छिंदवाड़ा लोकसभा सीट: क्या कमलनाथ के गढ़ में इस बार खिल पाएगा ‘कमल’?

छिंदवाड़ा मध्य प्रदेश की हाईप्रोफाइल सीटों में से एक है. यह क्षेत्र कांग्रेस के दिग्गज नेता और राज्य के मुख्यमंत्री कमलनाथ का गढ़ रहा है. कमलनाथ साल 1980 से इस सीट से लोकसभा का चुनाव जीतते आ रहे हैं. छिंदवाड़ा की जनता ने कमलनाथ को सिर्फ एक बार निराश किया है, जब 1997 में उन्हें यहां से हार मिली.

उनकी पत्नी अलकानाथ भी इस सीट से चुनाव में जीत हासिल कर चुकी हैं. कमलनाथ की पकड़ इस क्षेत्र में कितनी मजबूत है आप इस बात का अंदाजा इससे लगा सकते हैं कि 2014 में मोदी लहर में भी वह अपनी सीट बचाने में कामयाब रहे थे.अब जब वह राज्य के मुख्यमंत्री हैं तो ऐसे में उम्मीद है कि वह इस बार का लोकसभा चुनाव ना लड़ें. ऐसे में बीजेपी के पास इस बार इतिहास रचने का बेहतरीन का मौका है.

सामाजिक ताना-बाना

छिंदवाड़ा मध्य प्रदेश के दक्षिणी हिस्से में स्थित है. देश के कई नामी कंपनियों की फैक्ट्री इस शहर में है. छिंदवाड़ा को देश का सबसे पिछड़ा इलाका माना जाता था. लेकिन आज छिंदवाड़ा के पास विकास का अपना एक मॉडल है. इस शहर में कमलनाथ ने ना केवल सड़कों का जाल बिछाया बल्कि शहर को एक एजुकेशन हब के तौर पर भी विकसित किया. इसके अलावा उन्होंने स्किल ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट भी बनवाया है.

यहां पर उन्होंने 56 किमी लंबा रिंग रोड, कॉल सेंटर, मॉडल रेलवे स्टेशन बनवाया है. 2011 की जनगणना के मुताबिक छिंदवाड़ा की जनसंख्या 2090922 है. यहां की 75.84 फीसदी आबादी ग्रामीण क्षेत्र और 24.16 फीसदी शहरी क्षेत्र में रहती  है. छिंदवाड़ा में 11.11 फीसदी जनसंख्या अनुसूचित जाति और 36.82 फीसदी जनसंख्या अनुसूचित जनजाति की है. चुनाव आयोग के आंकड़े के मुताबिक 2014 के चुनाव में यहां पर 14,01,277 मतदाता थे. इनमें से 6,79,795 महिला मतदाता और 7,21,482 पुरुष मतदाता थे. 2014 के लोकसभा चुनाव में इस सीट पर 79.03 फीसदी मतदान हुआ था.

राजनीतिक पृष्ठभूमि

छिंदवाड़ा में पहला लोकसभा चुनाव साल 1951 में हुआ. पहले चुनाव में कांग्रेस के रायचंद भाई शाह को जीत मिली थी. 1957 और 1962 के चुनाव में भी कांग्रेस को जीत मिली. बीकूलाल लखमिचंद कांग्रेस के टिकट इन दोनों चुनावों में जीत हासिल करने में कामयाब हुए थे.वहीं 1967, 1971 और 1977 के चुनाव में गार्गीशंकर मिश्रा को जीत मिली.वह लगातार तीन बार इस सीट से सासंद बने.

इसके बाद 1980 में कांग्रेस की ओर से कमलनाथ मैदान में उतरे. उन्होंने अपने पहले ही चुनाव में जीत हासिल की और राजनीतिक करियर की एक शानदार शुरुआत की. कमलनाथ 1980 से लेकर 1991 तक हुए 3 चुनावों में जीत हासिल किए.

1996 के चुनाव में इस सीट पर कमलनाथ की पत्नी अलकानाथ लड़ीं. यहां की जनता ने उन्हें भी निराश नहीं किया और उन्होंने बीजेपी के चौधरी चंद्रभान सिंह को मात दी.

बता दें कि 1996 में हवाला कांड में नाम आने के बाद कांग्रेस ने कमलनाथ को टिकट नहीं दिया था. हालांकि बाद में कमलनाथ की पत्नी ने इस्तीफा दे दिया. जिसके कारण 1997 में यहां पर उपचुनाव हुआ.कमलनाथ एक बार फिर मैदान में उतरे.

उनके सामने बीजेपी के दिग्गज नेता सुंदरलाल पटवा थे. इस चुनाव में पटवा ने कमलनाथ के सपने को तोड़ दिया और इस सीट पर पहली बार कमलनाथ को हार मिली. हालांकि अगले साल 1998 में फिर चुनाव हुए और पटवा कमलनाथ से हार गए. 1998 से लेकर 2014 तक इस सीट पर हुए 5 चुनावों में सिर्फ और सिर्फ कमलनाथ का ही जादू चला है. बीजेपी ने उन्हें हराने की हर कोशिश की, लेकिन उसके सारे प्रयास नाकाम ही रहे.

छिंदवाड़ा लोकसभा सीट के अंतर्गत विधानसभा की 7 सीटें आती हैं. जुन्नारदेव, सौंसर, पंधुरना, अमरवारा, छिंदवाड़ा, चुरई,पारसिया यहां की विधानसभा सीटें हैं. सभी 7 सीटों पर कांग्रेस का कब्जा है.

2014 का जनादेश

2014 के लोकसभा चुनाव में कमलनाथ को जीत मिली थी. उन्होंने बीजेपी के चौधरी चंद्रभान सिंह को हराया था. कमलनाथ को 5,59,755(50.54 फीसदी) वोट मिले थे तो वहीं चंद्रभान सिंह को 4,43,218(40.02 फीसदी) वोट मिले थे. यानी दोनों के बीच जीत हार का अंतर 1,16,537 वोटों का था.

2009 के लोकसभा चुनाव में भी कमलनाथ को ही जीत मिली थी. उन्होंने बीजेपी के मारोत रॉव को हराया था. कमलनाथ को इस चुनाव में 4,09,736(49.41 फीसदी) वोट मिले थे तो वहीं मारोत रॉव को 2,88,516(34.79 फीसदी) वोट मिले थे. कमलनाथ को इस चुनाव में 1,21,220 वोटों से जीत मिली थी.

 

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