दिल्ली में साल 2012 में हुए निर्भया गैंगरेप के दोषियों ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के पास दया याचिका लगाई है. अगर राष्ट्रपति निर्भया केस में चारों दोषियों की दया याचिका खारिज कर देते हैं तो सबसे बड़ा सवाल यही उभर कर सामने आता है कि सभी को एक साथ फांसी के फंदे पर लटकाया जाएगा या फिर अलग-अलग.
अधिकतम 2 लोगों को साथ फांसी पर लटकाने का रिकॉर्ड
दरअसल, अभी तक तिहाड़ जेल के इतिहास में अधिकतम दो लोगों को एक साथ फांसी के फंदे पर लटकाया गया है. इसमें करतार सिंह, उजागर सिंह, रंगा, बिल्ला, सतवंत सिंह और केहर सिंह को साथ-साथ फंदे पर लटकाया गया था. अगर 2 से ज्यादा दोषियों को एक साथ लटकाया जाता है तो इतिहास में ऐसा पहली बार होगा. एक और बात अफजल गुरू की फांसी से पहले हैंगमैन या जल्लाद मेरठ जेल का कालूराम या फिर फरीदकोट का फकीरा होता था. लेकिन अफजल गुरू को फांसी किसी जल्लाद ने नहीं बल्कि जेल स्टाफ ने दी थी.
फांसी देने के लिए जल्लाद जरूरी नहीं
जेल मैनुअल कहता है कि अगर जेल स्टाफ की खुद की स्वीकृति हो तो वो आराम से फांसी लगा सकता है. अब तक तिहाड़ की 8 फांसी के गवाह बने तत्कालीन लॉ आफिसर सुनील गुप्ता ने कहा कि अफजल की फांसी को जल्लाद ने नहीं बल्कि जेल कर्मी ने परवान चढ़ाई थी. जेल मैनुअल कहता है कि फांसी देने के लिए जल्लाद जरूरी नहीं है.
हर राज्य का अलग-अलग जेल मैनुअल इस बात की गारंटी देता है कि किसी भी दोषी को फांसी के फंदे पर कैसे लटकाया जाएगा. क्या अफजल के बाद एक दिन के लिए किसी जल्लाद को लाएगा जो फांसी देने के बाद अपनी तैनाती वाली जेल में लौट जाएगा.
ब्लैक वारंट लिखने के बाद कलम तोड़ने की परंपरा
जिस ट्रायल कोर्ट ने मौत की सजा सुनाई होती है वही ब्लैक वारंट जारी करता है. इसे ब्लैक वारंट इसलिए कहते हैं क्योंकि इसमें ब्लैक हासिया होता है. अक्सर ब्लैक वारंट लिखने के बाद कलम तोड़ देने की परंपरा रही है, जिससे फांसी जैसी कोई मनहूस सजा आगे फिर कभी न लिखी जा सके.