पिछले कई दिनों से कयास लग रहे थे कि क्या राहुल गांधी केरल के वायनाड के अलावा अमेठी से भी चुनाव लड़ेंगे और क्या प्रियंका गांधी वाड्रा रायबरेली से चुनावी राजनीति में उतरेंगी?
लोकसभा चुनाव में तीसरे चरण के नामांकन भरने के आख़िरी दिन की सुबह ख़बर ब्रेक हुई कि राहुल गांधी कांग्रेस के गढ़ रहे अमेठी से नहीं बल्कि रायबरेली से चुनाव लड़ रहे हैं जबकि प्रियंका चुनाव नहीं लड़ेंगी.
अमेठी से बीजेपी सांसद स्मृति इरानी के सामने कांग्रेस ने गांधी परिवार से लंबे समय से जुड़े रहे किशोरी लाल वर्मा को उतारा है.
अमेठी और रायबरेली सीट को गांधी परिवार का गढ़ माना जाता है. फ़िरोज़ गांधी 1952 और 1957 में इस सीट से सांसद चुने गए थे.
जबकि इंदिरा गांधी रायबरेली से चुनाव जीतकर लोकसभा पहुँची, तो संजय गांधी अमेठी से जीतकर संसद पहुँचे थे.
संजय गांधी की मौत के बाद राजीव गांधी 1981 में अमेठी से संसद पहुँचे थे. साल 1999 में सोनिया गांधी ने अमेठी सीट से ही राजनीति में क़दम रखा था.
बाद में यहाँ से राहुल गांधी ने चुनाव लड़ा.
राहुल गांधी के अमेठी के बजाय रायबरेली से चुनाव लड़ने से जहाँ कई लोग आश्चर्य में हैं, कुछ इस फ़ैसले में राजनीतिक तर्क ढूँढ रहे हैं, तो इस फ़ैसले से सहमत होने वाले लोग भी हैं.
कांग्रेस और राहुल गांधी को लगातार चुनौती देने वाली स्मृति ईरानी ने कहा कि चुनाव से पहले ही कांग्रेस ने अपनी हार स्वीकार कर ली है.
पीएम मोदी की टिप्पणी
प्रधानमंत्री मोदी ने राहुल गांधी पर निशाना साधते हुए कहा, “ये लोग घूम-घूमकर सबको कहते हैं, डरो मत. मैं भी आज उन्हें कहता हूँ, और बड़े जी भरकर कहता हूँ, अरे डरो मत. भागो मत.”
सवाल ये है कि नरेंद्र मोदी को लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने से रोकने की कोशिश कर रहे विपक्ष पर इस फ़ैसले का क्या असर पड़ेगा?
साथ ही कांग्रेस की सहयोगी पार्टियाँ इस पर क्या सोचती हैं?
चुनाव विश्लेषक यशवंत देशमुख कहते हैं कि उन्हें न ये फ़ैसला समझ में आया और न ही इस क़दम के पीछे की राजनीतिक समझ.
वो कहते हैं, “आपने नैरेटिव दिया कि आप भाग गए. अभी तक दो ही राउंड की वोटिंग हुई है. अभी पाँच राउंड बाक़ी हैं.”
दूसरी ओर अंग्रेज़ी अख़बार हिंदुस्तान टाइम्स के राजनीतिक संपादक विनोद शर्मा के मुताबिक़, “एक चीज़ तो साफ़ है कि वो (राहुल गांधी) यूपी से नहीं भागे हैं लेकिन दूसरी चीज़ लोग कहेंगे कि वो अमेठी से भागे है. अब इस प्रोपोगैंडा का मुक़ाबला करने पर निर्भर करेगा कि कांग्रेस क्या नैरेटिव बनाती है.”
कांग्रेस के पूर्व प्रवक्ता संजय झा को न प्रियंका का चुनाव नहीं लड़ना और राहुल का अमेठी की बजाय रायबरेली से चुनाव लड़ना समझ नहीं आता.
वो कहते हैं, “यदि मान लीजिए राहुल गांधी अमेठी से हार भी जाते, तो क्या बड़ी बात है? वो पिछली बार भी हारे थे. आपको लड़ना चाहिए था.”
लेखक और पत्रकार रशीद किदवई के मुताबिक़ कांग्रेस ने जो सर्वे करवाए, उनमें उन्हें नेहरू-गांधी परिवार के सदस्य के चुनाव लड़ने पर अमेठी की बजाय रायबरेली में ज़्यादा साफ़ जीत नज़र आई, जिस वजह ये फ़ैसला हुआ.
वो कहते हैं, “जब कांग्रेस और सपा का गठबंधन हुआ था, उस समय अखिलेश यादव का आग्रह था कि परिवार का कोई न कोई सदस्य चुनाव लड़े. और गठबंधन के दबाव के कारण ही राहुल गांधी चुनाव लड़ रहे हैं.”
समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता घनश्याम तिवारी के मुताबिक़ कांग्रेस पार्टी का फ़ैसला समझ से बाहर है और इसका वक़्त सही नहीं है.
वो कहते हैं, “ये (फ़ैसला) समझ से बाहर है क्योंकि इसके पीछे क्या तर्क है ये समझ में नहीं आता. अमेठी जैसी सीट को लेकर आपकी उम्मीद होती है कि इस पर फ़ैसला आख़िरी वक़्त से बहुत पहले लिया जाएगा, और इससे आपके राजनीतिक आधार और सहयोगी दलों में जोश आएगा. लेकिन अगर फ़ैसला आख़िरी वक़्त पर लिया गया और इसका राजनीतिक तर्क समझ से परे हो तो इससे पार्टी कार्यकर्ता उत्साहित नहीं होंगे.”
फ़ैसले की वजह
कांग्रेस नेताओं से लगातार पत्रकार सवाल पूछ रहे थे कि अमेठी और रायबरेली को लेकर घोषणाओं में ‘देरी’ क्यों हो रही है. कांग्रेस नेता किसी भी देरी से इनकार कर रहे थे.
हिंदुस्तान टाइम्स के विनोद शर्मा कहते हैं, “अपेक्षा ये थी कि राहुल गांधी स्मृति इरानी के ख़िलाफ़ अमेठी से लड़ेंगे. बहुत से पत्रकार निराश इसलिए हैं क्योंकि उन्हें लग रहा था कि इस लड़ाई की मज़ेदार कवरेज होगी.”
वो कहते हैं कि अब अमेठी से “किशोरी लाल को जितवाना गांधी परिवार का दायित्व बन गया है क्योंकि स्मृति जी भी अपने दम पर नहीं जीतीं थीं. आपको याद है कि जब किसी ने प्रियंका से स्मृति ईराने के बारे में सवाल पूछा तब उन्होंने कहा था, स्मृति कौन हैं. तब प्रधानमंत्री ने कहा था, मेरी बहन है. स्मृति ईरानी की जीत में प्रधानमंत्री ने ख़ुद ही बाज़ी लगाई. इसी तरह किशोरी लाल की जीत के लिए गांधी परिवार को निजी दांव लगाना होगा.”
स्मृति इरानी ने साल 2004 से 2019 तक अमेठी का प्रतिनिधित्व करने वाले राहुल गांधी को 2019 लोकसभा चुनाव में 55,000 से ज़्यादा वोटों से हराया था.
राहुल गांधी ने केरल के वायनाड से भी चुनाव लड़ा था, जहाँ से वो सांसद हैं.
यशवंत देशमुख कहते हैं, “रायबरेली से चुनाव जीतने के बाद अगर राहुल गांधी वायनाड की सीट ख़ाली करते हैं, तो केरल की राजनीति के हिसाब से मुझे नहीं लगता कि वो बहुत उचित निर्णय होगा. मानिए कि वायनाड में उपचुनाव होता है और वायनाड से लेफ़्ट जीतता है तो ये कांग्रेस के लिए अच्छा समाचार कहाँ से होगा?”
लगातार आ रही टिप्पणियों पर कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने ट्वीट कर कहा, “राहुल गांधी तो तीन बार उत्तर प्रदेश से और एक बार केरल से सांसद बन गए, लेकिन मोदी जी विंध्याचल से नीचे जाकर चुनाव लड़ने की हिम्मत क्यों नहीं जुटा पाए?”
कांग्रेस के पूर्व प्रवक्ता संजय झा कहते हैं, “मुझे पता कि इस फ़ैसले के पीछे क्या सोच रही होगी. (वो ये कि) इस चुनाव में राहुल गांधी का मुक़ाबला प्रधानमंत्री मोदी से है. वो नहीं चाहेंगे कि ये नैरेटिव बने कि उनकी राजनीतिक प्रतिद्वंदी स्मृति इरानी हैं.”
दूसरी ओर यशवंत देशमुख इसे बड़ा सवाल मानते हैं कि कांग्रेस रायबरेली जैसी सुरक्षित सीट पर ऐसा दांव क्यों खेल रही है?
वो कहते हैं, “रायबरेली जैसी सुरक्षित सीट, जहाँ सोनिया जी आकर सिर्फ़ ये बोलें कि मैं अब रिटायर कर रही हूँ और आगे इसे ये संभालेंगे, जनता लाइन लगाकर ऐसे ही वोट दे देगी. आप ऐसी सुरक्षित सीट को बर्बाद क्यों करेंगे? ये बड़ा सवाल है. इस फ़ैसले से विपक्ष की उम्मीद पर बड़ा असर पड़ेगा. राहुल गांधी ने अपना नुक़सान नहीं किया है, अखिलेश (यादव) का नुक़सान कर दिया है.. आज राहुल गांधी से ज़्यादा तेजस्वी और टीएमसी दुखी होंगे.”
