जिस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हस्ताक्षर न करके उसे ठुकरा दिया
ये कहकर की
“न ही ‘गांधी जी (Gandhi Ji) का तावीज’ और न ही मेरे अंतर्मन की आवाज मुझे RCEP में शामिल होने की अनुमति देता है”
और क्यों प्रधानमंत्री को कहना पड़ा कि,
“देश के किसानों, पेशेवरों एवं उद्योगपतियों की ऐसे निर्णयों में हिस्सेदारी होती है। कामगार एवं उपभोक्ता भी उतने ही महत्वपूर्ण होते हैं जो भारत को एक बड़ा बाजार और क्रयशक्ति के आधार पर तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाते हैं।”
आइये जानते हैं….. दरअसल..
यह आरसीईपी समझौता 10 आसियान देशों (ब्रुनेई, इंडोनेशिया, कंबोडिया, लाओस, मलेशिया, म्यांमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड, विएतनाम) और 6 अन्य देशों ऑस्ट्रेलिया, चीन, भारत, जापान, न्यूजीलैंड, दक्षिण कोरिया के बीच एक मुक्त व्यापार समझौता है. इस समझौते में शामिल 16 देश जिनमे अब भारत नही है वे एक-दूसरे को व्यापार में टैक्स में कटौती समेत तमाम आर्थिक छूट देंगे.
हालांकि, यदि इस समझौते पर मोदी जी के हस्ताक्षर हो जाते तो भारतीय बाजार के लिए चीन से एक बड़ा खतरा पैदा हो सकता था. एक तरह से यह चीन व अन्य पांच देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौता था, क्योंकि आसियान देशों के साथ भारत का पहले से ही मुक्त व्यापार समझौता है.
सस्ते चीनी सामान से पट जाएगा भारतीय बाजार
जी हाँ पहले से ही भारतीय व्यापारी चीनी सस्ते माल से आतंकित है और बेहद निराश भी हैं यदि यह समझौता हो जाता तब विश्लेषकों को आशंका थी कि भारतीय बाजार में चीनी सामान की बाढ़ आ जाती. वैसे भी सभी जानते हैं कि चीन का अमेरिका के साथ ट्रेड वॉर चल रहा है जिससे उसे नुकसान उठाना पड़ रहा है. चीन अमेरिका से ट्रेड वॉर से हो रहे नुकसान की भरपाई भारत व अन्य देशों के बाजार में अपना सामान बेचकर ही करने की कोशिश में है. ऐसे में आरसीईपी समझौते को लेकर चीन सबसे ज्यादा उतावला था.
तो इस पर हस्ताक्षर न करने के लिए सभी को प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी का दिल से आभार प्रगट करना चाहिये।