दिल्ली विधानसभा चुनाव : कांग्रेस और आप में गठबंधन क्यों नहीं हो पा रहा?

दिल्ली में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों में पूर्व मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी (आप) के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस के साथ गठबंधन की संभावना से इनकार कर दिया.

अरविंद केजरीवाल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में रविवार को कहा, “दिल्ली में कोई गठबंधन नहीं होगा.”

हरियाणा के विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस और आप के बीच गठबंधन की चर्चा चली थी, लेकिन बात नहीं बनी.

वहीं दिल्ली में आप और कांग्रेस के गठबंधन को लोकसभा चुनाव में सात में से एक भी सीट नहीं मिली थी. पंजाब में दोनों एक-दूसरे के ख़िलाफ़ चुनावी मैदान में उतरे. दोनों दलों के बीच ये उतार-चढ़ाव वाली ‘दोस्ती’ आप के बनने के बाद से ही चल रही है.

ऐसे में सवाल ये है कि आख़िर बीजेपी के ख़िलाफ़ बने गठबंधन ‘इंडिया’ में शामिल कांग्रेस और आप साथ क्यों नहीं आ पा रहे ?

आप और कांग्रेस के बीच गठबंधन क्यों नहीं हुआ ?

हरियाणा विधानसभा चुनाव में आप को 1.79 फ़ीसदी वोट मिले थे. वहीं बीजेपी को 39.94 प्रतिशत तो कांग्रेस के खाते में 39.09 प्रतिशत मतदान गया.

बीजेपी ने 90 में से 48 सीटें जीतकर सरकार बना ली. वहीं कांग्रेस को 37 सीटों से ही संतुष्ट होना पड़ा. आप का खाता भी नहीं खुला.

ऐसे में देखा जाए तो बीजेपी और कांग्रेस के बीच के वोट में अंतर सिर्फ 0.85 का था.

जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) में प्रोफेसर रहे अरुण कुमार ने कहा कि आप और कांग्रेस साथ आते तो शायद बीजेपी को हरियाणा में फायदा नहीं होता.

आप और कांग्रेस के बीच गठबंधन नहीं होने के सवाल पर अरुण कुमार ने कहा, “दोनों (आप और कांग्रेस) का बेस एक ही है. दोनो चाहते हैं कि हम बढ़े और इस कारण समझौता नहीं हो पाता कि कैसे सहयोग करे.”

“आप बढ़ेगी तो कांग्रेस के क्षेत्र में बढ़ेगी और कांग्रेस बढ़ेगी तो आप का बढ़ना रुक जाएगा. इस कारण दोनों का समझौता दिल्ली में नहीं हो पाता.”

वो आगे कहते हैं कि हरियाणा में गठबंधन हो जाता तो शायद दोनों (आम आदमी पार्टी और कांग्रेस) को फायदा हो जाता.

आप और कांग्रेस की ‘दोस्ती’ बनती और टूटती क्यों रहती है ?

साल 2013 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को 70 में से 28 सीटें मिली थी. वहीं बीजेपी 31 सीटों पर जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनी थी. इसके बाद कांग्रेस ने आप का साथ दिया और अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री बन गए. दोनों का साथ 50 दिन भी नहीं चल पाया.

राजनीति में कुछ भी हो सकता है, लेकिन ये थोड़ा चौंकाने वाला ज़रूर था कि आप ने उस कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाई जिसके ख़िलाफ़ वो प्रचार करके चुनावी मैदान में उतरी.

इसके बाद से आप और कांग्रेस के बीच गठबंधन होता और टूटता रहता है.

इस पर वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद जोशी कहते हैं, “आप और कांग्रेस तो दिल्ली में लोकसभा चुनाव में ही गठबंधन में लड़े. इसके अलावा दिल्ली में गठबंधन का मौका नहीं मिला.”

“पहली सरकार बनी भी थी तो शीला दीक्षित ने आप को समर्थन दिया भी था, लेकिन शीला दीक्षित को शायद ये अनुमान था कि ‘आप’ के नेता अपने अंतर्विरोधों में फंस जाएंगे और आख़िर में मुंह के बल गिरेंगे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं.”

उन्होंने आगे कहा कि दिल्ली में लोकसभा चुनाव में आप और कांग्रेस के बीच गठबंधन हुआ लेकिन इसका कोई फर्क तो नहीं पड़ा और सातों सीट बीजेपी जीत गई.

