‘द वायर’ से विशेष बातचीत में मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस समन्वय समिति के अध्यक्ष दिग्विजय सिंह कहते हैं कि विपक्ष की भूमिका में भारतीय जनता पार्टी कांग्रेस से बेहतर काम करती है.
मध्य प्रदेश कांग्रेस समन्वय समिति के अध्यक्ष के बतौर आगामी विधानसभा चुनावों में इस समिति और अपनी भूमिका को कैसे देखते हैं?
प्रदेश में मेरी भूमिका नीचे से लेकर ऊपर तक पार्टी में समन्वय बनाने की है. छोटे से छोटे कार्यकर्ताओं से लेकर, विधानसभा क्षेत्रों, ब्लॉक, जिलों, प्रांतों में जो विवाद है, उसे खत्म करके आपसी समन्वय स्थापित कर आज सबको साथ लेकर चलने की जरूरत है. मैं वही प्रयास कर रहा हूं.
क्योंकि जो भी मिलता है, एक ही बात कहता है कि कांग्रेस में आपस में विवाद बहुत है. सबसे बड़ी बात तो ये है कि कोई किसी की बात नहीं समझता. ऊपर तक विवाद है.
पहले नीचे का विवाद दूर करते हैं, उसके बाद विधानसभा में दूर करेंगे, संसद में करेंगे, जिले में करेंगे, राज्य में करेंगे.
तो क्या मानते हैं कि कांग्रेस की अंदरुनी गुटबाजी के चलते ही वह प्रदेश में 15 सालों से सत्ता से दूर है?
सत्ता से दूर होने का केवल यही एक कारण नहीं है, कई और भी कारण हैं जिनमें एक गुटबाजी भी है.
वे कई और भी कारण क्या हैं?
जैसे कि जिस प्रकार से भाजपा के कुशासन में भ्रष्टाचार हो रहा है, उसकी लड़ाई हमें लड़नी चाहिए थी. शायद हम नहीं लड़ पाए.
लेकिन, इस बार वो पूरी लड़ाई लड़ी गई है और इसलिए जनता में भी आज उनकी छवि खराब हुई है.
मैं कई बार इस बात को कह चुका हूं कि कोई-सा भी भ्रष्टाचार का आरोप ले लीजिए, उसमें मुख्यमंत्री और उनके परिवार के लोग शामिल होंगे.
मैं दस साल तक मुख्यमंत्री रहा, जिसने भी मेरे ऊपर आरोप लगाए मैंने उसको अदालत में खड़ा कर दिया. वे मेरे दस साल के शासन में एक भी आरोप मेरे खिलाफ नहीं लगा पाए.
लेकिन, 15 सालों में अनेक आरोपों से शिवराज सिंह और उनका परिवार घिरे हुए हैं. चाहे व्यापमं हो, रेत खदान का घोटाला हो, पोषण आहार का मसला हो, ई-टेंडरिंग का मसला हो, अब लोगों के मन में ये बात आ ही गई है कि शिवराज सरकार भ्रष्ट है.
मंगलवार को ही एक नया घोटाला सामने आया है कि ये लोग न केवल व्यापमं में नियुक्ति बल्कि लोक सेवा आयोग (पीएससी) में भी नियुक्ति के लिए पैसा ले रहे थे. जो कागज मिले हैं उनमें नाम लिखा था ‘मामा जी’, मामा जी मध्य प्रदेश में किसको कहते हैं?
पिछले दिनों आपने कहा कि शिवराज के 15 साल के शासन से बेहतर दस साल का मेरा शासन था. किस आधार पर आप अपने शासन को शिवराज से बेहतर ठहराते हैं?
जो मेरे शासन का बजट और नीतियां थीं, उनके आधार पर मैं शिवराज सिंह को बहस करने की चुनौती देता हूं.
कौन-सी मेरी नीति गलत थी? कौन-सा मेरे ऊपर भ्रष्टाचार का आरोप था? कौन-सी मेरी प्राथमिकताएं गलत थीं? शिवराज आएं और बहस करें. उनको मेरी यह चुनौती है. वे बहस से क्यों भागते हैं?
