से में गश्त का पैटर्न अप्रैल 2020 की स्थिति में लौट आएगा.

इसके बाद कज़ान में भारत और चीन एक कदम और आगे बढ़े. पांच साल के लंबे अंतराल के बाद भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की द्विपक्षीय वार्ता हुई.

दोनों नेताओं ने सीमा पर तनाव घटाने को लेकर हुए समझौते का स्वागत किया.

इससे ऐसा लग रहा है कि सीमा पर भारत और चीन के बीच रिश्ते अब सामान्य हो जाएंगे. लेकिन भारत-चीन के रिश्तों को अच्छी तरह समझने वाले कई जाने-माने विशेषज्ञों को इस पर शक है. वो समझौते की भाषा और चीन के अब तक के रुख़ का हवाला देकर इस पर सवाल उठा रहे हैं.

डिसइंगेजमेंट लंबी और मुश्किल प्रक्रिया – ब्रहमा चेलानी

सामरिक मामलों के जाने-माने विश्लेषक ब्रह्मा चेलानी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर इस समझौते पर प्रतिक्रिया देते हुए लिखा, ”भारत और चीन के बीच हाल के घटनाक्रमों से दोनों के रिश्तों पर जमी बर्फ के पिघलने की संभावना तो बढ़ी है. लेकिन दोनों देशों के बयानों से लग रहा है कि सीमा की समस्या को लेकर उनका नज़रिया अलग है. साथ ही हाल के दिनों में जिन मुद्दों पर उनकी सहमति बनी है वो भी अलग-अलग हैं.”

ब्रह्मा चेलानी लिखते हैं, ”दोनों ओर के बयानों से ऐसा लगता है दोनों देशों की सेनाएं सीमा पर डिसइंगेजमेंट की पहल करेंगी. तनाव कम करेंगी और आखिर में अपने-अपने क्षेत्र में लौट जाएंगी. लेकिन ये लंबी और मुश्किल प्रक्रिया होगी. ”

उन्होंने लिखा, ”अब ये साफ़ हो गया है कि भारतीय विदेश मंत्री का 21 अक्टूबर का बयान जल्दबाजी में दिया गया था. उन्होंने कहा था कि भारत और चीन के बीच पट्रोलिंग को लेकर एक समझौता हो चुका है और दोनों देशों की सेनाएं अपने 2020 की पोजीशन में वापस लौटने के लिए तैयार हैं.”

”दोनों देश डिसइंगेजमेंट को लेकर अभी बातचीत कर ही रहे हैं. लेकिन 2020 के अप्रैल महीने में चीन की ओर से सीमा पर गुप्त रूप से किए गए अतिक्रमण से पहले की स्थिति बहाल होने की संभावना नहीं दिखती है.”

‘हेडलाइन मैनेजमेंट’

रक्षा मामलों के विशेषज्ञ और येल यूनिवर्सिटी के लेक्चरर सुशांत सिंह भी इस समझौते के कारगर होने पर सवाल उठा रहे हैं.

उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, ”जैसा कि इस बात का डर था. ये हेडलाइन मैनेजमेंट की कवायद है. डेपसांग में पट्रोलिंग को लेकर चीन से क्या बात हुई ये साफ़ नहीं है. साथ ही इसके बदले चीन को क्या मिला है ये भी पता नहीं है. पूर्वी लद्दाख में तनाव कम करने और नए सैनिकों की तैनाती को लेकर भी कोई साफ रास्ता नहीं बताया गया है.”

सुशांत सिंह कहते हैं, ”पूर्वी लद्दाख में दोनों देशों की सेनाओं के बीच तनाव घटाने और सैनिकों की तैनाती रोकने के लिए भी दोनों ओर से कोई चर्चा नहीं हुई है. जबकि 2020 के अप्रैल महीने से पहले की स्थिति बहाल करने के लिए ये ज़रूरी था.”

उन्होंने लिखा कि विदेश सचिव की प्रेस ब्रीफिंग्स में ये साफ किया गया कि पूर्वी लद्दाख में भारतीय सैनिकों के सभी अधिकार बहाल नहीं किए गए हैं क्योंकि गलवान, गोगरा, पैंगॉन्ग के नॉर्थ ब्लॉक और कैलाश रेंज में बफर जोन ज्यों के त्यों बरकरार हैं.

सुशांत लिखते हैं, ‘’भारत में ऐसे लोगों की पूरी जमात है कि जिन्होंने चीन के साथ इस सीमा संकट की गंभीरता को कम करके आंका और अब वो तथाकथित समाधान का हल्ला मचा रहे हैं. इस बारे में उठने वाले हर वाजिब सवाल का जवाब देने के बजाय उनका का ये रुख है.’’

