भारत कैसे इस वायरस को फैलने से रोक सकता है ?

भारत में ऑक्सीजन की कमी को दूर करने के लिए अंतरराष्टीय मदद की जा रही है.

यूके ने वेंटिलेटर और ऑक्सीजन कंसेन्ट्रेटर्स भेजना शुरू कर दिया है और अमेरिका ने वैक्सीन बनाने के लिए काम आने वाले कच्चे पदार्थों के निर्यात पर से पाबंदी हटा ली है जिससे एस्ट्राज़ेनेका की वैक्सीन कोविशील्ड बनाने में मदद मिलेगी.

कई दूसरे देश भी भारत को मेडिकल स्टाफ़ और दूसरे मेडिकर उपकरण भेज रहे हैं.

भारत सरकार ने देश भर में 500 ऑक्सीजन जेनेरेशन प्लांट लगाने की मंज़ूरी दे दी है.

लेकिन इन सबसे कोरोना से होने वाली मौतों को रोका जा सकता है, कोरोना से होने वाले संक्रमण को नहीं.

दुनिया को इस वक़्त ज़रूरत है कि भारत वैक्सीनेशन की अपनी क्षमता बढ़ाए ताकि वो वायरस को दुनिया भर में फैलने से रोके.

जब इस महामारी की शुरुआत हुई थी तब भारत को इस पर क़ाबू पाने की उम्मीद थी और उसके कारण भी थे, क्योंकि जहां तक वैक्सीन का सवाल है भारत दुनिया में सबसे ज़्यादा वैक्सीन बनाता है.

भारत में टीकाकरण का बहुत बड़ा अभियान चलता है, दुनिया भर की 60 फ़ीसदी वैक्सीन भारत में बनती है और दुनिया भर के बड़े दवा निर्माताओं में से सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया (एसआईआई) समेत क़रीब आधे दर्जन का मुख्यालय तो भारत में ही है.

सौतिक बिस्वास के अनुसार, “लेकिन इन सबके बावजूद कोरोना वायरस के ख़िलाफ़ वैक्सीनेशन में अप्रत्याशित चुनौती पैदा हो रही हैं.”

भारत में कोरोना वायरस के ख़िलाफ़ दुनिया का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान 16 जनवरी को शुरू हुआ और जुलाई तक क़रीब 25 करोड़ लोगों को वैक्सीन देने का लक्ष्य रखा गया.

अभी तक सिर्फ़ 11 करोड़ 80 लाख लोगों को पहला डोज़ दिया जा सका है. यह भारत की आबादी का क़रीब नौ फ़ीसदी हैं.

सबसे पहले हेल्थवर्कर्स और फ़्रंटलाइन स्टाफ़ को वैक्सीन दी गई थी लेकिन अब 18 साल से अधिक उम्र के सभी लोगों को एक मई से वैक्सीन देने का फ़ैसला किया गया है.

लेकिन भारत की इतनी बड़ी आबादी को देखते हुए वैक्सीनेशन में दिक़्क़तें आ रही हैं.

विशेषज्ञों का कहना है कि वैक्सीनेशन की रफ़्तार को तेज़ करनी होगी अगर भारत अपना लक्ष्य पूरा करना चाहता है तो.

सौतिक बिस्वास कहते हैं, “अभी यह साफ़ नहीं है कि भारत के पास पर्याप्त मात्रा में वैक्सीन है या नहीं या उसके पास युवाओं को भी वैक्सीन देने की क्षमता है या नहीं.”

जब तक इतनी बड़ी आबादी को वैक्सीन नहीं लग जाती है, तब तक यह पूरी दुनिया के लिए ख़तरा है.

प्रोफ़ेसर मेनन कहते हैं, ” कोरोना जैसी संक्रमण वाली बीमारियों की दिक़्क़त यह है कि यह महामारी किसी एक देश की समस्या नहीं है, कुछ देशों की भी नहीं है बल्कि यह तो सचमुच में एक वैश्विक समस्या है.”

वो कहते हैं, “हमें कोरोना के टेस्ट और वैक्सीनेशन के मामले में और अधिक अंतरराष्ट्रीय सहयोग के सहयोग की ज़रूरत है.”

कोरोना महामारी की शुरुआत में ही पब्लिक हेल्थ के अधिकारियों और राजनेताओं ने कहा था कि, “जबतक हर कोई सुरक्षित नहीं है उस वक़्त तक कोई सुरक्षित नहीं है.

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