जब आप मानते हैं कि आपने इतना अच्छा शासन चलाया तो फिर 2003 में आपके नेतृत्व में कांग्रेस हार क्यों गई?
पहला मुख्य कारण तो यह था कि तब चुनाव में पहली बार ईवीएम मशीन का उपयोग किया जा रहा था. उस ईवीएम मशीन को लेकर हम लोग प्रशिक्षित नहीं थे.
वहीं, सरकारी अधिकारी और कर्मचारी हमसे इसलिए नाराज थे क्योंकि मैंने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति को पदोन्नति में आरक्षण देने का जो कानून बनाया गया था, उसे प्रदेश में लागू किया, उसका पालन किया. उसकी वजह से कर्मचारी मुझसे नाराज हो गए. उन्होंने खुद मुझसे आकर कहा कि हमने खुद डेढ़-डेढ़ सौ, दो-दो सौ वोट आपके खिलाफ ईवीएम दबाकर दिए हैं.
पानी, सड़क और बिजली मध्य प्रदेश की राजनीति में अहम मुद्दे रहे हैं. वहां सरकारें इसी पर बनती, बिगड़ती रही हैं. खासकर बिजली की बात करें तो 2003 में बिजली के मुद्दे पर भाजपा सरकार में आई, 2008 में कहा कि हमने अंधेरा दूर किया, बिजली का सरप्लस उत्पादन किया और फिर सरकार बनाई और 2013 में अटल ज्योति का नारा देकर सरकार बनाई और अब 200 रुपये में हर घर बिजली. वर्तमान में प्रदेश में बिजली के हालात क्या देखते हैं?
शिवराज के कार्यकाल में इतना ज्यादा भ्रष्टाचार हुआ है कि बताया न जा सके. जब बिजली में प्रदेश अत्मनिर्भर हो गया था, तो फिर इन्होंने निजी निर्माताओं से समझौते किए और बिजली क़ानून (इलेक्ट्रिसिटी एक्ट) के खिलाफ जाकर समझौते किए. वे सभी चीजें अब पब्लिक डोमेन में आ रही हैं. वर्तमान हालत यह है कि सरकार बिजली घरों को बिजली उत्पादन नहीं करने के लिए पैसा दे रही है और उसमें आधा-आधा हिस्सा हो रहा है. ये लोग पैसे खाकर उसमें भ्रष्टाचार कर रहे हैं और जो मेरी नीतियां थीं उसी के पालन से आज बिजली विकास बताते हैं. याद रखिए, कि पौधा कोई लगाता है, फल कोई दूसरा खाता है.
आपकी ऐसी कौन-सी नीतियां थीं जिनका फल शिवराज खा रहे हैं?
पहले तो बता दूं कि उस समय हमारी बनाई नीतियों का इन्होंने विरोध किया था. पहली तो ये कि पहली टोल सड़क मध्य प्रदेश में बनी थी. पहला विशेष आर्थिक क्षेत्र (एसईजेड) मध्य प्रदेश में सामने आया था.
बिजली के हमारे जितने भी संयंत्र थे, छत्तीसगढ़ के विभाजन के बाद अधिकांश छत्तीसगढ़ में चले गए और उपभोक्ता इधर रह गए.
बिजली के संयंत्र कोई रात ही रात में तैयार नहीं हो जाते हैं. उनमें समय लगता है. मैंने कहा था कि 2007 तक मध्य प्रदेश बिजली के मामले में आत्मनिर्भर हो जाएगा और हुआ भी.
इसलिए तब बिजली की दिक्कत थी, लेकिन मैंने कटौती गांव में की तो शहर में भी की. शहर वाले ज्यादा मुखर होते हैं. सारे अधिकारी, कर्मचारी और प्रेस के लोग शहर में रहते हैं. उन्होंने पूरे प्रदेश में इस प्रकार का माहौल बना दिया जिसकी वजह से नुकसान हुआ.