उन्होंने लिखा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात के बाद जारी किए बयानों में भी अंतर है. भारतीय बयान में कहा गया का भारत और चीन बहुध्रुवीय एशिया और बहुध्रुवीय विश्व बनाने में योगदान देंगे. वहीं चीन ने कहा,’’ उसका मानना है कि दोनों देशों को इस उद्देश्य के लिए एक साथ काम करना चाहिए.”

‘सभी आपसी विवाद सुलझ जाने की उम्मीदें बेमानी’

भारत के पूर्व विदेश और कई देशों में देश के राजदूत रह चुके कंवल सिब्बल ने न्यूज़ चैनल न्यूज़एक्स के एक कार्यक्रम में कहा कि मोदी और शी जिनपिंग की मुलाकात भारत और चीन के रिश्तों को सामान्य करने की दिशा में पहला अहम कदम है.

लेकिन उन्होंने भी ये कहा कि इस मुलाकात से भारत और चीन के बीच सभी आपसी विवाद सुलझ जाने की उम्मीदें बेमानी होगी. इसके बजाय उन्होंने सीमा पर डिसइंगेजमेंट और फिर वहां से अपनी-अपनी सेनाओं को पीछे हटाने पर होने वाली सहमति पर ज्यादा जोर दिया. उन्होंने कहा कि रिश्तों में तनाव कम करने के लिए डिसइंगेजमेंट एक मात्र पहला कदम होगा. इसके बाद सेना हटाने और तनाव कम करने के कदम उठाने होंगे. फिर दोनों देशों को उन जगहों पर अपनी सेना तैनात करनी होगी जहां वो 2020 में तनाव बढ़ने से पहले थे.

सिब्बल ने ये भी कहा कि चीन के पास अपनी भू-राजनीतिक चुनौतिया हैं. जैसे अमेरिका और जापान से उसका बढ़ता तनाव और खराब होते घरेलू आर्थिक हालात. शायद इन वजहों ने ही उसे भारत के साथ अपने रिश्ते सामान्य बनाने की दिशा में सोचने के लिए बाध्य किया होगा. चीन ने देखा होगा कि उस पर दबाव बढ़ रहा है और भारत के साथ सीमा पर इस गतिरोध का उसे बहुत कम फायदा हुआ है.

‘सतर्क रहना होगा’

वहीं चीन में भारत के राजदूत रह चुके गौतम बंबावले ने टाइम्स ऑफ इंडिया में भारत और चीन के बीच सीमा पर तनाव कम करने को हुए समझौते पर लिखा कि इस मामले में बारीकियों पर गौर करना होगा. बारीकियों पर जाने पर पता चलता है कि पट्रोलिंग को लेकर जो समझौता हुआ वो कैसे काम करेगा इस बारे में संकेत काफी कम हैं.

उन्होंने लिखा कि भारत 2020 से 2024 के बीच पिछले साढ़े चार वर्षों में चीन के साथ अपने अनुभव को नजरअंदाज नहीं कर सकता. चीन की वजह से दोनों सरकारों के बीच विश्वास में काफी कमी आई है. इसे एक बार में एक कदम आगे बढ़ाकर ही फिर से बनाया जा सकता है. लेकिन ये तय है कि पूर्वी लद्दाख में चीन की ओर से उठाए गए कदम से पहले दोनों देशों के बीच विश्वास का जो स्तर था उसे पाने में कई साल लगेंगे.

उन्होंने लिखा’’ दुर्भाग्य से भारत के मुख्य आर्थिक सलाहकार ने इस साल के आर्थिक सर्वेक्षण में चीन से भारत में अधिक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति देने के बारे में अपनी घुमावदार बातों से लोगों को भ्रम में डाल दिया. निश्चित रूप से, हमारे वित्त मंत्रालय के ऐसे वरिष्ठ अधिकारी को सरकार में हमारे राष्ट्रीय सुरक्षा विशेषज्ञों से यह पूछना चाहिए था कि क्या इस विचार को आधिकारिक दस्तावेज में इतने स्पष्ट रूप से जाहिर करना सही था.”

उन्होंने लिखा. ’’ऐसा करना बिल्कुल गलत था क्योंकि इससे चीन को स्पष्ट रूप से संदेश गया कि हमारी सरकार चीनी निवेश के मामले में दो हिस्सों में बंटी हुई है.‘’

लिहाजा भारत को चीन जैसे देश के साथ आगे बढ़ने के तरीके को लेकर सतर्क और सावधान रहना होगा.

चीन की हर कार्रवाई की बारीकी से जांच और विश्लेषण करना होगा अंतरराष्ट्रीय राजनीति में कोई तत्काल समाधान नहीं होता.

चीन के साथ अचानक हमेशा की तरह व्यापार नहीं हो सकता.

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