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अमेरिका की खुफिया दुनिया में हलचल: तुलसी गबार्ड ने 37 अधिकारियों की सुरक्षा मंजूरी रद्द की

हाल ही में, अमेरिका के राष्ट्रीय खुफिया निदेशक (Director of National Intelligence) तुलसी गबार्ड ने एक बड़ा कदम उठाते हुए 37 मौजूदा और पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा अधिकारियों की सुरक्षा मंजूरी (security clearances) रद्द कर दी है। इस फैसले ने अमेरिका की खुफिया एजेंसियों और राजनीतिक गलियारों में एक नई बहस छेड़ दी है।


क्या है मामला?


तुलसी गबार्ड, जो कि ट्रंप प्रशासन में एक महत्वपूर्ण पद पर हैं, ने आरोप लगाया है कि इन अधिकारियों ने “खुफिया जानकारी का राजनीतिकरण या हथियार के रूप में इस्तेमाल” किया है, वर्गीकृत सामग्री को लापरवाही से संभाला है, और पेशेवर मानकों का पालन नहीं किया है। उन्होंने अपनी इस कार्रवाई को ट्रंप के निर्देश पर लिया गया कदम बताया है।
इन 37 अधिकारियों में से कई ऐसे लोग शामिल हैं जो 2016 के अमेरिकी चुनाव में रूस के कथित हस्तक्षेप की जांच में शामिल थे। इस फैसले को ट्रंप प्रशासन द्वारा 2017 की उस खुफिया रिपोर्ट को फिर से खारिज करने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है, जिसमें यह निष्कर्ष निकाला गया था कि रूस ने ट्रंप के पक्ष में चुनाव को प्रभावित करने का प्रयास किया था।


तुलसी गबार्ड का तर्क
तुलसी गबार्ड ने सोशल मीडिया पर इस फैसले का बचाव करते हुए कहा है कि “सुरक्षा मंजूरी एक विशेषाधिकार है, कोई अधिकार नहीं।” उन्होंने यह भी कहा कि जिन लोगों ने अपने शपथ के साथ विश्वासघात किया है और अपने हितों को अमेरिकी लोगों के हितों से ऊपर रखा है, उन्होंने उस पवित्र विश्वास को तोड़ा है जिसे बनाए रखने का उन्होंने वादा किया था।


आलोचना और विवाद


इस फैसले पर तुरंत ही तीखी प्रतिक्रियाएं भी सामने आईं हैं। आलोचकों का कहना है कि यह कदम राजनीतिक प्रतिशोध (political retribution) है और इसका उद्देश्य उन लोगों को निशाना बनाना है जो ट्रंप के खिलाफ थे। राष्ट्रीय सुरक्षा के एक वकील मार्क जैद ने इसे “सुरक्षा मंजूरी प्रक्रिया का शुद्ध राजनीतिकरण” बताया है। उन्होंने कहा कि ऐसे फैसले दशकों की परंपरा से हटकर लिए गए हैं और ये गैरकानूनी हैं।
यह पहली बार नहीं है जब ट्रंप प्रशासन ने सुरक्षा मंजूरी को एक राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया है। इससे पहले, उन्होंने पूर्व राष्ट्रपति जो बाइडेन और पूर्व उपराष्ट्रपति कमला हैरिस सहित कई अन्य अधिकारियों की भी सुरक्षा मंजूरी रद्द कर दी थी।


निष्कर्ष


तुलसी गबार्ड का यह फैसला अमेरिका की खुफिया एजेंसियों और सरकार के बीच बढ़ते तनाव को दर्शाता है। जहां एक तरफ गबार्ड और ट्रंप प्रशासन इसे राष्ट्रहित में उठाया गया कदम बता रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ आलोचक इसे सत्ता का दुरुपयोग और असहमति की आवाजों को दबाने का प्रयास मान रहे हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि इस विवाद का अमेरिकी राजनीति और राष्ट्रीय सुरक्षा पर क्या असर पड़ता है।
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