मैं अब यादों की दुनिया में पीछे लौट रही हूं तथा अपने भाई के अनजाने पहलुओं को बता रही हूं जो शायद दुनिया को नही पता होंगे।
भाई पढ़ने में बहुत तेज थे किंतु जब वो 12 साल के थे एवं उनका विवाह तय हुआ तो वह घर से भाग गए एवम चित्रकूट में साधुओं की संगत में रहे। पिता के निधन एवं पिता के निधन से पहले मेरे जन्म की खबर से वह लौटे। हम 6 भाई- बहन थे। भाई दूसरे नंबर के तथा मैं आखिरी नंबर की हूं, मुझमे एवं भाई में 14 साल का अंतर था।
जब वो चित्रकूट से वापस लौटे तो मैं 10 महीने की थी। मां शोकाकुल थीं तो भाई ने ही मुझे अपनी गोद में ले लिया, फिर तो संसार की सारी ममता मुझपर उड़ेल दी।
फिर उन्होंने अपनी पढ़ाई पुन: प्रारंभ की तथा ग्यारहवी में टॉप किया एवं आईएएस की तैयारी करने लगे। उसी समय मैं आठ वर्ष की हो गई थी तथा किसी दैवीय भाव से या शायद भाई के संगत के असर से गीता-वेद सब बोलने लगी थी।
जब सब तरफ मेरी ख्याति बढ़ी तथा राजमाता सिंधिया जी ने मेरे जीवन का पूरा चार्ज ले लिया तब पुन: भाई अपनी पढ़ाई छोड़कर मेरी देखभाल में लग गए। फिर 80 देशों में मैंने धर्म प्रचार किया एवं भाई मेरे साथ रहें। उनसे पुन: विवाह का आग्रह किया गया लेकिन उन्होंने हमेशा मना किया।
वो भारत के सभी महापुरूषों के संगत में रहे, उनकी स्वयं की लाइब्रेरी में 10,000 पुस्तकें हैं जो उन्होंने स्वयं पढ़ी हैं एवं अंडरलाइन की हैं। वह सिनेमा -टीवी नहीं देखते थे, जे. कृष्णमूर्ति के अनुयायी थे, चाय भी नहीं पीते थे, पान भी नहीं खाते थे, उन्हें पेड़ लगाने तथा किताबें खरीदने का शौक था।
फिर जब मैं राजनीति में आ गई तो वही मेरी लोकसभा सीट संभालते थे, जब मैंने विवाह न करके सन्यास लेने का निर्णय किया तो उन्होंने मेरा पूरा सहयोग किया।
हम सबके आग्रह से उन्होंने मेरी देखभाल के लिए विवाह किया। क्योंकि मेरी मां का निधन हो चुका था, फिर वो पति-पत्नी मेरे मां-बाप के स्थान पर आसीन हो गए। मेरी भाभी बहुत अच्छी थी, भाई विधायक बनें, एवं मैं केंद्र में मंत्री बनी।
2005 से उनके अवसान होने तक उनका जीवन बहुत दुखद बीता। भाभी का निधन हुआ, उनको दुर्घटना में गंभीर चोटें लगीं जिससे वो कभी उभर नहीं सके।
आखिरी के 9 साल वो मेरे साथ ही रहे हैं। अर्ध बेहोशी तथा गंभीर अस्वस्थता की स्थिति में भी मुझे सामने पाकर उनके चेहरे पर प्रसन्नता झलकती थी।
मैं उनका राजा-बेटा थी, बहादुर शेर थी- यही दो संबोधन मेरे लिए इस्तेमाल करते थे तथा अपनी सबसे बड़ी संतान कहते थे। उनकी बेटी नित्या अब 18 साल की है तथा बेटा नीलमाधव 13 साल का है।
मैं उन दोनों को माता-पिता की कमी महसूस नहीं होने दूंगी, किंतु मुझे उनकी कमी हमेशा महसूस होगी तथा एक विराट शून्य मेरे जीवन में आएगा जिसमें उनकी आवाज गूंजेगी।
रामायण के दोहे की आधी लाइन सुनाया करते थे, वह मुझे हमेशा याद रहेगी तथा उसी पर चलूंगी। वह दोहा है – ‘जथा मत्त गज जूथ मह, पंचानन चल जाए।’ इसका अर्थ वह मुझे कहते थे – जैसे हाथियों के झुंड में अकेला बलशाली शेर घुस जाता है, इसी तरह से तुम भी बड़े नेताओं के झुंड में निडरता से रहा करो। मैं इस बात का हमेशा अनुसरण करूंगी।