वो कहते हैं, “लोकसभा चुनाव में चार और तीन का फॉर्मूला था. मान लीजिए कि विधानसभा चुनाव में 40 और 30 का फॉर्मूला हो.”

“40 में से आप 30 सीटें जीत भी जाती है तो 60 प्लस की तुलना में वो कमजोर हो जाएगी.”

कांग्रेस के साथ दिल्ली में क्या दुविधा है?

वरिष्ठ पत्रकार और लेखक रशीद किदवई कहते हैं कि कांग्रेस इस समय कमजोर है.

रशीद किदवई ने कहा, “भारतीय राजनीति में गठबंधन राजनीतिक मजबूती से होते हैं. कांग्रेस इस समय कमजोर है. खासकर हरियाणा और महाराष्ट्र के चुनाव के बाद में साफ जाहिर हो गया कि कांग्रेस अपने बूते पर बीजेपी से टक्कर लेने में सक्षम नहीं है.”

“अरविंद केजरीवाल के बयान से ‘इंडिया’ गठबंधन के अस्तित्व पर बड़ा प्रश्न चिह्न लग गया है. अरविंद केजरीवाल हरियाणा के चुनाव में चाहते थे कि ‘इंडिया’ का घटक दल होने के नाते कांग्रेस उनको कुछ स्थान दे, लेकिन कांग्रेस ने अपनी जीत के उत्साह में केजरीवाल की मांग को ठुकरा दिया. केजरीवाल नहीं चाहते हैं कि वो कांग्रेस को दिल्ली में पांच से दस सीटें दे.”

उन्होंने कहा कि कांग्रेस के साथ दुविधा ये है कि अपने बूते दिल्ली में शून्य है. तीसरी बार ऐसा हो सकता है कि विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का खाता भी नहीं खुले.

दरअसल 2015 और 2020 में हुए दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 70 में से एक भी सीट नहीं जीत पाई और उसके वोट प्रतिशत में लगातार गिरावट आती गई.

क्या कहते हैं आंकड़े

वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद जोशी ने कहा कि आप का उदय तो कांग्रेस के ख़िलाफ़ हुआ.

उन्होंने कहा कि पंजाब में एक-दूसरे के ख़िलाफ़ ही दोनों (आप और कांग्रेस) लड़े. हरियाणा में हुए विधानसभा चुनाव में भी गठबंधन नहीं था. आप का विकास जो भी हुआ वो तो कांग्रेस के विरोध के रूप में हुआ. आप के जन्म के समय तो कांग्रेस ही सत्ता में थी.

दिल्ली की सत्ता पर 15 साल तक काबिज रहीं शीला दीक्षित के नेतृत्व वाली कांग्रेस 2013 के विधानसभा चुनाव में हार गई. आप के खाते में बीजेपी के नहीं बल्कि कांग्रेस के वोट गए. बीजेपी के दिल्ली में 30 फीसदी से अधिक वोटर बने हुए हैं.

2013 के विधानसभा चुनाव में आप को 28 सीटों के साथ 29 फ़ीसदी से अधिक वोट मिले. वहीं बीजेपी का अपना वोट बना रहा और वो 30 प्रतिशत से अधिक मत के साथ 31 सीट जीते. इसके अलावा कांग्रेस को 24 फ़ीसदी से अधिक वोट मिले.

2015 के विधानसभा चुनाव में आप ने 67 सीटें जीती और बीजेपी 3 पर ही सिमट गई. इसमें कांग्रेस का वोट प्रतिशत 10 फीसदी के करीब रहा. बीजेपी का वोट प्रतिशत इसमें भी 30 फ़ीसदी से अधिक बना रहा.

वहीं आप को 54 प्रतिशत से अधिक वोट मिले.

2020 में आप को 62 सीटें 53 प्रतिशत से ज्यादा वोट के साथ मिली. वहीं बीजेपी को इस बार 35 फीसदी से अधिक मत मिले, लेकिन इसमें कांग्रेस पांच प्रतिशत के आंकड़े को भी पार नहीं कर पाई.

ये तो दिल्ली में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव परिणाम के बाद ही पता लगेगा कि किसे कितनी सीटें मिलेगी, लेकिन इतना साफ है कि कांग्रेस के लिए राह काफी मुश्किल होने वाली है.

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