दूसरा कि भोपाल घोषणा पत्र से मैंने दलित और आदिवासियों के लिए आक्रामक कार्यक्रम चलाए. उनको जमीनें दीं. किसी की जमीन छीनकर नहीं दी, सरकारी जमीन दी. उस पर कब्जे थे मैंने उन्हें हटवाए तो मैंने जो गरीब का पक्ष लिया उससे लोग नाराज हुए.
शिवराज कहते हैं कि सड़कें अमेरिका से अच्छी हैं.
मध्य प्रदेश की सड़कें जाकर आप देख ही लीजिए कि कितनी अच्छी हैं, हालात क्या हैं.
तो आपका ये कहना है कि पानी-बिजली और सड़क के मामले में शिवराज सिंह सरकार एक तरह से फेल साबित हुई है?
न केवल फेल हुई है, बल्कि वह भ्रष्ट भी है.
अगर तीनों विभागों में शिवराज और भाजपा सरकार फेल है तो फिर आज वह माहौल क्यों नहीं दिखता जो कि 2003 में आपके खिलाफ दिखा था. तब एक नारा बड़ा लोकप्रिय हुआ था, ‘पानी सड़कें बिजली गोल, दिग्गी तेरी खुल गई पोल.’ या तो आपका कहना गलत है कि हालात नहीं सुधरे या फिर कांग्रेस इन मुद्दों को भुना नहीं पा रही है.
ये नारा भाजपा ने चलाया था. बात यही है कि हम उसका काउंटर नहीं कर पाए. लेकिन, वे जीत गए, सरकार बना ली, उसके बाद पानी, सड़क और बिजली के हालात सुधर गए क्या? आज भी हालात खराब हैं.
सवाल यही है कि अगर हालात इतने ही खराब हैं तो कांग्रेस इसे उस तरह का मुद्दा क्यों नहीं बना पा रही है जैसा कि 2003 में भाजपा ने बनाया था?
विपक्ष की भूमिका में भारतीय जनता पार्टी कांग्रेस से बेहतर काम करती है, इसलिए उनको चुनावों में सफलता मिली है. लेकिन, अब हम इस मामले में आक्रामक हो रहे हैं.
मैं तो बस एक बात कहता हूं कि इन विषयों पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान मुझसे बहस करने के लिए क्यों तैयार नहीं होते?
मैं प्रमाणित करूंगा कि उस समय केंद्रीय करों का 28 प्रतिशत हिस्सा राज्य सरकार को मिलता था. संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार ने उसको बढ़ाकर 42 प्रतिशत किया. संप्रग की नीतियों के कारण देश के राजस्व में भी दोगुने-तिगुने की बढ़ोतरी हो गई थी, तो इस लिहाज से प्रदेश को पहले से कई अधिक पैसा मिला.
अब इनके पास इतना पैसा आया, फिर भी इन्होंने कर्ज़ कितना ले लिया? मेरे समय प्रदेश पर केवल 24,000 करोड़ रुपये का कर्जा था. आज दो लाख करोड़ रुपये से ऊपर का कर्ज़ है और अब पता चला है कि प्रदेश सरकार चीन से भी कर्ज लेनी वाली है. ये तो कर्ज़ लेकर घी पीने वाली बात हो गई.
