हर साल हरिद्वार जाने वाले रास्तों पर कांवड़ियों का तांडव देखने को मिलता है. आपसी संघर्ष और आम लोगों से मारपीट की घटनाओं के अलावा पिछले कुछ वर्षों में महिलाओं के साथ बदसलूकी की वारदातों में भी बढोत्तरी दर्ज की गई है.हर साल हरिद्वार जाने वाले रास्तों पर कांवड़ियों का तांडव देखने को मिलता है. आपसी संघर्ष और आम लोगों से मारपीट की घटनाओं के अलावा पिछले कुछ वर्षों में महिलाओं के साथ बदसलूकी की वारदातों में भी बढोत्तरी दर्ज की गई है.
बस यूं समझ लीजिए कि जब तक सावन चलेगा तब तक कांवड़ राज चलेगा. इस कांवड़राज में आपकी बिल्कुल नहीं चलेगी. क्योंकि अगर गलती से भी आपने अपनी या कानून की चलाने की कोशिश की तो फिर बस गुंडाराज ही देखने को मिलेगा. शायद इसी डर की वजह से खुद पुलिस तक डरी हुई है. अब जो कहानी आपको सुनाने जा रहे हैं, उसे पहले देखिए और सुनिए. इसके बाद आप ही तय कीजिएगा कि ये इसे कांवड़ राज कहें या गुंडा
ये कैसी भक्ति है?
अगर ये खुद को कांवड़ियां समझ रहे हैं तो यकीन मानिए ये खुद को भी धोखा दे रहे हैं और समाज को भी. भोलेनाथ तो खैर इनकी रग रग से वाकिफ हैं. वरना एक देश. एक धर्म और एक परंपरा को मानने वालों में इतना फर्क कैसे हो सकता है कि खुद भगवान भी कंफ्यूज़ हो जाएं कि ये भला किसकी भक्ती कर रहे हैं.
कांवड़ियों और गुंडों में क्या फर्क?
एक कांवड बिहार से हैं जो श्रावणी मेले में सुल्तानगंज से देवघर तक सवा सौ किमी तक कंधे पर कांवड़ लेकर निकलते हैं और किसी को पता भी नहीं चलता. और एक ये हैं वो.. जब वे निकलते हैं तो लगता है जैसे क़यामत आने वाली है. पूरी दिल्ली, यूपी और उत्तराखंड डर डर कर चलने लगती है और वे सीना तान कर. मानों खुद भोलेनाथ से सड़क की रजिस्ट्री अपने नाम करा आए हैं. इनके रास्ते में आना तो दूर की बात बस कोई इन्हें छू भर दे तो फिर देखिए ये क्या करते हैं.
गुंड़ों के सामने बेबस कानून
कौन हैं ये लोग. कहां से आते हैं और क्यों हर साल महीने भर तक के लिए सबको डरा जाते हैं? मान भी लें कि ये कावंड़िए हैं. तो क्या कांवड़िए ऐसे होते हैं. जो सड़क पर चलें और कोई छू भर दे तो उत्पात मचा दें. ये कांवड़िए नहीं ये गुंडे हैं. जो कानून को अपनी जूतियों का तल्ला समझकर मसल देते हैं. और खुद कानून बेबस. बेसहार खड़ा खड़ा बस तमाशा देखता रह जाता है.
राजधानी में कावड़ियों का हुड़दंग
किस मुंह से ये धर्म और आस्था में यकीन करने वाले शिवभक्त नज़र आते हैं. अगर धर्म हुड़दंग की इजाज़त देता तो मुल्क में अराजकता फैल चुकी होती. ये अकेले धर्म के मानने वाले नहीं है. हिंदुस्तान में करोड़ो हिंदू हैं और शायद इनसे ज़्यादा शिव भक्त मगर उनकी किताब में ऐसी किसी शिवभक्ति का ज़िक्र ही नहीं है.
हर साल बढ़ रही है कावड़ियों की गुंडागर्दी
लगातार हर साल कांवड़ियों की गुंडागर्दी के मामले बढ़ते जा रहे हैं और सियासत है कि नियम बनाकर इन पर नकेल कसने के बजाए इनमें भी वोट पाने के मौके खोजती है. और अब जब आस्था में सियासत घुस ही गई है. तो आप भी आदत डाल लीजिए. अब तो गाड़ियां भी तोड़ी जाएंगी. रास्ते भी जाम होंगे. और कहर भी बरपेगा. बोलो बम बम भोले.