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जानिए, अंतरिक्ष में क्या खाते-पीते हैं एस्ट्रोनॉट्स? कैसे गुजारते हैं जिंदगी

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) 2022 तक गगनयान के जरिए तीन भारतीयों को सात दिन के लिए अंतरिक्ष की यात्रा पर भेजेगा. सात दिनों तक ये तीन अंतरिक्ष यात्री पृथ्वी के चारों तरफ चक्कर लगाते रहेंगे. लेकिन ये लोग खाएंगे क्या? अमेरिकी, रूसी, चीनी और जापानी अंतरिक्ष एजेंसियां एस्ट्रोनॉट्स के भोजन की व्यवस्था कुछ ऐसे करती आईं हैं.

एस्ट्रोनॉट्स के खाने को लेकर हमेशा मन में ढेरों सवाल आते हैं. क्या वे थाली और कटोरी में खाना खाते हैं. उनका खाना क्या अंतरिक्ष में पकाया जाता है. बचा हुआ खाना कहां जाता है. क्या खाना अंतरिक्ष में सड़ता है. आइए जानते हैं कि अंतरिक्ष में मौजूद एस्ट्रोनॉट्स के खाने को लेकर बेहद रोचक जानकारियां.

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हर अंतरिक्ष यात्री के लिए हर दिन सिर्फ 1.7 किलोग्राम के हिसाब से खाना अंतरिक्ष में भेजा जाता है. इसमें से 450 ग्राम वजन तो खाने के कंटेनर का होता है. अंतरिक्ष में गुरुत्वाकर्षण नहीं होता. इसलिए एस्ट्रोनॉट्स के लिए बनाया गया खाना जीरो-ग्रैविटी को ध्यान में रखकर पकाया जाता है. अंतरिक्ष यात्रियों अगर कंटेनर या बैग को खोलता है तो उसे 2 दिन के अंदर वह खाना खत्म करना होता है. क्योंकि 2 दिन के बाद ये खाना खराब हो जाता है.

खाने को लंबे समय तक चलाने के लिए ऐसी व्यवस्था होती है…

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पहले कैसे खाते थे अंतरिक्ष यात्री, क्या थी पुरानी व्यवस्था?

शुरुआती अंतरिक्ष अभियानों में एस्ट्रोनॉट्स सॉफ्ट फूड्स या बेबी फूड्स खाते थे. इन्हें टूथपेस्ट जैसे ट्यूब में रखा जाता था. लेकिन धीरे-धीरे खाने की प्रोसेसिंग की प्रक्रिया बदलती रही. वर्ष 1961 से 1963 तक क्यूब के आकार में खाद्य पदार्थ, ड्राई पाउडर और सेमी-लिक्विड फूड ले जाते थे. 1964 से 1967 तक जिलेटिन कोटेड फूड और टूथपेस्ट ट्यूब में खाना ले जाते थे. इसमें पुडिंग और एपल सॉस होता था. 1973 के बाद स्काईलैब कंपनी ने बड़े स्टोरेज क्षमता वाले कंटेनर भेजने शुरू किए. अब तो लगभग हर प्रकार का खाना अंतरिक्ष में जाता है. सैंडविच, पिज्जा आदि भी.

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