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क्या है अनुच्छेद 131? जिसके तहत CAA के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची केरल सरकार

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संसद से बिल पास होने के बाद नागरिकता संशोधन कानून 10 जनवरी से अमल में आ गया है, लेकिन कई राज्यों की सरकार इस नए कानून को लागू करने से इनकार कर रही हैं. जबकि केंद्र सरकार कह रही है कि यह देश का कानून है और कोई राज्य इसे लागू करने से नहीं रोक सकता है. विरोध-प्रदर्शनों और विवादों के बीच केरल ने विधानसभा में नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के खिलाफ प्रस्ताव भी पारित कर दिया है और अब सरकार ने संशोधित कानून को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है.

केरल सरकार ने कहा है कि नया कानून संविधान के कई अनुच्छेदों का उल्लंघन करता है, जिसमें समानता का अधिकार शामिल है और कहा कि यह कानून संविधान में निहित धर्मनिरपेक्षता के बुनियादी सिद्धांतों के खिलाफ है. ये हवाला देते हुए केरल सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 131 का इस्तेमाल करते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है और कोर्ट से नागरिकता कानून को मूल अधिकारों का उल्लंघन करने वाला घोषित करने की मांग की है.

क्या है अनुच्छेद 131?

संविधान का अनुच्छेद 131 राज्य और केंद्र सरकार के बीच विवादों पर सुप्रीम कोर्ट को फैसला देने का विशेष अधिकार देता है. इसके साथ ही अगर राज्य से राज्य का कोई विवाद हो तो उस स्थिति में भी यह अनुच्छेद सुप्रीम कोर्ट को निर्णय का विशेष अधिकार देता है. इन परिस्थितियों में कोर्ट को यह अधिकार प्राप्त होता है-

1- अगर भारत सरकार और एक या एक से ज्यादा राज्यों के बीच विवाद हो

2- अगर भारत सरकार और एक राज्य या एक से ज्यादा राज्य एक तरफ व एक या एक से ज्यादा दूसरी तरफ हों

3- अगर दो या दो से अधिक राज्यों के बीच कोई विवाद हो

केरल सरकार ने अपनी याचिका में नागरिकता संशोधन कानून को संविधान के मूल का उल्लंघन बताते हुए इसे लागू करने के लिए बाध्य होने का हवाला दिया है और इसे विवाद की वजह बताकर सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है.

केरल सरकार की याचिका में क्या है?

केरल सरकार ने अपनी याचिका में कहा है कि नागरिकता संशोधन कानून, 2019 को संविधान के अनुच्छेद 14, 21 और 25 का उल्लंघन करने वाला घोषित किया जाना चाहिए. केरल सरकार ने याचिका में कहा है कि अगर यह नया कानून अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश में  धार्मिक तौर पर उत्पीड़न झेल रहे लोगों के लिए है तो फिर इन देशों के शिया और अहमदिया को क्यों अलग रखा गया है. केरल सरकार की तरफ से याचिका में ये भी कहा गया है कि शिया और अहमदिया को भी हिंदू, सिख, बुद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय की तरह नागरिकता संशोधन कानून में शामिल किया जाना चाहिए था.  इसके अलावा केरल सरकार ने अपनी याचिका में श्रीलंका के तमिल, नेपाल के मधेसी और अफगानिस्तान के हजारा समूह का भी जिक्र किया है.

ये उदाहरण देते हुए केरल सरकार ने सीएए को संविधान और लोकतंत्र की मूल आत्मा के खिलाफ बताया है और कहा है कि संविधान के अनुच्छेद 256 के अनुसार, केरल को नागरिकता संशोधन कानून का पालन करने के लिए मजबूर किया जाएगा जो कि मूलभूत रूप से मनमाना, अनुचित, तर्कहीन और मूलभूत अधिकारों का उल्लंघन है. लिहाजा, यह एक विवाद है जो केरल और केंद्र सरकार के बीच है. ऐसे में संविधान के अनुच्छेद 131 का इस्तेमाल करते हुए यह याचिका दायर की जा रही है.

नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ पहले ही सुप्रीम कोर्ट में 60 याचिकाएं दायर हैं और इस मामले की सुनवाई 22 जनवरी को होनी है. ऐसे में केरल सरकार ने इस विवाद को एक नया मोड़ दे दिया है. बता दें कि केरल के अलावा पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश व पंजाब जैसे गैर-बीजेपी शासित राज्य भी खुलकर सीएए का विरोध कर चुके हैं और इस नए कानून को अपने राज्य में लागू न करने की बात कह चुके हैं. जबकि केंद्र सरकार की तरफ से कहा जा रहा है कि यह देश का कानून है, जो पूरे देश में लागू होगा.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, 2011 में मध्य प्रदेश बनाम यूनियन ऑफ इंडिया से जुड़े एक ऐसे ही केस को  सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की बेंच ने ‘नॉट मेंटेनेबल’ माना था यानी केस खारिज हो गया था.

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