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राष्ट्रपति कोविंद बोले- POCSO एक्ट में न मिले दया याचिका का अधिकार

देश में लगातार हो रहे रेप और हत्या की घटनाओं को लेकर जनता में आक्रोश के बीच राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने बड़ा बयान दिया है. राष्ट्रपति कोविंद ने कहा कि बच्चों के साथ रेप करने वाले दोषियों के पास दया याचिका का कोई अधिकार नहीं होना चाहिए.

शुक्रवार के राजस्थान के सिरोही में एक कार्यक्रम के दौरान राष्ट्रपति ने कहा, ‘पॉक्सो (POCSO) एक्ट के तहत बालात्कार के दोषियों को मिलने वाला दया याचिका का अधिकार समाप्त होना चाहिए.’  

राष्ट्रपति ने आगे कहा, ‘महिलाओं की सुरक्षा देश के लिए गंभीर मुद्दा है. पॉक्सो (POCSO) अधिनियम के तहत बलात्कार के दोषियों को दया याचिका दायर करने के अधिकार से वंचित करना चाहिए. संसद को दया याचिका पर पुनर्विचार करना चाहिए.’

क्या होता है पॉक्सो (POCSO) एक्ट और सजा?

अंग्रेजी शब्द पॉक्सो का मतलब होता है प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंसेस एक्ट 2012 (लैंगिक उत्पीड़न से बच्चों के संरक्षण का अधिनियम 2012).

इस एक्ट के तहत नाबालिग़ बच्चों के साथ होने वाले यौन अपराध और छेड़छाड़ के मामलों में कार्रवाई की जाती है. यह एक्ट बच्चों को सेक्सुअल हैरेसमेंट, सेक्सुअल असॉल्ट और पोर्नोग्राफी जैसे गंभीर अपराधों से सुरक्षा प्रदान करता है.

साल 2012 में बनाए गए इस कानून के तहत अपराध के हिसाब से सज़ा तय की गई है. जिसका कड़ाई से पालन किया जाना भी सुनिश्चित किया गया है.

इस अधिनियम की धारा 4 के तहत वो मामले शामिल किए जाते हैं जिनमें बच्चे के साथ दुष्कर्म या कुकर्म हुआ हो. इसमें सात साल कारावास से लेकर उम्रकैद और अर्थदंड भी लगाया जा सकता है.

पॉक्सो (POCSO) एक्ट की धारा 6 के अधीन वे मामले आते हैं जिनमें बच्चों को दुष्कर्म या कुकर्म के बाद गम्भीर चोट पहुंचाई गई हो. इसमें दस साल कारावास से उम्रकैद तक की सजा हो सकती है और जुर्माना भी लगाया जा सकता है.

इसी प्रकार पॉक्सो अधिनियम की धारा 7 और 8 के तहत वो मामले पंजीकृत किए जाते हैं जिनमें बच्चों के गुप्तांग से छेड़छाड़ की जाती है. इस धारा में आरोपियों पर दोष सिद्ध होने पर पांच से सात साल तक की सजा और जुर्माना होता है.

पॉक्सो एक्ट की धारा 3 के तहत पेनेट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट को भी परिभाषित किया गया है. जिसमें बच्चे के शरीर के साथ किसी भी तरह की हरकत करने वाले शख्स को कड़ी सजा का प्रावधान है.

18 साल से कम उम्र के बच्चों से किसी भी तरह का यौन व्यवहार इस कानून के दायरे में आ जाता है. यह कानून लड़के और लड़की को समान रूप से सुरक्षा प्रदान करता है. इस कानून के तहत पंजीकृत होने वाले मामलों की सुनवाई विशेष अदालत में होती है.





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