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श्राद्ध 2018: जानिए श्राद्ध पर्व की कथा और श्राद्ध की तिथियां

भारत में पितरों के प्रति श्रद्धा और नमन का पर्व 24 सितंबर से शुरू हो चुका है। जानकारी के लिए बता दें हमारे पितृ पूरे 16 दिनों तक हमारे घर में वास करते हैं और ऐसे में हम उन्‍हें तभी प्रसन्‍न कर सकते हैं जब हम उनका श्राद्ध कर्म सही दिन पर करें।

इन सबके अलावा कुत्ते और विशेषकर कौए को भोजन का एक अंश अवश्य देना चाहिए। श्राद्ध की तिथियां होती हैं। एक विशेष तिथि को विशेष प्रकार से मृत्यु पाए लोग के श्राद्ध की निश्चित तिथि होती है।

जिस तिथि में आपके पूर्वज का देहावसान हुआ है उसी तिथि पर श्राद्ध कर्म करते हैं। यदि तिथि भूल गयी हो तो अमावस्या का दिन सबसे उपयुक्त माना गया है। इस दिन सर्व पितृ श्राद्ध योग होता है।

वर्ष 2018 की श्राद्ध की तिथियां

24. को पूर्णिमा का श्राद्ध

25. सितम्बर को प्रतिपदा: प्रतिपदा के दिन नाना नानी का श्राद्ध करते हैं। यदि नाना नानी की मृतयु तिथि ज्ञात न हो तो भी इसी तिथि को श्राद्ध करते हैं। ऐसा करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है।

26. सितम्बर द्वितीया श्राद्ध

27. को तृतीया

28. सितम्बर को चतुर्थी: आत्महत्या से दिवंगत लोगों का श्राद्ध चतुर्दशी तिथि में करते हैं। हथियार से मौत या दुर्घटना से मरे लोगों का श्राद्ध चतुर्दशी तिथि में करते हैं।

29. पंचमी: जो लोग अविवाहित सामान्य मृत्यु पाते हैं उनका श्राद्ध पंचमी को करते है। अविवाहित जन जो एक्सीडेंट में मरते हैं उनका भी पंचमी को ही श्राद्ध करेंगे।

30. को खष्ठी

1 .अक्टूबर को सप्तमी श्राद्ध

2 .अक्टूबरअष्टमी: पिता का श्राद्ध अष्टमी को करते हैं।

3 .अक्टूबर नवमी: माता का श्राद्ध नवमी को करते हैं। महिलाओं के श्राद्ध की सर्वोत्तम तिथि है। किसी भी महिला का श्राद्ध इस दिन करते हैं।

4. अक्टूबर दशमी

5.अक्टूबर एकादशी: परिवार में कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो सन्यास ले लिये होते हैं और उनकी मृत्यु हो जाती है। ऐसे लोगों का श्राद्ध एकादशी और द्वादशी तिथियों में करते हैं।

6. अक्टूबर द्वादशी: इस दिन भी परिवार के लोग जो सन्यास लेके मरे हैं उनका श्राद्ध करते हैं।

विशेष-
दिनांक 7 अक्टूबर को त्रयोदशी और चतुर्दशी दोनों श्राद्ध रहेगा। परिवार में जिनकी अकाल मृत्यु हो जाती है उनका श्राद्ध इस दिन होता है। गोली या धारदार हथियार से मौत पाने वालों का भी श्राद्ध इसी दिन होता है। आत्महत्या से मरने वालों का भी श्राद्ध चतुर्दशी को ही होगा।

दिनांक 8 अक्टूबर को सर्वपितृ अमावस्या अर्थात सबका श्राद्ध रहेगा। इसे पितृ विसर्जन भी कहते हैं। जिनको अपने पितरों की तिथि याद न हो या किसी कारण वश उस तिथि को श्राद्ध न कर पाए हों तो वो पितृ अमावस्या के दिन श्राद्ध करेंगे।

श्राद्ध पर्व की कथा:

श्राद्ध पर्व पर यह कथा अधिकांश क्षेत्रों में सुनाई जाती है। कथा के अनुसार, महाभारत के दौरान, कर्ण की मृत्यु हो जाने के बाद जब उनकी आत्मा स्वर्ग में पहुंची तो उन्हें बहुत सारा सोना और गहने दिए गए। कर्ण की आत्मा को कुछ समझ नहीं आया, वह तो आहार तलाश रहे थे।

उन्होंने देवता इंद्र से पूछा कि उन्हें भोजन की जगह सोना क्यों दिया गया। तब देवता इंद्र ने कर्ण को बताया कि उसने अपने जीवित रहते हुए पूरा जीवन सोना दान किया लेकिन श्राद्ध के दौरान अपने पूर्वजों को कभी भी खाना दान नहीं किया। तब कर्ण ने इंद्र से कहा उन्हें यह ज्ञात नहीं था कि उनके पूर्वज कौन थे और इसी वजह से वह कभी उन्हें कुछ दान नहीं कर सकें।

 

इस सबके बाद कर्ण को उनकी गलती सुधारने का मौका दिया गया और 16 दिन के लिए पृथ्वी पर वापस भेजा गया, जहां उन्होंने अपने पूर्वजों को याद करते हुए उनका श्राद्ध कर उन्हें आहार दान किया। तर्पण किया, इन्हीं 16 दिन की अवधि को पितृ पक्ष कहा गया।

पुराणों में कई कथाएँ इस उपलक्ष्य को लेकर हैं- जिसमें कर्ण के पुनर्जन्म की कथा काफी प्रचलित है। एवं हिन्दू धर्म में सर्वमान्य श्री रामचरित में भी श्री राम
के द्वारा श्री दशरथ और जटायु को गोदावरी नदी पर जलांजलि देने का उल्लेख है। एवं भरत जी के द्वारा दशरथ हेतु दशगात्र विधान का उल्लेख भरत कीन्हि दशगात्र विधाना तुलसी रामायण में हुआ है।

भारतीय धर्मग्रंथों के अनुसार मनुष्य पर तीन प्रकार के ऋण प्रमुख माने गए हैं- पितृ ऋण, देव ऋण तथा ऋषि ऋण। इनमें पितृ ऋण सर्वोपरि है।

पितृ ऋण में पिता के अतिरिक्त माता तथा वे सब बुजुर्ग भी सम्मिलित हैं, जिन्होंने हमें अपना जीवन धारण करने तथा उसका विकास करने में सहयोग दिया।

पितृपक्ष में हिन्दू लोग मन कर्म एवं वाणी से संयम का जीवन जीते हैं; पितरों को स्मरण करके जल चढाते हैं; निर्धनों एवं ब्राह्मणों को दान देते हैं। पितृपक्ष में प्रत्येक परिवार में मृत माता-पिता का श्राद्ध किया जाता है, परंतु गया श्राद्ध का विशेष महत्व है। वैसे तो इसका भी शास्त्रीय समय निश्चित है, परंतु ‘गया सर्वकालेषु पिण्डं दधाद्विपक्षणं’ कहकर सदैव पिंडदान करने की अनुमति दे दी गई है।

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