अपना राष्ट्रीय अध्यक्ष चुनने की तरह कांग्रेस के सामने झारखंड में प्रदेश अध्यक्ष चुनने की भी चुनौती थी. आखिरकार 26 अगस्त को उसे रामेश्वर उरांव के रूप में नया प्रदेश अध्यक्ष मिल गया. पांच कार्यकारी अध्यक्ष भी बनाए गए हैं-केशव महतो कमलेश, इरफान अंसारी, मानस सिन्हा, संजय पासवान और राजेश ठाकुर. आम चुनावों में हार के बाद अजय कुमार ने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था. उन्होंने पार्टी नेताओं पर गंभीर आरोप लगाए थे, ”हमारे यहां ओछे स्वार्थ वाले नेताओं की लंबी सूची है.
उनका एकमात्र उद्देश्य सत्ता हथियाना, टिकट बेचना या चुनाव के नाम पर धन एकत्र करना है.” जाहिर है, राज्य कांग्रेस में गुटबाजी चरम पर थी. कांग्रेस के सूत्र बताते हैं कि अजय कुमार के खिलाफ माहौल बनाने में रांची के पूर्व सांसद का बड़ा हाथ था.
प्रदेश अध्यक्ष की दौड़ में सुबोधकांत सहाय, प्रदीप बालमुचु, आलमगीर आलम और सुखदेव भगत की चर्चा थी. लेकिन कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने लोहरदगा से सांसद और अनुसूचित जनजाति आयोग के पूर्व अध्यक्ष उरांव पर भरोसा जताया. इससे पार्टी ने मुस्लिम-आदिवासी गठजोड़ साधने की कोशिश की है. कार्यकारी अध्यक्षों के चयन से भी यह समीकरण साफ हो जाता है. 2011 की जनगणना के मुताबिक, सूबे में मुसलमान 14.5 फीसदी और आदिवासी 27 फीसदी हैं. सूबे में कांग्रेस के पास 8 और भाजपा के पास 43 विधानसभा सीटें हैं.
राज्य में इस साल के आखिर में विधानसभा चुनाव होने हैं और भाजपा ने इसकी तैयारी भी कर ली है. यहां सितंबर में पीएम नरेंद्र मोदी की एक रैली प्रस्तावित है. इसका जवाब कांग्रेस सोनिया गांधी की रैली से देना चाहती है.
कांग्रेस के नवनियुक्त कार्यकारी अध्यक्ष इरफान अंसारी कहते हैं, ”हमने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को झारखंड आने का निमंत्रण दिया है और उन्होंने इस प्रस्ताव को मान लिया है.” पर भाजपा की तैयारियों के सामने विपक्ष बिखरा नजर आ रहा है. अभी भी यह साफ नहीं है कि पहले की तय सहमति के मुताबिक, विधानसभा चुनाव झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता हेमंत सोरन के नेतृत्व में लड़ा जाएगा या नहीं.