मध्य प्रदेश बीजेपी के वरिष्ठ नेता और पूर्व विधायक मेहरबान सिंह रावत का निधन हो गया है. रावत लंबे समय से कैंसर से ग्रसित थे. बता दें कि मंगलवार रात पैतृक गांव खनपुरा मंगरोल में रात 8 बजे रावत ने अंतिम सांस ली. उन्होंने अपने जन्मदिन के दिन ही दुनिया से विदाई ली. उनके निधन से मुरैना जिले में शोक की लहर दौड़ गई.
सबलगढ़ के पूर्व बीजेपी विधायक मेहरबान सिंह रावत का मंगलवार रात को निधन हो गया. उनका अंतिम संस्कार बुधवार को उनके पैतृक गांव खनपुरा मंगरोल में किया जा रहा है. बता दें कि मेहरबान सिंह रावत तीन बार संबलगढ़ से विधायक रह चुके हैं. वहीं उनके निधन से मुरैना जिले में शोक की लहर दौड़ गई है.
इधर, उनके निधन पर शिवराज ने ट्वीट कर कहा कि ‘दुखद समाचार, ईश्वर से उनकी आत्मा को अपने श्रीचरणों में स्थान देने और परिजनों को इस कठिन घड़ी में संबल प्रदान करने की प्रार्थना करता हूं.’
सबलगढ़ के पूर्व विधायक एवं @BJP4MP के वरिष्ठ नेता श्री मेहरबान सिंह रावत के निधन का दुःखद समाचार प्राप्त हुआ।
— Shivraj Singh Chouhan (@ChouhanShivraj) August 13, 2019
ईश्वर से उनकी आत्मा को अपने श्रीचरणों में स्थान देने व परिजनों को इस कठिन घड़ी में संबल प्रदान करने की प्रार्थना करता हूँ।
भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता एवं सबलगढ के पूर्व विधायक श्री मेहरबान सिंह जी रावत के निधन का समाचार दु:खद है।
— Kailash Vijayvargiya (@KailashOnline) August 14, 2019
ईश्वर दिवंगत आत्मा को अपने श्रीचरणों में स्थान दे और शोकाकुल परिवार को संबल प्रदान करें।
ॐ शांति! pic.twitter.com/RRTVhvxBRq
मुरैना जिले के सबलगढ़ से विधायक रहते हुए मेहरबान सिंह ने कैलारस का शक्कर कारखाना चालू कराने को लेकर कeफी प्रयास किए.
चर्चित है मेहरबान सिंह का यह किस्सा
इधर, मंडल अध्यक्ष आनंद सिंह सिकरवार बताते हैं कि साल 2009 में मेहरबान सिंह के साथ जब राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया से मिलने जयपुर गए थे, तब राजे ने कहा था कि महाराज साहब, मायके और ससुराल के बीच की खाई को पाट दो. यह सुनकर राजे ने पूछा कि मेहरबानजी आप क्या कहना चाहते हो, स्पष्ट करें. तब मेहरबान सिंह ने कहा था कि मध्य प्रदेश और राजस्थान के बीच अटार घाट का पुल है, उसे हमारी सरकार तो नहीं बनवा पा रही है, इसे आप ही बनवा दीजिए.
मेहरबान सिंह के नजदीक रहने वाले बीजेपी नेता रामजीलाल बंसल भी कहते हैं कि चुनाव के दौरान उनके प्रयास का तरीका अनोखा होता था. वे घर-घर वोट मांगने नहीं जाते थे. वे गांव के किसी स्थान पर लोगों को एकत्र कर लेते थे और वहीं पर अपनी बात सभी से कह देते थे.