बात समन्वय समिति की. आप अध्यक्ष हैं, गुटबाजी दूर करना आपके जिम्मे है. लेकिन, हमने पिछले दिनों मीनाक्षी नटराजन का रूठना देखा, कांग्रेस मीडिया विभाग के अध्यक्ष मानक अग्रवाल को पद से हटाना और फिर पार्टी का सफाई देना, ज्योतिरादित्य सिंधिया का पार्टी प्रवक्ता नूरी खान को मंच से उतारना, प्रदेश कांग्रेस प्रभारी दीपक बावरिया पर कार्यकर्ताओं के हमले देखे, कमलनाथ के अध्यक्ष बनने के बाद अरूण यादव के बगावती तेवर और फिर आपका उनको साधना, ये गुटबाजी के ही तो उदाहरण हैं. हालिया उदाहरण लीजिए तो सिंधिया और कमलनाथ के समर्थकों में ट्विटर वॉर चलती है अपने-अपने नेताओं को मुख्यमंत्री बनाने के लिए. कांग्रेस की बैठक में पूर्व मंत्री प्रभु सिंह ठाकुर कहते हैं कि कांग्रेस केवल कमलनाथ, सिंधिया, अजय सिंह और सुरेश पचौरी की पार्टी बनकर रह गई है. कमलनाथ भी उनकी बात स्वीकारते हैं. तो समन्वय तो बन ही नहीं पा रहा है, गुटबाजी कायम है और चुनाव में महज तीन महीने बचे हैं.
समिति तीन पहलुओं को कालचक्र में चलाएगी. पहला तो जिले में जा रहे हैं. फिर जहां-जहां भी इस प्रकार के झगड़े हैं, उन जिलों में जाएंगे, विधानसभा क्षेत्रों में जाएंगे. वहां अभियान चलाने के बाद फिर हम लोग उच्च नेतृत्व को देखेंगे.
और रही बात तीन महीने की तो ये मुझ पर छोड़िए. और ये बताइए कि गुटबाजी भाजपा में नहीं है क्या? भाजपा में भी गुटबाजी है. कितने बड़े नेता शिवराज की जन आशीर्वाद यात्रा में जा रहे हैं? पता लगाइए.
गुटबाजी आप स्वीकराते हैं तो फिर यह भी तय है कि मध्यप्रदेश में कांग्रेस मुख्यमंत्री का कोई चेहरा आगे करके चुनाव नहीं लड़ेगी, जैसी कि कांग्रेस के कार्यकर्ता मांग कर रहे हैं?
यह सही है कि हम बिना किसा चेहरे को आगे करके चुनाव लड़ेंगे. क्योंकि हम लोग राष्ट्रपति प्रणाली में नहीं हैं, हम लोग संसदीय प्रणाली में हैं. वोट पार्टी के लिए मांगा जाता है, व्यक्ति के लिए नहीं.
लेकिन, हिमाचल प्रदेश और पंजाब जैसे राज्यों में तो कांग्रेस चेहरा आगे करके चुनाव लड़ी थी.
ऐसा नहीं है. तब वीरभद्र सिंह और अमरिंदर सिंह दोनों ही प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष थे. उसके बाद चुनाव हुआ और चुनाव में हम सफल हुए. वे मुख्यमंत्री बने.
प्रदेश में कांग्रेस ने कई समिति तो बना ली हैं लेकिन पार्टी के पास कोई रोडमैप नजर नहीं आता. उदाहरण के लिए शिवराज की जनआशीर्वाद यात्रा के खिलाफ पार्टी जनजागरण यात्रा निकालने की घोषणा करती है. कहती है कि जहां-जहां शिवराज अपनी यात्रा लेकर जाएंगे, उनके पीछे-पीछे कांग्रेस अपनी जनजागरण यात्रा निकालेगी और जनआशीर्वाद यात्रा में शिवराज द्वारा किए दावों की पोल खोलेगी. लेकिन, फिर वह यात्रा एक तरह से सुर्खियों से ही गायब हो जाती है. पार्टी के अंदर से आवाज उठती है कि जनजागरण यात्रा फेल हो गई तो तय होता है कि जनआशीर्वाद यात्रा जहां-जहां जाएगी वहां कांग्रेस प्रवक्ता प्रेस कांफ्रेंस करेंगे. ऐसे ही पहले घोषणा कर दी जाती है कि विधानसभा चुनाव में टिकट मांगने वालों को 50,00 रुपये का बांड पार्टी फंड में जमा कराना होगा, फिर जब नेता विरोध करते हैं तो घोषणा वापस ले ली जाती है.