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“महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लागू” अजब राजनीति की गज़ब कहानी”

“महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लागू” अजब राजनीति की गज़ब कहानी”

महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लागू हो चुका है इस घटना को हम अजब राजनीति की गज़ब कहानी कह रहे हैं क्योंकि भारत के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के द्वारा की गई ऐसी हर एक कार्यवाही को नज़ीर माना जाता है आज का यह दिन भारत की राजनीति में एक नया और बड़ा उदाहरण बनने जा रहा है।

देश को इस बात से कोई फर्क पड़ता नज़र नही आ रहा है क्या महाराष्ट्र को फिलहाल किसी राज्य सरकार की आवश्यकता थी या नही! लगातार आत्महत्या करते हुए किसान और काम की तलाश में भटकते हुए मजदूरों की कोई सामान्य चर्चा कहीं दिखाई नही देती जिसे देखकर प्रतीत होता है कि जनसामान्य का भी सरकारों से विश्वास क्षीण हो चला है।

आमजन की आम राय यही प्रदर्शित करती है कि किसी भी सामान्य व्यक्ति के जीवन पर किसी सरकार का कोई भी विशेष प्रभाव अब शेष नही है इससे उलट नई सरकार पुराने कर्ज को खत्म कर अपनी कमाई बढ़ाने के मकसद से नए नए तरीकों से जनता पर दबाव ही बढ़ाने का काम करती आ रही है।

सभी ने देखा है कि किस तरह महाराष्ट्र ने पूरे देश को प्राप्त होने वाले राजस्व का बड़ा हिस्सा केंद्र को प्रदान किया है। जिस दौर में देश मे औद्योगिकीकरण चरम पर था तब महाराष्ट्र ने इस दौड़ में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया था और आज जब मंदी के दौर में यही रोजगार का सबसे बड़ा क्षेत्र पिछड़ रहा है तब नयी उपजती बेरोजगारी , कम होते काम धंधों और दिन ब दिन पिछड़ती आय से यही महाराष्ट्र कितना अधिक ग्रस्त है।

ऐसे आर्थिक और सामाजिक वातावरण के बीच एक अस्थिर और अनपेक्षित राजनैतिक माहौल का पैदा होना भला क्या संदेश दे सकता है।

उस देश मे जहाँ अधिकांश लोग दो वक्त का भोजन ही बमुश्किल जुटा पाते हैं वहाँ भारी भरकम खर्चीला चुनाव भी व्यर्थ सिद्ध होता दिखाई दे रहा है।

आज लागू हुआ राष्ट्रपति शासन जहाँ कई सवाल खड़े करता है वहीं देश के सबसे बड़े राजनैतिक दल के समर्थकों के लिए हर्षोल्लास का विषय भी बन जाता है।

हम इस घटना को अजब गजब इसलिए कह रहे हैं कि जिन्होंने साथ इस चुनाव को लड़ा वे साथ नही रह सके, जो बाद में साथ आने की कोशिश में जुटे उनमें भारी संवादहीनता देश ने देखी। देश ने मौकापरस्ती को महसूस किया और नए पुराने ऐसे उदाहरणों को भी बहुत याद किया।

राज्यपाल को भाजपा द्वारा सरकार नही बना पाने की बात कह दिए जाने के बाद भी दूसरे, तीसरे और चौथे दलों की आपसी बंदरबांट भी पूरी न हो सकी। पूरे घटनाक्रम को पुनः देखिए और समझ जाइये कि हारा कौन व किसे पराजय मिली। साफ और स्पष्ट रूप से यह पूरा घटनाक्रम लोकतंत्र की और जनता की हार सिद्ध हुआ।

एक विशेष बात भी विचारणीय है कि इस उठापटक में महाराष्ट्र के राज्यपाल कोशीयारी और भारत के महामहिम राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद ने अपनी कैसी भूमिका निभाई है। फिलहाल शिवसेना ने सुप्रीम कोर्ट जाने का निर्णय लिया है। न्यायालय का निर्णय जो भी और जिस भी तरह का हो वह अलग विषय है किंतु महामहिम के फैसलों से यह सवाल सदैव के लिए खड़ा हो ही चुका है क्या उनका यह निर्णय सम्पूर्ण विवेकाधिकार का उपयोग कर बिना किसी पूर्वाग्रह से आया एवं क्या देश के महामहिम की यह प्राथमिकता नही होनी चाहिए थी कि महाराष्ट्र की जनता को सरकार बनाकर देने के सारे अंतिम प्रयास कर लिए जाने थे।

आने वाले दशकों तक यह भी अतिमहत्वपूर्ण प्रश्न भारत के लोकतंत्र में पूछा जाना निश्चित है कि क्या देश के राष्ट्रपति से अधिक किसी और भी पद का असर देश पर हमेशा के लिए स्थापित हो सकता है जो भारत में एक नयी राजनैतिक परम्परा में परिवर्तित होगा जिसका प्रयोग आगे आने वाले दल अपने नफ़े नुकसान के लिए करेंगे।

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