गुजरात विधान सभा चुनाव 2017: गुजरात में नौ दिसंबर और 14 दिसंबर को मतदान है। चुनाव नतीजे 18 दिसंबर को आएँगे।
गोधरा से पांच बार विधायक रहे सीके राउलजी ने गुरुवार (23 नवंबर) को गुजरात विधान सभा चुनाव के लिए नामांकन किया लेकिन इस र उन्होंने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) से पर्चा भरा। उनके इस फैसले से स्थानीय मुस्लिम मतदाता भ्रम की स्थिति में हैं। गोधरा के करीब ढाई लाख वोटरों में लगभग 20-25 प्रतिशत मुसलमान हैं। राउलजी पहले भी बीजेपी में रह चुके हैं। 1990 के दशक में वो दो बार बीजेपी के टिकट पर विधायक रह चुके हैं। वहीं पिछले दो बार वो कांग्रेस के टिकट पर विधायक चुने गये थे। हालांकि वो पहली बार 1990 में जनता दल के टिकट पर एमएलए बने थे। राउलजी शंकर सिंह वाघेला के करीबी माने जाते हैं। बीजेपी ने आखिरी बार गोधरा में साल 2002 में जीत हासिल की थी। इस बार उसे इस सीट को जीतने के लिए रौलजी पर भरोसा है।
गोधरा के सिग्नल फाड़िया के आसपास साल 2002 में साबरमती एक्सप्रेस के डिब्बे में आग लगाने के कई दोषी रहते हैं। यहां के निवासी राउलजी के बीजेपी में जाने से निराश हैं। एक स्थानीय निवासी कहते हैं, “जब राउलजी ने राज्य सभा में अहमद पटेल को अपना एक वोट नहीं दिया तो फिर हजारों मुसलमान उन्हें क्यों वोट दें?” 60 वर्षीय यामीन खान कहते हैं, “मुस्लिम राउलजी को इसलिए वोट देते थे क्योंकि वो कांग्रेस में था। अब वो बीजेपी में हैं तो उन्हें वोट नहीं देंगे।” कांग्रेस ने अभी तक गोधरा से अपने उम्मीदवार की घोषणा नहीं की है।
राउलजी के ऊपर केवल मुस्लिम वोटरों के नाराज होने का दबाव नहीं है। गोधरा में करीब एक तिहाई मतदाता अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के हैं। स्थानीय ओबीसी नेता जशवंत सिंह परमार पहले बीजेपी के साथ थे लेकिन इस बार वो निर्दलीय उम्मीदवर के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं। परमार का दावा है कि उन्हें ओबीसी समुदाय के 80 हजार से ज्यादा वोटरों का समर्थन प्राप्त है।
गुजरात चुनाव के लिए दो चरणों में नौ दिसंबर और 14 दिसंबर को मतदान होगा। चुनाव नतीजे 18 दिसंबर को आएंगे। राज्य में पिछले दो दशकों से ज्यादा समय से बीजेपी की सरकार है। साल 2002, 2007 और 2012 में बीजेपी ने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में चुनाव लड़ा था। साल 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बन जाने के बाद राज्य में पहली बार विधान सभा चुनाव हो रहा है। पिछले तीन सालों में गुजरात की बीजेपी सरकार को मुस्लमानों, दलितों और ओबीसी नेताओं के विरोध का सामना करना पड़ा है।