वॉर ओलंपिक्स; रूस और चीन की नजदीकी से भारत-US की बढ़ेगी टेंशन!

कोरोना वायरस की वजह से इस साल होने वाला टोक्यो ओलंपिक्स तो टल गया लेकिन इस समय रूस में एक और ओलंपिक चल रहा है. इसमें चीन भी उसका साथ दे रहा है. इस ओलंपिक का नाम है वॉर ओलंपिक्स (War Olympics). यहां पर रेस होती है टैंक्स से, निशाना लगाया जाता है बम और गोलों से, मैराथन होती है गोलियां बरसाते सैनिकों की. आइए जानते हैं कि इस वॉर ओलंपिक्स में क्या-क्या हो रहा है. 

वॉर ओलंपिक्स की शुरूआत रूस ने साल 2015 में की थी. मकसद था पारंपरिक युद्ध कौशल को खेल के साथ जोड़ दिया जाए. ताकि यह पता चल सके कि कौन से देश की सेना और उसके हथियार इन खेलों के लिए बेहतरीन हैं. या फिर वो युद्ध के मैदान में कितनी क्षमता रखते हैं. इन खेलों में रूस और चीन के संबंध मजबूत होते जा रहे हैं. इस वजह से अमेरिका और भारत दोनों टेंशन में हैं. 

इस वॉर ओलंपिक्स में चीन और रूस के संबंधों में करीबी आई है. चीन से करीब 260 सैनिक अपने अत्याधुनिक हथियारों के साथ इस ओलंपिक्स में भाग ले रहे हैं. चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) के सैनिक इस ओलंपिक्स में दो दर्जन से ज्यादा खेलों में भाग ले रहे हैं. इनमें टैंक बाइथैलॉन, ऑर्मर्ड व्हीकल ट्रायल्स, मिलिट्री इंटेलिजेंस, मरीन प्लाटून लैंडिंग इवेंट, एयरबॉर्न ट्रूप्स कॉम्पीटिशन जैसे खेल होंगे. 

चीन के राष्ट्रीय सुरक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता सीनियर कर्नल रेन गुओकियांग ने बताया कि वॉर ओलंपिक्स ऐसे समय हो रहा है, जब पूरी दुनिया कोविड-19 से संघर्ष कर रही है. इस ओलंपिक्स में भाग लेने से चीन का रूस के साथ रिश्ता और मजबूत होगा. इससे दोनों देशों के सैनिकों को एकदूसरे की टैक्टिस सीखने को मिलेगी. 

वॉर ओलंपिक्स में 30 देशों की 160 टीमें भाग ले रही हैं. इस ओलंपिक्स की शुरुआत रूस ने इसलिए की थी क्योंकि अमेरिका अपने सहयोगी देशों का एक खेल हवाई द्वीप के पास कराता है. वॉर ओलंपिक्स के काफी खेल रूस में ही हो रहे हैं, लेकिन कुछ खेल बेलारूस में होंगे. जहां पर इस समय राष्ट्रपति एलेक्जेंडर लुकाशेंकों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन चल रहे हैं.

पिछले एक दशक से रूस और चीन मिलकर संयुक्त सैन्य अभ्यास कर रहे हैं. इनकी वजह से अमेरिका और भारत समेत चीन के पड़ोसी देशों में चिंता बनी रहती है. साल 2012 के बाद से चीन और रूस ने कई बार संयुक्त नौसैनिक अभ्यास भी किए हैं, जिनसे अमेरिका परेशान होता आया है. ये अभ्यास ज्यादातर विवादित साउथ चाइना सी में होते आए हैं. इनके अलावा ओमान की खाड़ी में भी अभ्यास किए गए थे. 

वॉर ओलंपिक्स से पहले चीन और रूस ने मिलकर जुलाई 2019 में कोरियाई प्रायद्वीप और जापान के समुद्री इलाके में बमवर्षक विमानों से पेट्रोलिंग का अभ्यास किया था. चीन लगातार रूस के साथ अभ्यास कर रहा है. चीन ने सितंबर 2018 में 3200 सैनिक और 900 टैंक्स रूस भेजे थे. ये 3 लाख रूसी सैनिकों और 36 हजार टैंक्स के साथ साइबेरिया और वोस्तोक में हुए मिलिट्री ड्रिल में शामिल हुए थे. 

अगर आप ध्यान दें तो 1991 में सोवियत संघ के टूटने के बाद रूस ने लगातार अपनी सैन्य ताकत को बढ़ाया है. कई पड़ोसी देशों से उसके संबंध अच्छे नहीं रहे. ताजिकिस्तान से लेकर सीरिया तक उसे दिक्कतों का सामना करना पड़ा. ऐसे मौके पर चीन का उसके साथ आना रूस के लिए फायदेमंद सौदा था. चीन की फौजी तकनीक से भी रूस को फायदा है. 

सीरिया में रूस के खराब अनुभव के बाद वोस्तोक-2018 मिलिट्री ड्रिल की शुरुआत की गई थी. इसमें सैन्य अभ्यास का ऐसा मॉडल बनाया गया था जिससे लोगों को सीरिया जैसी युद्ध की स्थिति समझने को मिले. चीन को भी इस अभ्यास से बहुत फायदा हुआ. उसके सैनिकों ने भी रूसी जवानों के साथ मिलकर बढ़ चढ़ कर इसमें हिस्सा लिया. 

इस बीच, खबर ये भी है कि रूस चीन के साथ मिलकर नई सैन्य टेक्नोलॉजी के बारे में जानना चाहता है. इसलिए ऐसे अभ्यासों के दौरान जब किसी नई तकनीक का प्रदर्शन होता है तब उसके बारे में सैन्य अधिकारी बातें भी करते हैं. बाद में यही बातचीत रक्षा सौदों में बदल जाती है. 

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