बीबीसी से जब इस मामले पर तृणमूल कांग्रेस से प्रतिक्रिया जाननी चाही, तो जवाब ये मिला कि उनके पास इस बारे में कहने के लिए कुछ नहीं है.
आरजेडी के एक नेता ने कहा कि राहुल गांधी को अमेठी से और प्रियंका गांधी को रायबरेली से चुनाव लड़ना चाहिए था और इससे लोगों में अच्छा संदेश नहीं जाएगा.
उन्होंने कहा, “राहुल अमेठी से और प्रियंका रायबरेली से चुनाव लड़ते तो इससे उत्तर प्रदेश में मदद मिलती. सार्वजनिक हस्तियों को चुनाव लड़ना ही होता है. लोकतंत्र में चुनाव के ज़रिए ही तय होता है कि आपका क़द क्या है.”
प्रियंका का चुनाव न लड़ना
प्रियंका गांधी का लोकसभा चुनाव का न लड़ना भी बहस का विषय है. जिस तरह से वो प्रधानमंत्री और बीजेपी पर तीखे हमले कर रही हैं, कांग्रेस और विपक्ष के समर्थकों में उनका क़द बढ़ा है.
प्रियंका के चुनाव न लड़ने के फ़ैसले पर विनोद शर्मा कहते हैं, “उनमें क्षमता और कौशल है और उनकी एक तरह से खोज हुई है.”
लेकिन फिर वो लोकसभा चुनाव क्यों नहीं लड़ रही हैं? विनोद शर्मा पूछते हैं कि अगर सभी अपनी लोकसभा सीटों पर बंधकर रह जाएँगे, तो प्रचार कौन करेगा.
रशीद किदवई कहते हैं, “जहाँ, जहाँ चुनाव नहीं हुआ है, महाराष्ट्र में, बिहार में, बंगाल में, सब जगह प्रियंका गांधी की मांग है, और बहुत ज़्यादा मांग है. सोनिया गांधी प्रचार करने अभी तक गई नहीं हैं. कांग्रेस में गांधी परिवार के अलावा मल्लिकार्जुन खड़गे (प्रचार के लिए) जाते हैं लेकिन उनकी कोई मांग नहीं है, क्रेज़ नहीं है.”
रशीद किदवई के मुताबिक़ प्रियंका गांधी चाहती हैं कि फ़ोकस राहुल गांधी पर ही रहे.
वो एक सवाल भी पूछते हैं, “साल 2019 में जब राहुल गांधी अमेठी और वायनाड से लड़े थे तो उस समय भी कहा गया था कि जो सीट राहुल गांधी छोड़ेंगे, वहाँ से प्रियंका गांधी लड़ेंगी. अभी भी पर्दे के पीछे यही कहा जा रहा है कि राहुल गांधी वायनाड नहीं छोड़ना चाहते और रायबरेली जीतकर वो सीट प्रियंका को सौंप देंगे. मेरा मानना है कि अगर प्रियंका को छह महीने बाद चुनाव लड़ना है, तो उनको अभी लड़ना चाहिए था.”
उधर, संजय झा का मानना है कि प्रियंका गांधी का चुनाव न लड़ना “बिल्कुल ग़लत” है.
चुनावी राजनीति पर प्रभाव ?
समाजवादी पार्टी प्रवक्ता घनश्याम तिवारी मानते हैं कि इस फ़ैसले का देश की राजनीति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, क्योंकि “ये चुनाव एक सीट और एक उम्मीदवार के भरोसे नहीं है.”
वो कहते हैं, “ऐसा नहीं है कि ये चुनाव मोदी बनाम राहुल है. ये चुनाव मोदी और आम लोगों के बीच में है. जहाँ बेरोज़गारी, महंगाई जैसे दूसरे मुद्दे महत्वपूर्ण हैं.”
एक सोच है कि लोकसभा चुनाव तेजस्वी यादव, अखिलेश यादव, ममता बनर्जी, उद्धव ठाकरे, शरद पवार, स्टालिन, अरविंद केजरीवाल की पार्टी का चुनाव है और अगर इन क्षेत्रीय दलों का प्रदर्शन अच्छा हुआ, तो बीजेपी के लिए चुनौतियाँ बढ़ेंगी.
संजय झा कहते हैं, “इस चुनाव पर ताज़ा फ़ैसले का कुछ खास असर नहीं पड़ेगा. लेकिन एक धारणा उभरेगी कि कांग्रेस में विश्वास की कमी है.”