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भाजपा के लिए क्या यह “जैसे को तैसा नही है ?” इस्तीफे के बाद फडनवीस की प्रेस कांफ्रेंस

आज महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडनवीस ने राज्यपाल को अपना त्यागपत्र सौपने के बाद मीडिया के समक्ष प्रेस कांफ्रेंस की। इसमें उन्होनें जनता, सहयोगी दलों, विपक्ष के साथ साथ मीडियाकर्मियों सभी का आभार व्यक्त किया और अपने कार्यकाल की उपलब्धियों का उल्लेख किया। हम आपको इस विषय मे कुछ दिलचस्प बात बताने का प्रयास कर रहे हैं।

गौर से सुना जाए तो आप पायेंगे कि इस प्रेस कॉन्फ्रेंस के स्क्रिप्ट बखूबी खूबसूरती के साथ तैयार की गई दिखाई देती है। जिसमे फडनवीस कहते हैं मोदी जी ने कभी शिवसेना, बालासाहेब ठाकरे या उद्धव ठाकरे के विरोध में कुछ नही कहा, ढ़ाई साल के मुख्यमंत्री के विषय मे को निर्णय कभी नही हुआ ऐसा उन्हें अमित शाह ने बताया है, शिवसेना ने उन्हें अपने अड़ियल रवैये से आहत किया है। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि जनता ने जो वोट किये वह युति को अर्थात गठबंधन को किया है।

देवेंद्र फड़नवीस का खास इरादा स्पष्ट रूप से भाजपा की इस रणनीति को प्रदर्शित करता है कि अब उन्होंने न केवल महाराष्ट्र बल्कि पूरे देश की जनता को यह संदेश देने की कोशिश की है कि भारतीय जनता पार्टी को धोखा दिया गया है और शिवसेना वह दल है जिसने जनता को अपमानित कर उन्हें धोखा दिया है। इस परिस्थिति में आसानी से प्रधानमंत्री मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह का साफ बचाव भी हो जाता है और यह दर्शाने की कोशिश दिखती है कि यह किसी भी तौर पर भाजपा और भाजपा के शीर्ष नेतृत्व की असफलता तो कतई नही है। यह प्रेस कांफ्रेंस कम और एक सहानुभूति जुटाने की मुहिम ज्यादा समझ आती है।

इन पूरी परिस्थितियों से कांग्रेस और एनसीपी जरूर खुश हो सकते हैं पर उन्हें याद रखने की जरूरत है कि व्यवहार और संबंध बदलने वाले लोगों पर कब और कितना विश्वास किया जा सकता है।

महाराष्ट्र के राजनीतिक परिदृश्य में अब यह साफ हो रहा है कि क्यूँ नवीन भारतीय राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह को मराठी गली मोहल्लों इस सियासी उठापटक के बीच ‘गुमशुदा’ घोषित किया जा रहा था। जिस तरह जीत के अनेक हिस्सेदार होते हैं तब क्याअसफल होने पर भी ‘अपनों’ के साथ खड़े दिखाई देना अच्छा नही होता?.

नामांकन और शपथ ग्रहण के भव्य आयोजनों में हम सभी को नेताओं की भरमार देखने की वैसे भी आदत हो चुकी है। सच समझिए तो आज देवेंद्र फड़नवीस अकेले दिखाई दे रहे थे। एक अकेला नेता जो थोड़ा शिकायती था, जिसे उसका दिल टूट जाने पर सहानुभूति की जरूरत थी।

हम आते हैं इस ब्लॉग के शीर्षक पर- हमारा ये कहना क्यों है कि यह भाजपा के लिए “जैसे को तैसा है” तो इसलिए कि क्या जम्मू कश्मीर की जनता जिसने वोट डाला था महबूबा मुफ्ती को उसे भाजपा का समर्थन चाहिए था! क्या हाल ही में जिस मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर का प्रचंड विरोध कर दुष्यंत चौटाला ने वोट बटोरे उनको न्याय मिला है। क्या यह सब फड़नवीस की बात का विरोधाभास नही है। भाजपा ने अनेकों बार वही किया है जिसका सामना आज उसे करना पड़ रहा है।

अगर हम इन जैसे उदाहरण पर न भी जाये तब भी क्या बिहार में तेजस्वी यादव की आरजेडी और नीतीश कुमार की जेडीयू के गठबंधन को मिले वोट का प्रयोग भारतीय जनता पार्टी के लिए किया जाना किसी भी लिहाज से नैतिक कहा जा सकता है।

तब क्या यह कहा जा सकता है यह जैसे को तैसा ही है।

बहरहाल जब तक महाराष्ट्र का नया मुख्यमंत्री शपथ न ले ले तब तक भाजपा के पुनः सरकार बना लेने की संभावना से इंकार नही किया जा सकता है। इन सभी खबरों के बीच संजय राउत का शरद पवार से मिलना, शिवसेना का विधायकों को होटल में रखना, नितिन गडकरी का कहा जाना कि उन्हें मुख्यमंत्री बनने की लालसा नही है और कांग्रेस एनसीपी के द्वारा अपने पत्ते न खोलना जैसी बातें और प्रत्येक समाचार का भी अपना बहुत महत्व है।

आज 8 नवंबर को लक्ष्य पाने में असफल हुई नोटबन्दी कि वर्षगांठ पर एक बात देशवासियों को स्पष्ट रूप से दिखाई देती है और वो ये कि विधायक, मंत्री और हर छोटे या बड़े नेता अपने मकसद में आज नही तो कल कामयाब हो ही जाते हैं लेकिन मतदाता के रूप में जो छला जाता है वो खुद वही देशवासी ही होता है।

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